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अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों की वजह से देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर अंकुश लगाना सरकार के लिए चुनौती बना हुआ है। ऐसे में विकल्प तलाशे जा रहे हैं
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों की वजह से देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर अंकुश लगाना सरकार के लिए चुनौती बना हुआ है। ऐसे में विकल्प तलाशे जा रहे हैं कि किस तरह ईंधन की बढ़ती कीमतों को काबू में किया जा सके। इसके विकल्प के रूप में पहले जटरोफा से र्इंधन बनाने की पहल हुई थी। इसके लिए किसानों को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित किया गया, कई जगह इसके संयंत्र भी लगाए गए, पर उससे अपेक्षित नतीजे नहीं निकल पाए। अब एथेनाल को कारगर विकल्प माना जा रहा है। सरकार इसके उत्पादन को प्रोत्साहित कर रही है।
एथेनाल की खासियत यह है कि इसे पेट्रोल में मिला कर भी उपयोग किया जा सकता है और स्वतंत्र रूप से भी इसे इस्तेमाल किया जा सकता है। फिलहाल तेल कंपनियां इसे पेट्रोल में मिला कर बेचती हैं, जिससे पेट्रोल की कीमत कुछ कम बैठती है। एथेनाल पेट्रोल से सस्ता पड़ता है। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक अभी देश में आठ फीसद तक एथेनाल की पेट्रोल में मिलावट होती है। 2025 तक इसे बढ़ा कर बीस फीसद के स्तर पर पहुंचाने का लक्ष्य है। इसलिए सरकार ने एथेनाल की कीमतों में एक रुपए सैंतालीस पैसे की बढ़ोतरी भी कर दी है ताकि इससे चीनी मिलें एथेनाल उत्पादन को लेकर प्रोत्साहित होंगी और वे किसानों के गन्ने की अच्छी कीमत चुकाने की स्थिति में भी आ पाएंगी।
एथेनाल का उत्पादन गन्ने से होता है। चीनी मिलों में चीनी उत्पादन के बाद जो अवशेष रूप में शीरा बच जाता है, उसी से एथेनाल बनाया जाता है। इस तरह देश में एथेनाल उत्पादन की बड़ी संभावना है। इसे देखते हुए परिवहन मंत्री नितिन गडकरी तो यहां तक घोषणा कर चुके हैं कि अब वे कंपनियों को कारों में पेट्रोल और एथेनाल दोनों से चलने वाले इंजन लगाने का आदेश देने वाले हैं। यानी अब ऐसे इंजन आएंगे, जो पेट्रोल या एथेनाल दोनों से या फिर दोनों के मिश्रण से चलेंगे। एथेनाल से वायु प्रदूषण भी कम होने का दावा किया जा रहा है।
एथेनाल चूंकि सस्ता है, इसलिए ग्राहकों को भी इससे काफी राहत मिलेगी। चीनी मिलें अभी तक शीरे से शराब बनाती रही हैं, अब एथेनाल उत्पादन का संयंत्र लगा कर अतिरिक्त कमाई कर सकेंगी। स्वाभाविक ही इससे चीनी मिलों पर जो बढ़ते कर्ज को लेकर लगातार दबाव बना रहता है और वे कई वर्ष तक किसानों के बकाए का भुगतान नहीं कर पाती हैं, वे आसानी से कर सकेंगी।
मगर सरकार ने अभी तक यह अनुमान पेश नहीं किया है कि देश में एथेनाल की कितनी मात्रा पैदा हो सकेगी। चीनी मिलों का पेराई सत्र तय है। करीब आधा साल उनमें कामकाज बंद रहता है, इसलिए कि गन्ने की फसल कटने का तय मौसम है, वह साल भर उपलब्ध नहीं होती। फिर गन्ने का उत्पादन पूरे देश में नहीं होता। कुछ ही राज्य हैं, जहां गन्ने का उत्पादन होता है।
इसके अलावा चीनी मिलों के लगातार बीमार रहने और समय पर भुगतान न मिल पाने की वजह से बहुत सारे किसानों ने गन्ने की खेती बंद कर दी है। अनेक सरकारी चीनी मिलें बीमार घोषित करके बंद कर दी गई हैं या फिर उनका उत्पादन घट कर आधा रह गया है। ऐसे में एथेनाल का उत्पादन बढ़ाना आसान काम नहीं रह गया है। इसके लिए किसानों को गन्ने की खेती के लिए प्रोत्साहित करने से लेकर चीनी मिलों की सेहत सुधारने तक के लिए जरूरी कदम उठाने होंगे।
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