व्यापार

देश मे बिजनेस के लिए की जा सकती है बासमती चावल की खेती

Apurva Srivastav
16 May 2021 6:29 PM GMT
देश मे बिजनेस के लिए की जा सकती है बासमती चावल की खेती
x
खुशबू से भरपूर बासमती चावल की बिजनेस के लिए खेती देश के सिर्फ 7 राज्यों के 95 जिलों में ही हो सकती है

क्या आप जानते हैं कि स्वाद से खुशबू से भरपूर बासमती चावल (Basmati Rice) की बिजनेस के लिए खेती देश के सिर्फ 7 राज्यों के 95 जिलों में ही हो सकती है. इनमें पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड, दिल्ली, पश्चिम उत्तर प्रदेश के 30 और जम्मू-कश्मीर के तीन जिले (जम्मू, कठुआ और सांबा) शामिल हैं. यह क्षेत्र बासमती चावल का उत्पादन और बिक्री दोनों कर सकते हैं. अन्य जिलों के लोग खाने के लिए उगा सकते हैं लेकिन न तो उसका व्यापार कह सकते हैं और न ही उसे बासमती कह सकते हैं. सरकार ने ऐसा इस चावल की विशिष्टता को संरक्षण देने के लिए तय किया है.

दरअसल, हिमालय की तलहटी में आने वाले इंडो-गंगेटिक प्लेन (IGP-Indo-Gangetic Plains) में आने वाले 95 जिलों को बासमती चावल का जीआई टैग (Geographical Indication) मिला हुआ है. जो चीजें एक खास मौसम, पर्यावरण या मिट्टी में पैदा होती हैं उनके लिए जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग दिया जाता है. जीआई एक तरह से पेटेंट की तरह एक बौद्धिक संपदा अधिकार है.
…तो जेल और जुर्माना दोनों हो सकता है
जीआई टैग से किसी खास प्रोडक्‍ट के साथ क्‍वालिटी अपने आप जुड़ जाती है. किसानों को इससे फसल के अच्‍छे दाम मिलते हैं. जीआई इन 95 जिलों के आर्थिक और उपभोक्ता के गुणवत्ता (Quality) हितों को साधता है. यह टैग अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारत के सुगंधित बासमती चावल की विशिष्ट पहचान बनाए रखने में मदद करता है. इसके अलावा अन्य कहीं भी ट्रेड के लिए इसकी खेती करने पर जुर्माना और जेल दोनों हो सकती है.
मशहूर राइस साइंटिस्ट प्रो. रामचेत चौधरी का कहना है कि बिना मान्यता वाले जिलों में इसकी व्यावसायिक खेती (Commercial Farming) करने पर एक लाख रुपये का जुर्माना और एक साल की सजा हो सकती है. अगर कोई ट्रेडर ऐसा कर रहा है तो ट्रेडिंग लाइसेंस कैंसिल हो सकता है. लेकिन ऐसा तब होता है जब कोई केस करे.
कब मिली मान्यता कौन देता है टैग
बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन (BEDF) के प्रिंसिपल साइंटिस्ट रितेश शर्मा ने टीवी-9 डिजिटल से बातचीत में बताया कि जियोग्राफिकल इंडीकेशन का इस्तेमाल ऐसे प्रोडक्ट के लिए किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है. इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषता एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण ही होती है.
भारतीय संसद के आदेश पर 2008 में एपीडा (APEDA) ने जीआई के लिए अप्लाई किया. तमाम सुनवाई, दावे और आपत्तियों के बाद 2015 में सात राज्यों के लिए बासमती को जीआई टैग मिला. बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड (IPAB) के अधीन आने वाला चेन्नई स्थित जीआई रजिस्ट्री यह टैग जारी करता है.
क्यों विशिष्ट है यह चावल
शर्मा के मुताबिक इंडो-गंगेटिक प्लेन में आने वाले क्षेत्र के पानी, मिट्रटी, हवा और तापमान के आधार पर यहां के बासमती में ऐसे गुण हैं जो दुनिया में कहीं और नहीं पाया जाता. इसीलिए बासमती को क्वीन ऑफ राइस बोलते हैं. यदि यह इस एरिया पैदा नहीं हो तो क्वालिटी नहीं आएगी. फिर बासमती का नाम खराब होगा कि यह बढ़िया नहीं है. यदि इसे दूसरे क्षेत्र में पैदा किया जाएगा तो इसके मूल एरिया के साथ चीटिंग होगी. यही नहीं इसके उपभोक्ताओं के साथ भी ठगी होगी क्योंकि वो तो इसे ऊंचे दाम पर इसकी विशिष्टता की वजह से खरीद रहा है.
क्यों महत्वपूर्ण है जीआई
मध्य प्रदेश सरकार अपने 13 जिलों में बासमती के जीआई टैग के लिए मुकदमेबाजी में फंसी हुई है. वो विदिशा, श्योपुर, रायसेन, सीहोर, भिंड, मुरैना, ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, गुना, होशंगाबाद, जबलपुर और नरसिंहपुर के लिए यह टैग मांग रही है. लेकिन एपीडा और जीआई रजिस्ट्री दोनों मध्य प्रदेश के इस दावे को खारिज करते रहे हैं.
इस मामले में पंजाब मध्य प्रदेश के खुलेआम खिलाफ खड़ा है. पंजाब सरकार और एपीडा दोनों का कहना है कि यदि मध्य प्रदेश को बासमती उत्पादक राज्य माना गया तो बासमती पैदा करने वाले मूल राज्यों के किसानों को आर्थिक चोट पहुंचेगी. इसकी गुणवत्ता पर असर पड़ेगा.
अगर जीआई मिलेगा तो पंजाब, हरियाणा की तरह मध्य प्रदेश भी चावल को एक्सपोर्ट करके अच्छा पैसा कमाएगा. भारत हर साल ईरान, सऊदी अरब, यूएई, यमन, कुवैत, यूएसए, इराक, यूके, कतर और ओमान आदि को करीब 30 हजार करोड़ रुपये का बासमती चावल एक्सपोर्ट (Export) करता है.
उत्तर प्रदेश में बासमती के जीआई वाले जिले
पश्चिमी यूपी के बागपत, शामली, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, हापुड़, बुलंदशहर, बिजनौर, संभल, अमरोहा, अलीगढ़, एटा, कासगंज, हाथरस, मथुरा, आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा, औरैया, कन्नौज, फर्रुखाबाद, बदायूं, बरेली, मुरादाबाद, रामपुर, पीलीभीत, शाहजहांपुर में इसकी खेती वैध है.
इसके अलावा पूरे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड, दिल्ली व जम्मू, कठुआ और सांबा में इसकी खेती को सरकारी मान्यता है.


Next Story