सहकारिता : कृषि क्षेत्र में सहकारिता आंदोलन के बाद ड्रोन क्रांति ने भी युवाओं की उम्मीदों को जगा दिया है। दो वर्षों के दौरान देश में कम से कम एक लाख कृषि ड्रोन पायलट की जरूरत होने वाली है, क्योंकि उर्वरकों के तरल संस्करण का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है। इसके लिए बड़ी संख्या में रिमोट प्रशिक्षित पायलट की आवश्यकता पड़ेगी, किंतु अभी देश में सिर्फ 12 सौ कृषि ड्रोन और पांच हजार प्रशिक्षित पायलट ही उपलब्ध हैं। जिस तेजी से तरल उर्वरकों एवं दवाओं का प्रयोग बढ़ने वाला है, उसके अनुसार वर्तमान में पायलट एवं ड्रोन की संख्या बहुत ही कम है।देश में नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) से अनुशंसित कृषि ड्रोनों की संख्या बढ़ाने के लिए इफको ने हाल में ही बड़ी पहल की है। वह पांच कंपनियों से करार कर ढाई हजार से ज्यादा कृषि ड्रोन खरीदने जा रही है। डीजीसीए से पहली प्रमाणित कंपनी होने के चलते आयोटेक वर्ल्ड एविगेशन को सबसे ज्यादा पांच सौ ड्रोन बनाने का जिम्मा मिला है। कंपनी के संस्थापक दीपक भारद्वाज ने दावा किया कि इसी वर्ष के अंत तक सभी पांच सौ ड्रोन उपलब्ध करा दिया जाएगा। शेष अन्य कंपनियों से भी चार-चार सौ ड्रोन का अनुबंध किया गया है।भारत की योजना परंपरागत खाद के स्थान पर कुछ वर्षों में तरल खाद का प्रयोग बढ़ाकर उर्वरकों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की है। उर्वरक मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि देश में तरल खाद बनाने के तीन प्लांट ही अभी चालू हैं।