मिर्गी का इलाज अभी भी काफी जटिल बना हुआ है। इसे सरल बनाने के लिए यूनिवर्सिटी कालेज, लंदन (यूसीएल) के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने विशिष्ट आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) प्रोग्राम विकसित किया है। यह एआइ प्रोग्राम मस्तिष्क की बारीक से बारीक उन विसंगतियों का पता लगाने में सक्षम है, जो आगे चलकर मिर्गी के दौरे के कारण बनते हैं।
अल्गोरिद्म वाले इस प्रोग्राम का उपयोग मल्टी सेंटर एपलेप्सी लीशन डिटेक्शन (एमईएलडी) प्रोजेक्ट में किया गया। इसमें ड्रग प्रतिरोधी फोकल कार्टिकल डिस्प्लालिया (एफसीडी) में होने वाली विसंगतियों के स्थान की रिपोर्ट मिली। एफसीडी- मिर्गी का एक प्रमुख कारण है। यह प्रोग्राम 22 अंतरराष्ट्रीय एपलेप्सी सेंटरों के एक हजार से अधिक रोगियों के एमआरआइ के विश्लेषण के आधार पर बनाया गया है।
मस्तिष्क में अनुचित तरीके से एफसीडी होना अक्सर ड्रग प्रतिरोधी मिर्गी का कारण बनता है। आमतौर पर इसके इलाज के लिए सर्जरी की प्रक्रिया अपनाई जाती है। हालांकि, एमआरआइ पर घावों का पता लगाना डाक्टरों के लिए एक निरंतर समस्या बनी हुई है, क्योंकि एफसीडी के लिए एमआरआइ स्कैन सामान्य दिखाई दे सकता है।
विज्ञानियों ने पूरे मस्तिष्क में तीन लाख से ज्यादा स्थानों की जांच कर एमआरआइ स्कैन से कार्टिकल गुणों को आकलित करने का प्रयास किया। इसमें यह पता लगाना था कि कार्टेक्स या मस्तिष्क की सतह कितनी मोटी या मुड़ी हुई होती है।
इसके आधार पर रेडियोलाजिस्ट यह तय करते हैं कि मस्तिष्क स्वस्थ है या उसमें एफसीडी है। यह मस्तिष्क का पैटर्न बताता है। ब्रेन जर्नल में प्रकाशित इस शोध निष्कर्ष के अनुसार, अध्ययन में शामिल किए गए 538 प्रतिभागियों में से सामान्य तौर पर यह अल्गोरिद्म एफसीडी का पता लगाने में 67 प्रतिशत तक सफल रहा।
इसके पहले रेडियोलाजिस्ट एमआरआइ के आधार पर 178 रोगियों के मस्तिष्क में विसंगतियों का पता लगाने में विफल रहे थे। जबकि एमईएलडी अल्गोरिद्म से वे उनमें से 63 प्रतिशत एफसीडी का पता लगाने में सफल रहे।
यूसीएल ग्रेट ओरमोंड स्ट्रीट इंस्टीट्यूट आफ चाइल्ड हेल्थ के शोधकर्ता तथा इस शोध के प्रथम सह-लेखक मथिल्डे रिपार्ट ने बताया कि उन्होंने एआइ सिस्टम विकसित करने में इस बात पर फोकस किया कि उसके विश्लेषण से डाक्टरों को निर्णय लेने में मदद मिले। इस प्रक्रिया में अहम चरण डाक्टरों के सामने यह प्रदर्शित करना था कि एमईएलडी अल्गोरिद्म किस प्रकार से रोग का अंदाजा लगाने में सक्षम है।
यूसीएल क्वीन स्क्वायर इंस्टीट्यूट आफ न्यूरोलाजी के शोधकर्ता तथा अध्ययन के सह-वरिष्ठ लेखक डाक्टर कोनार्ड वैगस्टाइल ने बताया कि यह अल्गोरिद्म मिर्गी के रोगियों के मस्तिष्क में गुप्त घाव की पहचान को आसान बनाएगा। इससे उन रोगियों की संख्या बढ़ जाएगी, जिन्हें सर्जरी से फायदा मिल सकता है। साथ ही रोगियों में काग्निटिव फंक्शन में भी सुधार किया जा सकता है।