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देश में इस बार हुआ गेहूं का बंपर उत्पादन, जानिए इस नई स्कीम के बारे में
Apurva Srivastav
20 April 2021 8:45 AM GMT
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केंद्र सरकार शुरू से इस बात पर अड़ी रही कि पंजाब में किसानों को एमएसपी का पैसा डीबीटी के जरिये ही दिया जाएगा
सरकार ने किसानों के लिए नई योजना शुरू की है जिसका नाम है एक राष्ट्र एक एमएसपी एक डीबीटी. जैसा कि नाम से साफ है कि अब पूरे देश में उपज का एक ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय होगा और इस पर सरकार जो खरीद करेगी उसका पैसा किसानों के हाथ में नहीं बल्कि सीधा बैंक खाते (DBT) में जाएगा. पंजाब सहित कुल 11 राज्यों में यह स्कीम लागू हो गई है और अब डीबीटी (डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर) के जरिये उपज का पैसा दिया जा रहा है. ऐसा होने से बिचौलियों या आढ़तियों का रोल लगभग खत्म हो गया है जिन्हें कमीशन एजेंट भी कहा जाता है.
यह स्कीम पंजाब में सबसे ज्यादा चर्चा में रही क्योंकि आढ़तिये हड़ताल पर थे और सरकार भी उनके 'मन की बात' कर रही थी. डीबीटी का एक तरह से सरकार की तरफ से भी विरोध किया गया. इसमें कुछ बदलाव की मांग की गई लेकिन केंद्र सरकार आगे बढ़ गई और अंतत: आढ़तियों की हड़ताल टूट गई है. अब 10 अप्रैल से पंजाब में डीबीटी के तहत गेहूं की खरीद शुरू हो चुकी है. केंद्र ने पहले ही साफ कर दिया था कि अब उपज का पैसा आढ़तिये या कमीशन एजेंट के मार्फत किसानों तक नहीं पहुंचेगा बल्कि सीधा खाते में डाला जाएगा.
पंजाब का विरोध
केंद्र सरकार शुरू से इस बात पर अड़ी रही कि पंजाब में किसानों को एमएसपी का पैसा डीबीटी के जरिये ही दिया जाएगा. अंत में पंजाब सरकार कुछ विरोधों के बावजूद इसे मान गई लेकिन अभी एक काम से उसे छूट मिली है. पंजाब में सभी जमीनों का डिजिटलीकरण करना है. साथ ही उपजों की खरीद का सारा रिकॉर्ड केंद्र सरकार के प्रोक्योरमेंट पोर्टल पर अपलोड किया जाना है.
सरकार ने यह कदम इसलिए उठाने के बारे में सोचा क्योंकि एमएसपी के नाम पर भारी धांधली हो रही थी. रिकॉर्ड डिजिटल होने के बाद सबकुछ ऑनलाइन होगा और भ्रष्टाचार खत्म होगा. हालांकि पंजाब सरकार ने इस काम के लिए अभी छह महीने की छूट मांगी है, उसके बाद डिजिटलीकरण का काम होगा. यह काम सभी राज्यों को करना है और कुछ राज्यों में यह शुरू भी कर दिया गया है.
पारदर्शिता लाने की तैयारी
एक तरफ डीबीटी से एमएसपी के पेमेंट में पारदर्शिता आएगी लेकिन दूसरी तरफ जमीन-खसरा आदि का डिजिटलीकरण नहीं होने से अनाज खरीद का फर्जी रिकॉर्ड दिखाया जा सकता है और इससे किसानों का पैसा मारा जा सकता है. डिजिटलीकरण नहीं होने का सबसे भारी खामियाजा बिहार और यूपी जैसे प्रदेशों में देखा जा सकता है जहां गेहूं की कीमतें काफी सस्ती हैं. यहां सस्ती दर पर गेहूं खरीद कर बाजारों में बड़ी रेट पर बेचा जा सकता है. लैंड रिकॉर्ड ऑनलाइन होने से भ्रष्टाचार कम होगा और किसानों को डायरेक्ट खाते में मिलने वाले पैसे की जानकारी मिलेगी.
बिहार-यूपी का हाल
अभी हाल में बठिंडा में गेहूं लदे दो दर्जन ट्रक पकड़े गए थे जो यूपी और बिहार से चले थे. ये ट्रक कमीशन एजेंट इन राज्यों से मंगाते हैं और काफी सस्ते दाम पर गेहूं मंगाकर अपने गोदामों में जमा कर लेते हैं. बाद में भारी एमएसपी की दर से बेच कर मुनाफाखोरी करते हैं. बिहार में गेहूं की कीमत 1100 रुपये प्रति क्विंटल तक है जबकि पंजाब में इस पर 1975 रुपये एमएसपी मिलती है. इस तरह की धांधली पिछले कई दशकों से चल रही थी. आढ़तिये इस पैसे का इस्तेमाल किसानों को भारी ब्याज पर लोन देने में करते थे. किसानों को मजबूरी में लोन भी लेना होता था.
पहले क्या होता था
पहले किसान आढ़तियों से कर्ज लेकर अपना काम करते थे. इस पर उन्हें भारी ब्याज भी देना होता था. डीबीटी ने इस पूरे सिस्टम को बदल दिया है और अब भारी ब्याज के कर्ज का जंजाल भी खत्म होता दिख रहा है. किसानों को पता था कि वे भारी ब्याज दे रहे हैं लेकिन आढ़तिये आसानी से कर्ज देते थे, इसलिए किसानों को लेने में हिचक नहीं होती थी. पूरा सिस्टम बदलने के बाद कुछ किसान डीबीटी को सही बता रहे हैं तो कुछ का मानना है कि इससे कमीशन एजेंट और किसानों के बीच का रिश्ता खत्म हो जाएगा.
किसानों की अलग-अलग राय
कुछ किसान मानते हैं कि जैसे आढ़तिये पैसे देते थे, वैसे सरकार नही दे पाएगी. सरकार सिर्फ उपज के पैसे देती है लेकिन आढ़तियों से उन्हें कर्ज भी मिल जाता है. भले ही वे उच्च ब्याज दर पर क्यों न लोन लेते हों. किसानों का कहना है कि खेती-बाड़ी अब मुनाफे का काम नहीं रह गया, इसलिए सभी फसलें जब तक एमएसपी के दायरे में नहीं आतीं, तब तक उन्हें कोई फायदा नहीं होगा. इन सबके बीच पंजाब और हरियाणा के उन किसानों की बात भी है जो डीबीटी से खुश हैं और उनके खाते में पैसे डल रहे हैं. एक आंकड़े के मुताबिक, पंजाब के किसानों के खाते में 13.71 करोड़ तो हरियाणा के किसानों के खाते में 735 करोड़ रुपये जमा हो चुके हैं.
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