केंद्र सरकार ने यूरिया के लिए गैस खरीद में 5 सप्ताह में बचाए 3,288 करोड़
दिल्ली: केंद्र सरकार ने यूरिया के आयात पर निर्भरता घटाने के लिए गैस खरीद प्रक्रिया में बड़ा बदलाव किया है। इससे यूरिया बनाने में उपयोग होने वाली गैस सस्ते में खरीदी जा सकेगी। कम लागत में यूरिया का उत्पादन बढ़ाया जा सकेगा। उर्वरक मंत्रालय ने नवंबर के अंतिम सप्ताह और दिसंबर पूरे माह के लिए ( पांच सप्ताह) गैस खरीद की पूर्व निर्धारित व्यवस्था में बदलाव कर 3,288 करोड़ रुपये बचाए हैं।
सालभर के लिए करीब 350 लाख टन यूरिया की जरूरत: देश में सालभर के लिए करीब 350 लाख टन यूरिया की जरूरत पड़ती है। उर्वरक संयंत्रों की वर्ष में 284 लाख मीट्रिक टन यूरिया उत्पादन की क्षमता है। 30 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन अतिरिक्त प्रयास से कर सकते हैं। मगर, महंगी गैस के चलते उत्पादन अत्यधिक महंगा पड़ता है। अब तक इम्पावर्ड पूल मैंनेजमेंट कमेटी (ईपीएमसी) की तय प्रक्रिया से मंत्रालय गैस खरीद रहा था। इससे गैस के रेट महंगे दर पर आ रहे थे।
मंत्रालय ने गैस खरीद की पूर्व से प्रारंभ कार्रवाई को रोक कर स्पॉट गैस खरीद (मौजूदा मार्केट रेट के हिसाब से) की व्यवस्था लागू की। मंत्रालय के मुताबिक, स्पॉट गैस खरीद प्रक्रिया से 1,26,95,805 मीट्रिक मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट (एमएमबीटीयू) मात्रा में गैस खरीदी गई। इससे ईपीएमसी दर की अपेक्षा 3,287.91 करोड़ की बचत हुई। ईपीएमसी की न्यूनतम दर स्पॉट खरीद में अधिकतम रेट पर गैस की जो कीमत 35 से 64.84 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू थी, स्पॉट दर पर यह 17.2 से 35.451 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू आई।
…तो यूरिया उत्पादन में आत्मनिर्भर हो जाएंगे: यूरिया में उपयोग होने वाली गैस अत्यधिक महंगी होने की वजह से बड़ी मात्रा में इसका आयात करना पड़ता है। यूरिया की कीमत का करीब 90 प्रतिशत गैस खरीदने पर खर्च होता है। गैस यदि सस्ती दर पर मिल सके तो देश यूरिया उत्पादन में आत्मनिर्भर हो सकता है। पिछले वर्ष लगभग 90 लाख टन यूरिया का आयात किया गया था। इस वर्ष 55 लाख टन ही आयात किया गया है। -अरुण सिंघल, सचिव उर्वरक