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मछलियों की बीमारियां और इलाज, ये पढ़ें उनसे जुड़ी बीमारियां और इलाज
Shiddhant Shriwas
14 Oct 2021 5:42 AM GMT
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भारत में मछली पालन से काफी संख्या में किसान जुड़ रहे हैं. खास कर नये युवा इस क्षेत्र में आ रहे हैं
भारत में मछली पालन से काफी संख्या में किसान जुड़ रहे हैं. खास कर नये युवा इस क्षेत्र में आ रहे हैं. सरकार भी मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है और कई योजनाएं भी चला रही है. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना उन्हीं योजनाओं में से एक है. ऐसे में मछली पालकों के लिए यह जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि मछलियों में कौन कौन सी बीमारी होती है और उनके निवारण के उपाय क्या हैं.
सैपरोलगनियोसिस
लक्षण : शरीर पर रूई के गोल की भांति सफेदी लिए भूरे रंग के गुच्छे उग जाते हैं.
उपचारः 3 प्रतिशत साधारण नमक घोल या कॉपर सल्फेट के 1:2000 सान्द्रता वाले घोल में 1:1000 पोटेशियम के घोल में 1-5 मिनट तक डुबाएं फिर तालाब में डालें. छोटे तालाबों में एक ग्राम मैलाकाइट ग्रीन को 5-10 मी० पानी में डाले. यह प्रभावकारी इलाज है.
बैंकियोमाइकोसिस
लक्षण : गलफड़ों का सड़ना, दम घुटने के कारण रोगग्रस्त मछली ऊपरी सतह पर हवा पीने का प्रयत्न करती है. बार-बार मुंह खोलती और बंद करती है.
उपचारः प्रदूषण की रोकथाम, मीठे पानी से तालाब में पानी के स्तर को बढ़ाकर या 50-100 कि०ग्रा०/हे० चूने का प्रयोग या 3-5 प्रतिशत नमक के घोल में स्नान या 0.5 मीटर गहराई वाले तालाबों में 8 कि०ग्रा०/हे० की दर से कॉपर सल्फेट का प्रयोग करना.
फिश तथा टेलरोग
लक्षण : आरम्भिक अवस्था में पंखों के किनारों पर सफेदी आना, बाद में पंखों तथा पूंछ का सड़ना.
उपचार : पानी की स्वच्छता फोलिक एसिड को भोजन के साथ मिलाकर इमेक्विल दवा 10 मि०ली० प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर रोगग्रस्त मछली को 24 घंटे के लिए घोल में (2-3 बार) एक्रिप्लेविन 1 प्रतिशत को एक हजार ली० पानी में 100 मि०ली० की दर से मिलाकर मछली को घोल में 30 मिनट तक रखना चाहिए.
अल्सर (घाव)
लक्षण : सिर, शरीर तथा पूंछ पर घावों का पाया जाना.
उपचार : 5 मि०ग्रा०/ली० की दर से तालाब में पोटाश का प्रयोग, चूना 600 कि०ग्रा०/हे०मी० (3 बार सात-सात दिनों के अन्तराल में), सीफेक्स 1 लीटर पानी में घोल बनाकर तालाब में डाले
ड्राप्सी (जलोदर)
लक्षण :आन्तरिक अंगो तथा उदर में पानी का जमाव
उपचार : मछलियों को स्वच्छ जल व भोजन की उचित व्यवस्था, चूना 100 कि०ग्रा०/हे० की दर से 15 दिन के उपरान्त (2-3 बार) तालाब में डालें.
