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देश के पांच राज्यों को मिली नई सरकारें
देश के पांच राज्यों को नई सरकारें मिल गईं हैं. राज्य की जनता ने पांच साल के लिए अपना मुख्यमंत्री (Chief Minister) चुन लिया है. लेकिन जीत की खुशियों में फूट रहे पटाखों की आवाज बंद होने से पहले राज्य सरकारों (State Governments) की चुनौतियां शुरू होने वाली हैं. अगर आप वाकई जागरुक मतदाता हैं और घोषणा पत्र की कसौटी पर अपनी सरकार को कसेंगे तो आपके हाथ निराशा लग सकती हैं. इसके पीछे कारण यह है कि राज्यों के बजट कर्ज (Debt) के बोझ से दबे हैं. रिजर्व बैंक की स्टेट फाइनेंस – ए स्टडी ऑफ बजट रिपोर्ट बताती है कि देश के राज्यों (States) और केंद्र शासित प्रदेशों पर करीब 70 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है.
उत्तर प्रदेश में लैपटॉप, स्मार्टफोन और स्कूटी की चाह रखने वाले युवा यह जान लें कि सरकार पर कुल 6.53 लाख करोड़ की देनदारी है. पंजाब में फ्री बिजली वादा नए कर्ज लेकर पूरा होगा. क्योंकि राज्य पर पहले से 2.55 लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज है.
राज्य सरकारों का राजकोषीय घाटा GDP का 3.7%
आप यह तर्क उछाल सकते हैं कि सरकार कमाकर भी तो ये खर्च कर सकती है. तो, जनाब राज्य सरकारों के खर्च पहले ही आय से कहीं अधिक हैं. तभी तो बजट घाटों से पटे पड़े हैं. राज्य सरकारों के कुल राजकोषीय घाटा 8.19 लाख करोड़ का है. यह जीडीपी के 3.7 फीसदी के बराबर है. इन घाटों की भरपाई बाजार से कर्ज उठाकर की जा रही है. तभी मौजूदा वित्त वर्ष में बाजार से 3 लाख करोड़ से ज्यादा कर्ज लेने का अनुमान है. मौजूदा वित्त वर्ष में फरवरी तक उत्तर प्रदेश की सरकार 57,500 करोड़ और पंजाब की सरकार 20,814 करोड़ रुपए के कर्ज ले चुकी है.
राज्यों को ये कर्ज 7 फीसदी से ऊपर की दर पर मिल रहे हैं. 7 फीसदी की दर तक जब नीतिगत दरें ऐतिहासिक निचले स्तर पर हैं. ब्याज दरें बढ़ने के साथ यह मुश्किल बढ़ती जाएगी. भारत एक नहीं 32 बजटों का देश है. राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के 31 बजट एक साथ रख दें, तो इनका कद केंद्र के एक बजट से ज्यादा हो जाता है. यह बात अलग है कि इसके बाद भी इन बजटों को गंभीरता से नहीं लिया जाता.
मौजूदा वित्त वर्ष के लिए केंद्र सरकार का बजट 37 लाख करोड़ का है. जबकि, राज्यों के बजट के आकार 42 लाख करोड़ से ज्यादा का है (42.95 लाख करोड़). बजट का आकार यानी सरकार साल में कितना खर्च करेंगी. खर्च, घाटे, कर्ज के आंकड़े देखकर आप ये महसूस कर सकते हैं कि चुनाव में जाने से पहले जो नेता आपसे वादे कर रहे थे. शायद उन्होंने अपने ही राज्य का बजट पलट कर नहीं देखा था.
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