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किसानों की आत्महत्या के मामले में राज्य के विदर्भ संभाग की स्थिति सबसे खराब है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | महाराष्ट्र (Maharashtra) में किसानों की आत्महत्याएं (Farmers Suicide) थम नहीं रही हैं. हाल के वर्षों में राज्य की सरकारों ने दो बार कर्ज माफी की है, बावजूद इसके अन्नदाता की समस्या खत्म नहीं हो रहीं. राज्य में 2021 के पहले 11 महीनों में कुल 2498 किसानों ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली. वहीं 2020 में कर्ज के बोझ के तले 2547 किसानों ने आत्महत्या कर ली थी.
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट में महाराष्ट्र के राजस्व विभाग की तरफ से बताया गया है कि कर्जमाफी के बाद भी किसानों की आत्महत्याएं कम नहीं हो रही हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 के जनवरी से नवंबर माह के बीच औरंगाबाद संभाग के 804 और नागपुर संभाग के 309 किसानों ने आत्महत्या की है. कोंकण संभाग में बीते दो साल में किसानों की आत्महत्या के एक भी मामले दर्ज नहीं हुए हैं.
विदर्भ की स्थिति सबसे खराब
किसानों की आत्महत्या के मामले में राज्य के विदर्भ संभाग की स्थिति सबसे खराब है. यहां के अमरावती जिले में 331 और यवतमाल में 270 किसानों ने जान दी है.
सूचना के अधिकार के तहत किसानों की आत्महत्या से जुड़ी जानकारी जुटाने वाले आरटीआई कार्यकर्ता जीतेंद्र घडगे ने बताया कि कर्जमाफी और किसानों के हित में शुरू की गई तमाम योजनाओं के बाद भी आत्महत्या का सिलसिला थम नहीं रहा है.
फसल पैटर्न में बदलाव को प्रोत्साहित करने की जरूरत
विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को कर्जमाफी के दायरे से बढ़कर सोचना होगा. किसानों की मानसिक स्थिति भी आत्महत्या के लिए प्रमुख कारणों में से एक है. आरटीआई कार्यकर्ता ने कहा कि सरकार को कर्जमाफी के बजाय दिवालिया किसानों के लिए एक दिवालिया योजना लाने की जरूरत है. उनका कहना है कि यह किसानों की समस्या को प्रभावी तरीके से समाधान करने में मदद कर सकता है.
शिवाजी यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष ज्ञानदेव तालुले का कहना है कि मराठवाड़ा और विदर्भ के जिलों में सरकार को फसल पैटर्न में बदलाव पर जोर देना चाहिए. इन इलाकों में जलवायु के मुताबिक मोटे अनाज, दाल, तिलहन और सब्जी की खेती को प्रोत्साहित करने का समय आ गया है. इससे किसानों की स्थिति सुधारने में मदद मिलेगी.
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