x
सिंघाड़े की खेती से जुड़ी सभी अहम जानकारी
सिंघाड़ा जिसे अग्रेजी में वाटर चेस्टनट (ट्रैपा नटान) कहते है, भारत में उगाई जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण जलीय फल फसलों में से एक है. यह एक जलीय अखरोट की फसल है जो मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र में पानी में उगाई जाती है. यह झीलों, तालाबों और जहा 2-3 फीट पानी लगा हो, आसानी से उगा सकते है , इसके लिए पोषक तत्वों से भरपूर पानी, जिसमें तटस्थ से थोड़ा क्षारीय पीएच होता है. सफलतापूर्वक इसकी खेती कर सकते है. पौधे पानी के किनारे पर जीवन के लिए अच्छी तरह से अनुकूलित है और कीचड़ के किनारे फंसे होने पर भी फलता-फूलता है. बिहार में सिंघाड़ा एवं मखाना की खेती प्रमुखता से होती है. पश्चिम बंगाल, यूपी उडीसा, झारखंड सहित कई प्रदेशों में अच्छी खासी खेती होती है.
सिंघाड़े से कमाई
सिंघाड़े की खेती- 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, सूखी गोटी – 17 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है. कम मेहनत में अच्छी कमाई करते हैं किसान, क्योंकि इसमें ज्यादा मेहनत नहीं लगती है साथ ही इसकी खेती के साथ साथ मखाना और मछली पालन में भी किया जाता है जिससे तीनों फसलों से अच्छी कमाई कर सकते हैं.
खिंघाड़े की खेती से जुड़ी जानकारी
डाक्टर राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्व विद्यालय पूसा समस्तीपुर के फल वैज्ञानिक डाक्टर एस के सिंह बताते हैं कि अब तक कोई भी मानक किस्म का सिंघाड़ा की प्रजाति विकसित नहीं किया गया है, लेकिन हरे, लाल या बैंगनी जैसे विभिन्न भूसी रंग वाले नट्स और लाल और हरे रंग के मिश्रण को मान्यता दी जाती है. कानपुरी, जौनपुरी, देसी लार्ज, देसी स्मॉल आदि कुछ प्रकार के सिंघाड़ा के नाम हैं जिन्हें पश्चिम बंगाल और पूर्वी भारत के अन्य हिस्सों में उत्पादकों के लिए संदर्भित किया जाता है.
किस तरह की मिट्टी चाहिए
डाक्टर सिंह के मुताबिक यह एक जलीय पौधा है, मिट्टी इसकी खेती के लिए इतनी महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाती है, लेकिन यह पाया गया है कि जब जलाशयों की मिट्टी समृद्ध, भुरभुरी होती है जो अच्छी तरह से खाद या निषेचित होती है, तो सिंघाड़ा बेहतर उपज देता है.
रोपाई कैसी करनी है
पौधों को पहले कम पोषक तत्व वाले नर्सरी प्लॉट में उगाया जाए और जब तना लगभग 300 मिमी लंबा हो, तब स्थानांतरित किया जाए. इससे तालाबों में विकास की अवधि 6 सप्ताह तक कम हो जाती है. यदि रोपाई के समय पौध बहुत लंबे हों तो शीर्षों की छंटनी की जा सकती है.
डॉक्टर सिंह के अनुसार पौध नम रहे. इसके बाद रोपाई से पहले लत्तरो को इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्% SL @ १ मिलीलीटर /लीटर पानी के घोल में 15 मिनट के लिए उपचार किया जाता है. उपचारित बेल को एक मीटर लंबी 2-3 बेलों का बंडल लगाकर अंगूठे की सहायता से 1×1 मीटर के अंतराल पर मिट्टी में गाड़ दिया जाता है.
रोपाई 15 से 20 अगस्त तक ही करें
रोपाई जुलाई के पहले सप्ताह से 15 अगस्त तक की जा सकती है. पूर्व और मुख्य फसल में समय-समय पर खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए. कीटों और रोगों पर निरंतर निगरानी रखें, प्रभावित पत्तियों को प्रारंभिक अवस्था में तोड़कर नष्ट कर दें ताकि कीटों और बीमारियों का प्रकोप कम हो . यदि आवश्यक हो तो उचित दवा का प्रयोग करें.
सिंघाड़े के प्रमुख कीट
सिंघाड़े में मुख्य रूप से वाटर बीटल और रेड डेट पाम नाम के कीड़ों का प्रकोप होता है, जिससे फसल में उत्पादन 25-40 प्रतिशत तक कम हो जाता है. इसके अलावा नील भृंग, महू और घुन का प्रकोप भी पाया गया है.
Next Story