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नई दिल्ली | भारत को रियायती कीमतों पर तेल बेच रहे रूस ने अब रुपये में लेनदेन करने से इनकार कर दिया है. दरअसल, रूसी यूराल (तेल) की कीमत हाल ही में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के सदस्य देशों के द्वारा तय की गई 60 डॉलर की सीमा को पार कर गई है. जिसके बाद रूस तेल के व्यापार में रुपये के लेनदेन को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है.
दूसरी तरफ, पश्चिमी देशों की ओर से लगाए गए प्रतिबंध के कारण अमेरिकी डॉलर का भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. जिसके बाद भारतीय तेल आयातक रूस से कच्चे तेल के लिए विभिन्न विकल्प की तलाश कर रहे हैं, जिसमें सिंगापुर और हांगकांग के माध्यम से रूसी तेल आयात भी शामिल है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, रूस से कच्चे तेल खरीदने के लिए भारतीय रिफाइनरी कंपनियां आयात के एक छोटे से हिस्से का भुगतान युआन और दिरहम में कर रही हैं. क्योंकि इन दोनों मुद्राओं के उपयोग पर अलग-अलग सीमाएं हैं. वहीं, मामले से अवगत एक अधिकारी ने कहा है कि आयातक सिंगापुर और हांगकांग के माध्यम से व्यापार करने का रास्ता तलाश रहे हैं. दोनों देशों में रूसी तेल के भुगतान के लिए स्थानीय मुद्राओं के साथ-साथ युआन का उपयोग किया जा सकता है.
तेल आयात में बंपर बढ़ोतरी
रियायती कीमतों का फायदा उठाते हुए भारतीय रिफाइनरी कंपनियां रूस से बंपर तेल आयात कर रही हैं. इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि जो रूस, यूक्रेन युद्ध से पहले भारत के लिए एक मामूली निर्यातक देश था. आज भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता देश बन गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2023 में रूस से भारत का कच्चा तेल आयात वित्तीय वर्ष 2022 की तुलना में 14 गुना बढ़ गया है. 2022 में भारत ने सिर्फ 2.2 बिलियन डॉलर का रूसी तेल आयात किया था, जबकि 2023 में भारत ने 31.02 बिलियन डॉलर का रूसी तेल आयात किया है.
भारतीय कंपनियों के लिए तेल का भुगतान सिरदर्द बना
यूक्रेन में हिंसक कार्रवाई के कारण यूरोपीय देश रूस पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाए हुए हैं. चूंकि, जरूरी वस्तुएं जैसे- तेल और गैस, भोजन और दवाओं को इस प्रतिबंध से बाहर रखा गया था. इस वजह से किसी भी देश को रूस के साथ इन वस्तुओं का व्यापार करने से नहीं रोका गया था. भारत ने भी पिछले कुछ समय तक रूसी तेल का ज्यादातर भुगतान अमेरिकी डॉलर में किया था. लेकिन जी-7 देशों ने रूसी तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल की प्राइस कैप लगा रखी है. यानी 60 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर के लेनदेन पर प्रतिबंध है.
तेल व्यापार से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि अब जब रूसी कच्चे तेल की कीमतें प्राइस कैप से ऊपर जाने लगी हैं. कीमतों में बढ़ोतरी और छूट में गिरावट दर्ज की गई है. ऐसे में रूसी तेल का भुगतान करना व्यापारियों के लिए सिरदर्द बन गया है.
अधिकारी ने आगे कहा, रूस भुगतान के रूप में चीनी मुद्रा युआन स्वीकार करने को तैयार है, लेकिन भारत सरकार ने सार्वजनिक उपक्रम वाली तेल कंपनियों को चीनी मुद्रा इस्तेमाल करने से रोकने के लिए एक अनौपचारिक आदेश जारी कर रखा है. हालांकि, प्राइवेट कंपनियों के लिए चीनी मुद्रा के इस्तेमाल से सरकार को कोई आपत्ति नहीं है. सरकार के रुख को देखते हुए प्राइवेट कंपनियों के द्वारा भी इसका इस्तेमाल कम ही किया जा रहा है.
भारतीय कंपनियों के पास क्या हैं विकल्प?
चूंकि, सिंगापुर और हांगकांग भारतीय तेल रिफाइनरी कंपनियों को सिंगापुर डॉलर, हांगकांग डॉलर और युआन में भी भुगतान करने की अनुमति देता है. ऐसे में भारतीय तेल कंपनियों के लिए सिंगापुर और हांगकांग एक पसंदीदा विकल्प के रूप में उभर रहा है.
तेल व्यापार से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि चूंकि, बिलिंग सिंगापुर में की गई होगी. ऐसे में निजी कंपनियां सिंगापुर के माध्यम से तेल खरीद कर रिफाइन भी कर सकती हैं और फिर इसे भारत सरकार सार्वजनिक उपक्रम वाली तेल कंपनियों को बेच भी सकती है. इसमें कोई समस्या नहीं होगी. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि रूस से कोयला आयातक कंपनियां भी अब सिंगापुर और हांगकांग के माध्यम से आयात करने पर विचार कर रही हैं.
रूस से कोयला खरीदने वाले एक ट्रेडर ने बताया कि रूस से कोयले की अधिकांश खरीद अब सिंगापुर या हांगकांग स्थित संस्थाओं के माध्यम से की जा रही है.
भारत क्यों नहीं कर रहा है डॉलर में भुगतान
अंतरराष्ट्रीय व्यापार मुख्यतः अमेरिकी डॉलर में होता है. लेकिन रूस पर अमेरिका समेत कई पश्चिमी देश प्रतिबंध लगाए हुए हैं. इसलिए भारत डॉलर में भुगतान नहीं कर रहा है. अगर भारत रूस को अमेरिकी डॉलर में भुगतान करता है, तो उसे भी सेकेंडरी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है. वहीं, भारत रूबल में भी भुगतान नहीं करना चाहता है क्योंकि प्रतिबंधों के बीच वैश्विक बाजार में रूस की मुद्रा की उचित कीमत हासिल करने में भारत को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है.
रुपये में लेनदेन करने के लिए रूस क्यों तैयार नहीं
अगर रूस अपने सामान का भुगतान रुपये में स्वीकार करता है, तो उसे भारतीय रुपये को एक्सचेंज कराना होगा. लेकिन अमेरिका, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन ने कम से कम सात रूसी बैंकों को सोसाइटी फॉर इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्यूनिकेशन (SWIFT) से बैन कर रखा है. SWIFT ही दुनिया भर के देशों के बैंकों के बीच लेनदेन को सुगम बनाता है.
भारत जिस अनुपात में रूस से आयात करता है, उसका सिर्फ 10 प्रतिशत ही निर्यात करता है. यानी भारत रूस से जितनी राशि का सामान खरीदता है, उससे बहुत ही कम रूस, भारत से खरीदता है, रूस और भारत के बीच बराबरी का आयात-निर्यात ना हो पाने की वजह से रूस के पास जमा भारतीय रुपया बचा रह जाता है.. भारत में रूस की जमा राशि ज्यादा ना हो, इसके लिए भारत ने रूस को भारतीय मुद्रा रुपये को वापस भारतीय पूंजी बाजार में निवेश करने का विकल्प दिया था. लेकिन रूस ने खारिज कर दिया था.
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Harrison
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