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वकालत छोड़ बना किसान: LLB पास युवक ने बदली परंपरागत खेती का तरीका, राष्ट्पति और प्रधानमंत्री मोदी भी हुए कायल

jantaserishta.com
19 Jun 2021 10:26 AM GMT
वकालत छोड़ बना किसान: LLB पास युवक ने बदली परंपरागत खेती का तरीका, राष्ट्पति और प्रधानमंत्री मोदी भी हुए कायल
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राष्ट्पति और प्रधानमंत्री मोदी से भी सम्मानित हो चुके है...

यूपी में बाराबंकी के फूलों की खुशबू से लखनऊ से लेकर दिल्ली तक के बाजार महकते हैं. इन फूलों की खेती करने वाले किसान का नाम मोइनुद्दीन है, जिन्होंने अपनी खेती के हुनर से खुद के साथ ज़िले के सैकड़ों किसानों की तकदीर को बदल दिया है. मोइनुद्दीन राष्ट्पति और प्रधानमंत्री मोदी से भी सम्मानित हो चुके है और देश के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम भी इनकी खेती से प्रेरित होकर इनकी सराहना कर चुके हैं.

यही नहीं, फूलों की खेती से प्रभावित होकर गांव के युवा भी इस काम से जुड़े और गांव वालों में कई बार मोइनुद्दीन को देवा ब्लॉक के दफेदार पुरवा गाव का ग्राम प्रधान भी बनाया था. फिलहाल लॉक डाउन की वजह से फूलों की खेती और बिक्री में थोड़ा असर ज़रूर पड़ा है, लेकिन किसान इस खेती के बाद घाटे में नही हैं.
लखनऊ से LLB पास करने के बाद मोइनुद्दीन का मन वकालत की प्रैक्टिस में नही लगा तो वह अपने पुश्तैनी गांव देवा ब्लॉक के दफेदार पुरवा आ गए. यहां परम्परागत खेती को छोड़ फूलों की खेती शुरू की. सबसे पहले एक बीघा खेत मे विदेशी ग्लेडियोलस फूलों की खेती शुरू की थी. पारंपरिक खेती की तुलना में अच्छे मुनाफे ने किसानों का ध्यान इस खेती की ओर खींचा. मोईनुद्दीन से सलाह और मार्गदर्शन लेकर गांव के कुछ किसानों ने इस खेती में अपना हाथ आजमाया. स्टिक और बीजों से हुई अच्छी आय ने किसानों का हौसला बढ़ाया और देखते ही देखते पूरा गांव ग्लेडियोलस की खेती की ओर मुड़ गया. आज हालात यह है कि गांव के अधिकतर किसान फूलों की खेती करने लगे हैं.
मोइनुद्दीन यही नहीं रुके. इसके बाद उन्होंने उद्यान विभाग से सरकारी सब्सिडी लेकर हॉलैंड के विदेशी फूल जरबेरा की खेती के लिए यूपी में पहला पाली हाउस लगवाया. करीब एक एकड़ में बने इस पाली हाउस और 50 बीघा ग्लेडियोलस के फूलों की खेती से मोइनुद्दीन का सालाना टर्न ओवर 90 लाख के आसपास है. आज ज़िले की किसान मोइनुद्दीन को अपना आदर्श मानते हैं और फूलों की खेती से अब जिले में लगभग 15 पोली हाउस बन गए हैं. इस पॉलीहाउस को एक बीघा खेत मे लगाने की लागत लगभग 15 लाख रुपये आती है जिसमे आधा पैसा राज्य सरकार बतौर सब्सिडी वापस करती है.
मोइनुद्दीन ने ये भी बताया कि इस फूलों की खेती को कितने पैसा लगाकर और कैसे कर सकते हैं. खुद किसान मोइनुद्दीन ने बताया कि ग्लेडियोलस फूलों की खेती एक बीघे से शुरू की जिसमे लागत लगभग 40 हज़ार आयी थी और मुनाफा दुगना हुआ था. ये फूल साल में एक बार ही होते है और 5 महीने में तैयार हो जाते हैं.
वही जरबेरा का पोली हाउस एक बीघे में लगाने की लागत लगभग 15 लाख रुपये आती है जिसमे आधा पैसा बतौर सब्सिडी वापस हो जाता है. जरबेरा के फूल साल भर निकलते हैं और एक बीघे में लगभग 5 लाख तक साल में मुनाफा होता है.
इस खेती के फायदे देखकर जिले के अधिकतर किसान फूलों की खेती करने लगे हैं. लगभग एक दशक पहले दफेदार पुरवा गांव के किसान आलू ,धान व मेंथा की परंपरागत खेती करते थे, लेकिन फूलों की खेती का यहां के किसानों को ऐसा चस्का लगा कि अब यहां का प्रत्येक किसान फूलों की खेती करने लगा है.
मोइनुद्दीन ने न सिर्फ अपने खेतों में रंग बिरंगे विदेशी फूल उगाकर गांव के चारों तरफ उसकी महक बिखेरी है, बल्कि उस महक के साथ-साथ अब तक हजारों लोगों को रोजगार भी दिया है. शायद यही वजह है कि गांव में रोजगार पाये लोगों ने मोइनुद्दीन को अपना आदर्श मानते हुए गांव का मुखिया बना दिया था.
मोइनुद्दीन को केंद्र और प्रदेश सरकार प्रगतिशील किसान होने के नाते सम्मानित भी कर चुकी है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने मोइनुद्दीन को "वाइब्रेंट गुजरात" अवार्ड से नवाजा था और 2018 में दिल्ली बुलाकर सम्मनित किया. इसके अलावा भी वह कई अवार्ड पा चुके हैं.
मोइनुद्दीन कहते हैं, "फूलों की खेती ने हमारी तक़दीर के साथ जिले के सैकड़ों किसानों की भी किस्मत बदली है. मैंने LLB की परीक्षा पास करने बाद प्रैक्टिस की. जब मन नही लगा तो अपने गांव वापस आ गया और यहां 2002 में सबसे पहले ग्लेडियोलस के फूलों की खेती की जिसमें दुगना मुनाफा हुआ. इसके बाद 2009 में यूपी का पहला पोली हाउस लगाया. आज इस खेती में बहुत मुनाफा है. हालांकि, खेती का काम काफी मुश्किल था लेकिन पहले मैने आधे एकड़ से फूलों की खेती शुरू की, फिर मुझे पहली बार मे बहुत अच्छा मुनाफा हुआ। इससे मेरा हौसला और बढ़ गया और धीरे धीरे मैंने इस खेती को बढ़ाया. इसके साथ गांव के जो किसान थे उनको भी इस खेती के लिए प्रेरित किया. धीरे धीरे पूरा गांव ही फूलों की खेती से जुड़ गया.
उन्‍होंने आगे कहा, "फिर फूलों की खेती में मैंने और भी क्वालिटी के फूल लगाए. 2009 में विदेशी फूल जरबेरा की खेती के लिए यूपी का पहला पोली हाउस लगाया. उसमें एक एकड़ की खेती में हमारा लगभग 15-20 लाख रुपये की बचत होती है. दोनो फूलों की खेती से हमारा साल का टर्न ओवर 90 लाख के आसपास है. ये बहुत बड़ी रकम थी. इतना फायदा शायद किसी और फसल में नही है."
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