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अलर्ट! अगर केले की खेती में जले हुए सिगार जैसा लक्षण दिख रहे, तो जानें कृषि वैज्ञानिक की ये जानकारी

Gulabi
3 Sep 2021 12:06 PM GMT
अलर्ट! अगर केले की खेती में जले हुए सिगार जैसा लक्षण दिख रहे, तो जानें कृषि वैज्ञानिक की ये जानकारी
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केले की खेती में जले हुए सिगार जैसा लक्षण

केले की खेती जैसे अपने देश में किसान ज्यादा करने लगे हैं धीरे धीरे इस फसल से जुड़ी बीमारियां बढ़ने लगी है कुछ वायरस और कुछ मौसम जनित बीमारियां फसल और फल को बर्बाद कर रही है. दो साल पहले सिगार ईण्ड रॉट को एक मामूली रोग माना जाता था. लेकिन अब यह एक बड़ी बीमारी बन चुका है. जिसका मुख्य कारण वातावरण में अत्यधिक नमी का होना है. लगातार बारिश और बाढ़ वाले इलाके में सबसे अधिक पनप रही है. किसानों के लिए सिर दर्द बनी इस बीमारी से निजात पाना जरुरी है.

क्या है यह बीमारी
डा. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय , पूसा , समस्तीपुर, बिहार के अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना के सहनिदेशक अनुसंधान डाक्टर एस के सिंह टीवी9 डिजिटल के जरिए देश के किसान को बताते हैं कि यह रोग फलों के सिरे पर सूखे, भूरे से काले सड़े से दिखाई देता है. कवक की वृद्धि वास्तव में फूल आने की अवस्था से ही शुरू हो जाती है और फलों के परिपक्व होने के समय में या उससे पहले भी दिखाई देते है. प्रभावित क्षेत्र भूरे रंग के कवक विकास से ढके होते हैं जो सिगार के जले हुए सिरे पर राख की तरह दिखते हैं, जिससे सामान्य नाम होता है. भंडारण में या परिवहन के दौरान यह रोग पूरे फल को प्रभावित कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप "ममीकरण (mummification) प्रक्रिया हो सकती है. फलों का आकार असामान्य होता है, उनकी सतह पर फफूंदी दिखाई देती है और त्वचा पर घाव स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं.
सिगार इंड रॉट (Cigar end rot)केले के फलों का एक प्रमुख रोग है.
डाक्टर एस के सिंह के मुताबिक यह मुख्य रूप से कवक ट्रेकिस्फेरा फ्रुक्टीजेना( trachysphaera fructigena) द्वारा
और कभी-कभी एक और कवक वर्टिसिलियम (fungus verticillium) थियोब्रोमे (theobrome) द्वारा भी होता है. इस रोग का फैलाव हवा या बारिश के माध्यम से होता है स्वस्थ ऊतकों को पर कवक का हमला. बरसात के दौरान केले में फूल आने की अवस्था में होता है .
यह फूल के माध्यम से केले को संक्रमित करता है. वहां से यह बाद में फल के सिरे तक फैल जाता है. एक सूखी सड़ांध (dry rot) का कारण बनता है. जो राख के समान होता है जो सिगार, जैसा दिखाई देता है. जिसकी वजह से इस रोग का नाम सिगार ईण्ड रॉट पड़ा.
इस रोग पर नियंत्रण कैसे पाएं
डाक्टर सिंह बताते हैं कि फंगस को नियंत्रित करने के लिए बेकिंग सोडा( Baking soda) पर आधारित स्प्रे का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस स्प्रे को बनाने के लिए 2 लीटर पानी में 25 मिलीलीटर तरल साबुन के साथ 50 ग्राम बेकिंग सोडा को प्रति लीटर पानी में घोलकर घोल तैयार करते है. संक्रमण से बचाव के लिए इस मिश्रण को संक्रमित शाखाओं और आस-पास की शाखाओं पर स्प्रे करें. यह उंगलियों की सतह के पीएच स्तर को बढ़ाता है और कवक के विकास को रोकता है. कॉपर कवकनाशी (copper fungicide) यथा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (copper oxychloride) का स्प्रे भी प्रभावी हो सकते हैं
रासायनिक नियंत्रण ऐसे करें
यदि उपलब्ध हो तो हमेशा जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के साथ एक एकीकृत दृष्टिकोण पर विचार करें. आमतौर पर यह रोग मामूली महत्व का होता है और इसे शायद ही कभी रासायनिक नियंत्रण की आवश्यकता होती है, लेकिन विगत दो साल से इस रोग की उग्रता में भारी वृद्धि देखा जा रहा है क्योंकि अत्यधिक बरसात की वजह से वातावरण में भारी नमी है जो इस रोग के फैलाव के लिए अहम है. प्रभावित गुच्छों को एक बार मैन्कोजेब(mancozeb), ट्रायोफेनेट मिथाइल(triophenate methyl) या मेटलैक्सिल (metalaxyl)@1ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव किया जा सकता है और बाद में प्लास्टिक के साथ कवर किया जा सकता है.
डाक्टर सिंह इस रोग को कैसे खत्म करने के लिए यह उपाय करने का सुझाव दे रहे हैं
> रोगरोधी किस्मों का प्रयोग करें
> केला के बाग में उचित वातायन का प्रबंध करें. पौधों से पौधे एवं पंक्ति से पंक्ति के बीच उचित दूरी बनाए रक्खे.
> खेत के दौरान पौधों के ऊतकों को नुकसान से बचाए.
> उपकरण और भंडारण सुविधाओं को पूरी तरह से साफ सुथरा रक्खे
> बरसात के मौसम में केले के फलों को बचाने के लिए प्लास्टिक की आस्तीन का प्रयोग करें.
> केले के पत्तों की छँटाई करें नमी को कम करने के लिए बाग में उचित वातायान का प्रबंध करें.
> गुच्छा में फल लगने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद नीचे लगे नर पुष्प को काट कर हटा दे .
> सभी सुखी एवं रोगग्रस्त पत्तियों को नियमित रूप से काट कर हटाते रहे ,खासकर बरसात के मौसम में
> रोग से संक्रमित केला के फल (उंगलियों ) को काट कर हटा देना चाहिए..
>संक्रमित पौधों के हिस्सों को जला दें या उन्हें खेतों में गाड़ दें
जहां केले की खेती नहीं होती है. केला को कभी भी 13 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर स्टोर नही करें
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