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कृषि वैज्ञानिक ने दी पूरी जानकारी
जामुन के फल अपने औषधि गुण के साथ साथ लोग इसके फलों को खाना बहुत ज्यादा पसंद करते हैं. इसके फलों का जैम, जेली, शराब, और शरबत बनाने में भी उपयोग लिया जाता है. जामुन के नए बाग लगाने के लिए जून, जुलाई , अगस्त का महीना सर्वोत्तम होता है. कई औषधीय गुणों से भरपूर इसके फल गहरे बैंगनी से काले एवं अंडाकार होते हैं. आजकल बाजार में जामुन के फलों का अच्छा मूल्य मिलने के कारण किसान अब इसकी खेती के प्रति जागरूक हो रहे है एवं अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करना चाह रहे है. इससे एक हेक्टेयर जमीन पर तकरीबन 20 लाख रुपये कमाते हैं.
डाक्टर राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्व विद्यालय के एसोसिएट डायरेक्टर और प्रोफेसर डाक्टर एसके सिंह ने टीवी9 भारतवर्ष को बताया कि
जामुन के वृक्ष को उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले प्रदेशों में आसानी से उगाया जा सकता है. जामुन का पूर्ण विकसित पेड़ लगभग 20 से 25 फीट से ज्यादा लम्बाई का होता है. जो एक सामान्य वृक्ष की तरह दिखाई देता है. इसकी खेती के लिए उपजाऊ भूमि की जरूरत होती है.
भूमि-जामुन लगाने के लिए जल निकासी वाली दोमट मिट्टी में ज्यादा उपयुक्त होती है. इसके वृक्ष को कठोर और रेतीली भूमि में नही उगाना चाहिए. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 6 से 8 के बीच में होना चाहिए.
जलवायु-जामुन को उष्णकटिबंधीय जलवायु वाली जगहों पर सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है. भारत में इसे ठंडे प्रदेशों को छोड़कर कहीं पर भी लगाया जा सकता है . इसके पेड़ पर सर्दी, गर्मी और बरसात का कोई ख़ास असर देखने को नही मिलता .
लेकिन जाड़े में पड़ने वाला पाला और गर्मियों में अत्यधिक तेज़ धूप इसके लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है. इसके फलों को पकने में वर्षा का ख़ास योगदान होता है. लेकिन फूल बनने के दौरान होने वाली वर्षा इसके लिए नुकसानदायक होती है.जामुन के बीजों के अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की आवश्यकता होती है. अंकुरित होने के बाद पौधों को विकास करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है.
जामुन की उन्नत किस्में-जामुन की कई उन्नत किस्में विकसित की गई हैं एवं कई किस्में जनता की पसंद की वजह से लोकप्रिय है
काथा , भादो, राजा जामुन
गोमा प्रियंका इस किस्म का विकास केन्द्रीय बागवानी प्रयोग केन्द्र गोधरा, गुजरात के द्वारा किया गया है.
सी.आई.एस.एच. जे – 45सी.आई.एस.एच. जे – 37
इस किस्म का विकास सेंट्रल फॉर सब-ट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर ,लखनऊ, उत्तर प्रदेश द्वारा किया गया है. इस किस्म के फल के अंदर बीज नहीं होते. इस किस्म के फल सामान्य मोटाई वाले अंडाकार दिखाई देते हैं.
जिनका रंग पकने के बाद काला और गहरा नीला दिखाई देते है. इस किस्म के फल रसदार और स्वाद में मीठे होते हैं. इस किस्म के पौधे गुजरात और उत्तर प्रदेश में अधिक उगाये जाते हैं.
उपरोक्त प्रजातियों के अलावा और भी कई किस्में हैं जिनकी अलग अलग प्रदेशों में उगाकर अच्छी पैदावार ली जाती हैं. जिनमें नरेंद्र 6, कोंकण भादोली, बादाम, जत्थी और राजेन्द्र 1 जैसी कई किस्में शामिल हैं.
जामुन की खेती से होगी लाखों में कमाई
जामुन के पेड़ 4 से 5 वर्ष के बाद फल आने लगता है लेकिन लगभग 8 साल बाद पूर्ण रूप से फल देना शुरू करते हैं. पूर्ण रूप से तैयार होने के बाद एक पौधे से 80 से 90 किलो तक जामुन प्राप्त हो जाती है,जबकि एक हेक्टेयर में इसके लगभग 250 से ज्यादा पेड़ लगाए जा सकते हैं.
जिनका कुल उत्पादन 25000 किलो तक प्राप्त हो जाता है.जिसका बाज़ार भाव 100 से 120 रूपये किलो के आसपास पाया जाता हैं. इस हिसाब से एक बार में एक हेक्टेयर से लगभग 20 लाख तक की कमाई कर सकते हैं.