प्रोटोजोन रोग "कोस्टिएसिस"
लक्षण : शरीर एवं गलफड़ों पर छोटे-छोटे धब्बेदार विकार
उपचार : 50 पी०पी०एम० फोर्मीलिन के घोल में 10 मिनट या 1:500 ग्लेशियल एसिटिक एसिड के घोल में 10 मिनट
कतला का नेत्र रोग
लक्षण : नेत्रों में कॉरनिया का लाल होना प्रथम लक्षण, अन्त में आंखों का गिर जाना, गलफड़ों का फीका रंग इत्यादि
उपचार : पोटाश 2-3 पी०पी०एम०, टेरामाइसिन को भोजन 70-80 मि०ग्रा० प्रतिकिलो मछली के भार के (10 दिनों तक), स्टेप्टोमाईसिन 25 मि०ग्रा० प्रति कि०ग्रा० वजन के अनुसार इन्जेक्शन का प्रयोग
इकथियोपथिरिऑसिस (खुजली या सफेददाग)
लक्षण : अधिक श्लेष्मा का स्त्राव, शरीर पर छोटे-छोटे अनेक सफेद दाने दिखाई देना
उपचार : 7-10 दिनों तक हर दिन, 200 पी०पी०एम० फारगीलन के घोल का प्रयोग स्नान घंटे, 7 दिनों से अधिक दिनों तक 2 प्रतिशत साधारण घोल का प्रयोग,
ट्राइकोडिनिओसिस तथा शाइफिडिऑसिस
लक्षण : श्वसन में कठिनाई, बेचैन होकर तालाब के किनारे शरीर को रगड़ना, त्वचा तथा गलफड़ों पर अत्याधिक श्लेष स्त्राव, शरीर के ऊपर
उपचार : 2-3 प्रतिशत साधारण नमक के घोल में (5-10 मिनट तक), 10 पी०पी०एम० कापर सल्फेट घोल का प्रयोग, 20-25 पी०पी०एम० फार्मोलिन का प्रयोग
मिक्सोस्पोरोडिऑसिस
लक्षण : त्वचा, मोनपक्ष, गलफड़ा और अपरकुलम पर सरसों के दाने
उपचार : 0.1 पी०पी०एम० फार्मोलिन में, 50 पी०पी०एम० फार्मोलिन में 1-2 बराबर सफेद कोष्ट मिनट डुबोए, तालाब में 15-25 पी०पी०एम० फार्मानिल हर दूसरे दिन, रोग समाप्त होने तक उपयोग करें, अधिक रोगी मछली को मार देना चाहिए तथा मछली को दूसरे तालाब में स्थानान्तरित कर देना चाहिए.
कोसटिओसिस
लक्षण : अत्याधिक श्लेषा, स्त्राव, श्वसन में कठिनाई और उत्तेजना
उपचार : 2-3 प्रतिशत साधारण नमक 50 पी०पी०एम० फार्मोलिन के घोल में 5-10 मिनट तक या 1:500 ग्लेशियस एसिटिक अम्ल के घोल में स्नान देना (10 मिनट तक)
डेक्टायलोगारोलोसिस तथा गायरडैक्टायलोसिक (ट्रेमैटोड्स)
लक्षण : प्रकोप गलफड़ों तथा त्वचा पर होता है तथा शरीर में काले रंग के कोष्ट
उपचार : 500 पी०पी०एम० पोटाश ओ (ज्ञक्दवद) के घोल में 5 मिनट बारी-बारी से 1:2000, एसिटिक अम्ल तथा सोडियम क्लोराइड 2 प्रतिशत के घोल में स्नान देना.
डिपलोस्टोमियेसिस या ब्लैक स्पाट रोग
लक्षण : शरीर पर काले धब्बे
उपचार : परजीवी के जीवन चक्र को तोड़ना चाहिए. घोंघों या पक्षियों से रोक
लिगुलेसिस (फीताकृमि)
लक्षण : कृमियों के जमाव के कारण उदर फूल जाता है.
उपचार : परजीवी के जीवन चक्र को तोड़ना चाहिए इसके लिए जीवन चक्र से जुड़े जीवों घोंघे या पक्षियों का तालाब में प्रवेश वर्जित, 10 मिनट तक 1:500 फाइमलीन घोल में डुबोना, 1-3 प्रतिशत नमक के घोल का प्रयोग.
आरगुलेसिस
लक्षण : कमजोर विकृत रूप, शरीर पर लाल छोटे-छोटे ध्ब्बे इत्यादि
उपचार : 24 घण्टों तक तालाब का पानी निष्कासित करने के पश्चात 0.1-0.2 ग्रा०/लीटर की दर से चूने का छिड़काव गौमोक्सिन पखवाड़े में दो से तीन बार प्रयोग करना उत्तम है. 35 एम०एल० साइपरमेथिन दवा 100 लीटर पानी में घोलकर 1 हे० की दर से तालाब में 5-5 दिन के अन्तर में तीन बार प्रयोग करे.
लरनिएसिस (एंकर वर्म रोग) मत्स्य
लक्षण : मछलियों में रक्तवाहिनता, कमजोरी तथा शरीर पर धब्बे
उपचार : हल्का रोग संक्रमण होने से 1 पी०पी०एम० गैमेक्सीन का प्रयोग या तालाब में ब्रोमोस 50 को 0.12 पी०पी०एम० की दर से उपयोग
अन्य बीमारियां ई०यू०एस० (ऐपिजुऑटिव) अल्सरेटिव सिन्ड्रोम
लक्षण : प्रारम्भिक अवस्था में लाल दागमछली के शरीर पर पाये जाते हैं जो धीरे-धीरे गहरे होकर सड़ने लगते हैं. मछलियों के पेट सिर तथा पूंछ पर भी अल्सर पाए जाते हैं. अन्त में मछली की मृत्यु हो जाती है.
उपचार : 600 कि०ग्रा० चूना प्रति हे० प्रभावकारी उपचार. सीफेक्स / BKC 1 लीटर प्रति हेक्टेयर भी प्रभावकारी है.
Shiddhant Shriwas
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