व्यापार
सरकार से मसूर और छोले से इंपोर्ट ड्यूटी कम करने की अपील, उठी मांग
Apurva Srivastav
20 May 2021 6:41 PM GMT
x
भारत को छोले (काबुली चना) और दलहन में मसूर दाल के संबंध में डिमांड-सप्लाई की स्थिति में अंतर का सामना करना पड़ रहा है
भारत को छोले (काबुली चना) और दलहन में मसूर दाल के संबंध में डिमांड-सप्लाई की स्थिति में अंतर का सामना करना पड़ रहा है. सरकार को आने वाले महीनों में विदेशों से खरीद को प्रोत्साहित करने के लिए इन दो दलहनों के आयात शुल्क पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है. भारतीय दलहन एवं अनाज संघ (आईपीजीए) ने इस बात की सरकार से अपील की है.
मौजूदा समय में, छोले और मसूर दाल के दुनिया का यह सबसे बड़ा उपभोक्ता देश भारत आयातित मसूर दाल पर 50 प्रतिशत और आयातित छोले (काबुली चना) पर 66 प्रतिशत का शुल्क लगाता है. घरेलू किसानों के हितों की रक्षा के लिए शुल्क अधिक रखा गया है. भारत मसूर दाल और छोले का आयात ऑस्ट्रेलिया और कई अन्य देशों से करता है.
आईपीजीए के कार्यकारिणी समिति के सदस्य सौरभ भरतिया ने एक वेबिनार के दौरान कहा, 'वर्ष 2021 में, भारत में सभी दालें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से ऊपर कारोबार कर रहे हैं और सरकारी स्टॉक में गिरावट आई है. दोनों ही दिखाते हैं कि पिछले खरीफ और रबी सत्र में हमारे दालों के उत्पादन में निश्चित रूप से समस्याएं रहीं हैं.'
66 प्रतिशत इंपोर्ट ड्यूटी ने आयात मुश्किल बना दिया है
उन्होंने यह भी कहा कि भारत के आयात में ऑस्ट्रेलियाई मसूर की हिस्सेदारी पिछले सात-आठ वर्षों में 10-15 प्रतिशत रही है और दिसंबर 2017 तक देश की लगभग 80-90 प्रतिशत छोले (काबुली चना) की जरूरत ऑस्ट्रेलिया से पूरी होती रही है. आईपीजीए द्वारा जारी एक बयान में यह कहा गया है. भरतिया ने बयान में कहा है, 'हालांकि, भारत सरकार द्वारा लगाए गए 66 प्रतिशत आयात शुल्क ने ऑस्ट्रेलिया से (छोला) आयात करना मुश्किल बना दिया है, जिसके परिणामस्वरूप ये आयात लगभग शून्य हो गया है.'
भारत में मसूर की स्थिति पर, आईपीजीए के पूर्वी क्षेत्र के संयोजक अनुराग तुलशान ने कहा कि मौजूदा आपूर्ति और मांग की स्थिति तंग है. 'सरकार को आगे आकर शुल्क ढांचे के संबंध में कुछ बदलाव करने की जरूरत है, ताकि आगे जाकर अधिक आयात की खेप को प्राप्त किया जा सके.' उन्होंने कहा कि भारत को इस साल जुलाई से दिसंबर के बीच कम से कम पांच लाख टन दलहन आयात करने की जरूरत है.
उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में, भारत में लगभग 3,50,000 – 4,00,000 टन लाल मसूर है, जिसमें लगभग 2,00,000 टन आयातित लाल मसूर और 1,50,000-2,00,000 टन भारतीय देसी लाल मसूर शामिल हैं. उन्होंने कहा कि यह ढाई महीने तक चलना चाहिए जिसके बाद देश को और अधिक आयात करने की आवश्यकता होगी.
भारत में दाल की खपत 20 लाख टन प्रति वर्ष
तुलशान ने कहा कि भारत सरकार का अनुमान है कि फसल वर्ष 2020-21 (जुलाई-जून) में दाल का उत्पादन 13.5 लाख टन का होगा, लेकिन व्यापार अनुमान कहीं कम है. उन्होंने कहा कि फसल का रकबा कम है और मौजूदा कीमतें इसकी गवाह हैं. उन्होंने कहा कि भारत में दाल की कुल खपत लगभग 18 से 20 लाख टन प्रति वर्ष की है, जो हर महीने लगभग 1,50,000-1,70,000 टन बैठता है. उन्होंने कहा, 'इसलिए हमारी दाल के आयात पर निश्चित रूप से निर्भरता हैं.'
पल्स ऑस्ट्रेलिया के निदेशक निक पाउटनी ने कहा कि अगर ऑस्ट्रेलिया वर्ष 2021-22 में 5,00,000 टन मसूर की फसल का उत्पादन करता है, तो भारत से सीमित मांग के लिए निर्यात करना अपेक्षाकृत आसान होगा. नाफेड ने इस साल 14 अप्रैल तक लगभग 2,48,000 टन चने की खरीद की थी, जो 27 लाख टन के लक्ष्य से काफी कम है.
Apurva Srivastav
Next Story