जामुन की खेती के लिए इन बातों का रखें खास ख्याल
(1) डॉक्टर सिंह आगे बताते हैं कि खेत को समतल बनाने के बाद 7 से 8 मीटर की दूरी पर एक मीटर व्यास वाले डेढ़ से दो फिट गहरे गड्डे तैयार कर लें. इन गड्डों में उचित मात्रा में जैविक और रासायनिक खाद को मिट्टी में मिलकर भर दें.
(2) खाद और मिट्टी के मिश्रण को गड्डों में भरने के बाद उनकी गहरी सिंचाई कर ढक दें .इन गड्डों को बीज या पौध रोपाई के एक महीने पहले तैयार किया जाता है.
(3) जामुन के पौधे बीज और कलम दोनों माध्यम से लगाए जा सकते हैं . लेकिन बीज के माध्यम से लगाए गए पौधे फल देने में ज्यादा वक्त लेते हैं. बीज के माध्यम से पौधों को उगाने के लिए एक गड्डे में एक या दो बीज को लगभग 5 सेंटीमीटर की गहराई में लगाना चाहिए. उसके बाद जब पौधा अंकुरित हो जाए तब अच्छे से विकास कर रहे पौधे को रखकर दूसरे पौधे को नष्ट कर देना चाहिए.
(4) जामुन के पौधे बारिश के मौसम में जून से अगस्त तक लगाने चाहिए. इससे पौधा अच्छे से विकास करता है.क्योंकि बारिश के मौसम में पौधे को विकास करने के लिए अनुकूल तापमान मिलता रहता है. जबकि बीज के माध्यम से इसके पौधे तैयार करने के लिए इन्हें बरसात के मौसम से पहले मध्य फरवरी से मार्च के अंत तक उगाया जाता है उगाया.
(5) गर्मियों के मौसम में पौधों को सप्ताह में एक बार पानी देना चाहिए और सर्दियों के मौसम में 15 दिन के अंतराल में पानी देना पर्याप्त होता है.इसके पौधों को शुरुआत में सर्दियों में पड़ने वाले पाले से बचाकर रखना चाहिए. बारिश के मौसम में इसके पौधे को अधिक बारिश की जरूरत नही होती. जामुन के पेड़ को पूरी तरह से विकसित होने के बाद उसे साल में 5 से 7 सिंचाई की ही जरूरत होती है, जो ज्यादातर फल बनने के दौरान की जाती है.
(7) जामुन के पेड़ों को उर्वरक की सामान्य जरूरत होती है. इसके लिए पौधों को खेत में लगाने से पहले तैयार किये गए गड्डों में 10 से 15 किलो पुरानी सड़ी गोबर की खाद को मिट्टी में मिलाकर गड्डों में भर दें. गोबर की खाद की जगह वर्मी कम्पोस्ट खाद का भी इस्तेमाल भी किया जा सकता है. जैविक खाद के अलावा रासायनिक खाद के रूप में शुरुआत में प्रत्येक पौधों को 100 से 150 ग्राम एन.पी.के. की मात्रा को साल में तीन बार चार चार महीने के अंतर पर देना चाहिए. लेकिन जब पौधा पूर्ण रूप से विकसित हो जाये तब जैविक और रासायनिक दोनों खाद की मात्रा को बढ़ा दें. पूर्ण रूप से विकसित वृक्ष को 50 से 60 किलो जैविक और 1से1.5 किलो रासायनिक खाद की मात्रा साल में चार बार देनी चाहिए.
जब तक पौधे छोटे है तब तक दूसरी फसल उगा सकते है
जामुन के पेड़ों को खेत में 7 से 8 मीटर की दूरी पर तैयार किये गए गड्डों में लगाया जाता है, और इसके वृक्ष लगभग तीन से 5 साल बाद फल देना शुरू करते हैं. इस पेड़ों के बीच खाली बची भूमि में सब्जी, मसाला और कम समय वाली बागबानी फसलों को उगाकर अच्छी खासी कमाई कर सकते है. वैज्ञानिक डाक्टर एस के सिंह के मुताबिक कुछ बीमारियों से बचाने के लिए खास ध्यान रखना जरुरी है जैसे मकड़ी जाला
पत्ती झुलसा, फल और फूल झडन, फल छेदक, पत्तियों पर सुंडी रोग.
फलों की तुड़ाई और सफाई
जामुन के फल पकने के बाद बैंगनी काले रंग के दिखाई देते हैं. जो फूल खिलने के लगभग डेढ़ महीने बाद पकने शुरू हो जाते हैं.फलों के पकने के दौरान बारिश का होना लाभदायक होता है.
इसके फलों की तुड़ाई रोज़ की जानी चाहिए. क्योंकि फलों के गिरने पर फल जल्दी ख़राब हो जाते हैं. इसके फलों की तुड़ाई करने के बाद उन्हें ठंडे पानी से धोना चाहिए.
फलों को धोने के बाद उन्हें जालीदार बाँस की टोकरियों में भरकर पैक किया जाता है.फलों को टोकरियों में भरने से पहले खराब दिखाई देने वाले फलों को अलग कर लेना चाहिए.
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