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अलर्ट: गलत मंसूबों को अंजाम देने WhatsApp छोड़ पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों ने शुरू किया इन मैसेजिंग ऐप्स का इस्तेमाल

Gulabi
24 Jan 2021 2:54 PM GMT
अलर्ट: गलत मंसूबों को अंजाम देने WhatsApp छोड़ पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों ने शुरू किया इन मैसेजिंग ऐप्स का इस्तेमाल
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जहां एक और वॉट्सऐप की प्राइवेसी को लेकर बहस हो रही है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जहां एक और वॉट्सऐप की प्राइवेसी को लेकर बहस हो रही है वहीं पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन और उनके आका एक नए ऐप पर शिफ्ट हो रहे हैं. यह ऐप एक तुर्की की कंपनी द्वारा डेवलप किया गया है. इस बात की जानकारी सुरक्षा अधिकारियों ने दी है.


अधिकारियों ने बताया कि आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ के बाद जुटाए गए सबूतों और आत्मसमर्पण करने वाले आतंकवादियों द्वारा पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों की ओर से कट्टरपंथी बनाए जाने की प्रक्रिया की दी गई जानकारी से तीन नए ऐप के बारे में पता चला है. हालांकि, सुरक्षा कारणों से इन मैसेजिंग ऐप के नाम की जानकारी नहीं दी गई.


अधिकारियों ने इतना बताया कि इनमें से एक ऐप अमेरिकी कंपनी का है जबकि दूसरा ऐप यूरोप की कंपनी द्वारा संचालित है. उन्होंने बताया कि इन दिनों जिस ऐप का आतंकवादी संगठन और उनके आका और कश्मीर घाटी में उनके संभावित सदस्य जिस ऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं वो तर्की की कंपनी ने डेवलप किया है. यह ऐप स्लो इंटरनेट स्पीड और टूजी कनेक्शन पर भी काम करता है.

गौरतलब है कि सरकार ने अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा वापस लेने के बाद यहां पर इंटरनेट सेवाएं स्थगित कर दी थीं और करीब एक साल बाद टूजी सेवा बहाल की गई थी.

सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि इंटरनेट बाधित होने से आतंकवादी समूहों द्वारा वॉट्सऐप और फेसबुक मैसेंजर का इस्तेमाल लगभग बंद हो गया था. बाद में पता चला कि वे नए ऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं जो वर्ल्ड वाइड वेब पर मुफ्त में उपलब्ध हैं.

पूरी तरह से एन्क्रिप्टेड हैं ये ऐप्स

उन्होंने बताया कि इस ऐप में एन्क्रिप्शन एवं डीक्रिप्शन सीधे डिवाइस में होता है ऐसे में इसमें तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप की संभावना कम होती है और यह ऐप एन्क्रिप्शन अल्गोरिदम आरएसए- 2048 का इस्तेमाल करता है जिसे सबसे सुरक्षित एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म माना जाता है. आपको बता दें कि आरएसए अमेरिकी नेटवर्क सिक्योरिटी एंड ऑथेंटिकेशन कंपनी है जिसकी स्थापना वर्ष 1982 में की गई थी. आरएसए का पूरी दुनिया में इस्तेमाल क्रिप्टोसिस्टम के आधार के तौर पर होता है.

अधिकारियों ने बताया कि आतंकवादियों द्वारा कश्मीर घाटी में युवाओें को कट्टरपंथी बनाने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे एक ऐप में फोन नंबर या ई-मेल पते की भी जरूरत नहीं होती है जिससे इस्तेमाल करने वाले की पहचान पूरी तरह से गोपनीय रहती है. उन्होंने बताया कि जम्मू-कश्मीर में ऐसे ऐप को बाधित करने की कोशिश की जा रही है.

वर्चुअल SIM का भी कर रहे हैं इस्तेमाल

अधिकारियों ने बताया कि यह मामला तब सामने आया है जब घाटी में सुरक्षा एजेंसियां वर्चुअल सिम कार्ड के खतरे से लड़ रही हैं. आतंकवादी समूह पाकिस्तान में अपने आकाओं से संपर्क करने के लिए लगातार इनका इस्तेमाल कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि 2019 में वर्चुअल सिम के इस्तेमाल के बारे में पता चला जब इसे अमेरिका से पुलवामा हमले को अंजाम देने वाले जैश ए मोहम्मद के आत्मघाती हमलावर द्वारा इस्तेमाल किया गया. इस हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे.

हालांकि, राष्ट्रीय अन्वेषण एजेंसी और अन्य सुरक्षा एजेंसियों की जांच में संकेत मिला कि 40 वर्चुअल सिम का इस्तेमाल अकेले पुलवामा हमले में किया गया और संभवत: घाटी में और ऐसे सिम का इस्तेमाल हो रहा है.

इस टेक्नोलॉजी में कंप्यूटर टेलीफोन नंबर जेनरेट करता है जिसके आधार पर यूजर अपने स्मार्टफोन में ऐप डाउनलोड कर सकता है और उसका इस्तेमाल कर सकता है.


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