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अभिभावक तय करने में बच्चे के कल्याण को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है।
कोरोना की दूसरी लहर के बीच अनाथ होने वाले बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इस हालत में परिवार के सदस्यों को समझ नहीं आ रहा है कि वो क्या करें? ऐसे समय में अगर आप माता-पिता हैं तो अपकी पहली चिंता बच्चे के भविष्य को लेकर होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा हालत को देखते हुए माता-पिता को एक वसीयत जरूर बना देनी चाहिए और उस वसियत में अपने छोटे बच्चे का अभिभावक तय करना नहीं भूलना चाहिए।
वसीयत कानून के तहत बच्चे की उम्र 18 साल तक अभिभावक के पास वित्तीय फैसले लेने और दूसरे अधिकार होते हैं। हिन्दु कानून के मुताबिक, किसी बच्चे का स्वभाविक अभिभावक उसका माता-पिता होता है। पिता की मृत्यु के बाद उस बच्चे का स्वभाविक अभिभावक मां बन जाती है। हालांकि, दोनों के जाने पर बच्चों का अभिभावक बनाना जरूरी है। कोरोना काल के इस दौर में बच्चों के दीर्घकालिक कल्याण की सुरक्षा को नजर में रखते हुए वसीयत बनाने की जरूरत है।
कोर्ट की मदद भी लेना संभव
अगर, किसी वसीयत में अभिभावक का नाम नहीं दिया है तो ऐसी स्थिति में कोर्ट की मदद ली जा सकती है। हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 के तहत यह अधिकार दिया गया है। वसीयत में अभिभावक का नाम होने पर परिवार का कोई सदस्य कोर्ट से अभिभावक तय करने के लिए आवेदन कर सकता है। अदालत, जब यह तय करती है कि अभिभावक के रूप में किसे नियुक्त किया जाए तो विभिन्न कारकों जैसे कि उम्र, लिंग, माता-पिता की इच्छा और बच्चे के व्यक्तिगत कानून को ध्यान में रखती है। अभिभावक तय करने में बच्चे के कल्याण को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है।
Neha Dani
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