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आईटी कंपनी की नौकरी छोड़ किसान बना युवक, बंजर जमीन को बनाया खेती योग्य

Nilmani Pal
18 March 2022 4:15 AM GMT
आईटी कंपनी की नौकरी छोड़ किसान बना युवक, बंजर जमीन को बनाया खेती योग्य
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देश में रोजगार के एक मजबूत विकल्प के तौर पर कृषि क्षेत्र (Agriculture Sector) सामने आ रहा है. खास कर पढ़े लिखे और प्रोफेशनल युवा कृषि के क्षेत्र में आगे आ रहे हैं और अपना स्टार्टअप (Startup) शुरू कर रहे हैं. हिमालय की तलहट्टी स्थित शिल्ली गांव में स्वस्तिक फार्म के संचालक मंदीप वर्मा की कहानी भी कुछ ऐसी ही है जो अच्छी खासी नौकरी छोड़कर पहाड़ों के बीच में आकर खेती कर रहे हैं. खेती करके मंदीप आज सालाना 40 लाख रुपए सालाना की कमाई कर रहे हैं. 2010 में एमबीए पूरा करने के बाद मंदीप ने बिजनेस मार्केटिंग क्षेत्र में अपना करियर बनाया.आईटी फर्म में नौकरी करते हुए उन्होंने मार्केटिंग के तरीकों के बारें में जाना, जिसके कारण आज वो खेती-बारी के क्षेत्र में भी काफी सफल हैं. दिल्ली में साढ़े चार साल की नौकरी (Job) करने के बाद मंदीप अपने गांव सोलन लौट आए.

सोलन लौटने के बाद मंदीप ने स्वस्तिक फार्म की स्थापना की. इस फार्म में वो पूरी तरह से जैविक खेती करते हैं. मुख्य तौर पर वहां पर वो फलों की खेती करते हैं. जो कटाई के बाद सीधे ग्राहकों के पास पहुंचता है. इनमें किसी प्रकार केमिकल या प्रीजर्वेटिव नहीं मिलाया जाता है. द बेटर इंडिया के मुताबिक मंदीप बताते हैं कि फलों का उत्पादन करने के लिए वो किसी भी प्रकार का कोई भी कीटनाशक, खरपतवार नाशक या पौधों के विकास के लिए किसी भी प्रकार की कोई भी केमिकल का इस्तेमाल नहीं करते हैं. वो कहते हैं उनके फल को खाने के लिए बस उन्हें कोमल कपड़ों से हल्के हाथों से रगड़कर साफ करने की जरूरत होती है.

मंदीप बताते हैं कि वो अपनी नौकरी से संतुष्ट नहीं थी. उम्मीद के मुताबिक करियर में ग्रोथ भी नहीं मिल रहा था. इसिलए उन्होंने काम छोड़ने का फैसला किया. अपनी पत्नी को उन्होंने अपने नौकरी छोड़ने के फैसले के बारे में बताया. इसके बाद पत्नी ने भी उनका साथ दिया. इसके बाद वो गांव चले आए, जहां पर उनके पास 4.84 एकड़ अनुपयोगी जमीन थी, जिसका कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा था. उन्होंने इस जमीन पर खेती करने का फैसला किया. हालांकि शुरुआत में उन्हें खेती से संबंधित किसी प्रकार की जानकार नहीं थी.

इसके बाद खेती से जुड़ी जानकारी हासिल करने के लिए मंदीप से इंटरनेट का सहारा लिया. उन्हों कृषि से संबंधित विडियो देखे. वो बताते हैं कि "मैंने जैविक और प्राकृतिक खेती के तरीकों का उपयोग करके भोजन उगाने के लिए आवश्यक विभिन्न पहलुओं के बारे में सीखा. इसके अलावा स्थानीय अधिकारियों और बागवानी विभाग में काम करने वाले विशेषज्ञों से भी मार्गदर्शन लिया. उनका कहना है कि पूरी प्रक्रिया में करीब पांच महीने का समय लगा. इस प्रक्रिया ने मंदीप को यह जानने में मदद की कि पड़ोसी क्षेत्रों के किसान बंदरों के खतरे से परेशान हैं.

कीवी फल से की शुरुआत

उन्होंने हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय के कुछ प्रोफेसरों से संपर्क किया, जिन्होंने उन्हें कीवी उगाने का सुझाव दिया. इसके बाद उन्होंने कीवी की खेती शुरू की. "कीवी अपने शुरुआती फलने के दिनों में खट्टा होता है, और बालों की तरह सतह बंदरों को फल को छूने से रोकती है. यह एक विशिष्ट और विदेशी फल होने के कारण बाजार में इसके अच्छे दाम भी मिलते हैं. उन्होंने एलिसिन और हेवर्ड किस्मों के 150 कीवी पौधे खरीदे और उन्हें जमीन के एक छोटे से हिस्से पर उगाना शुरू किया.

2018 में शुरू की सेब की खेती

मंदीप ने 2016 में अपनी पहली फसल प्राप्त की. 2017 में उन्होंने स्वास्तिक फार्म नाम से व्यवसाय शुरू किया और एक वेबसाइट शुरू की. उनका कहना है कि वेबसाइट ने उन्हें उत्तराखंड, चंडीगढ़, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, हैदराबाद और बेंगलुरु में ग्राहकों की जरूरतों को पूरा करने में मदद की. कीवी की सफलता के बाद उन्होंने सेब की खेती शुरू की. 2018 में उन्होंने सेब की इतालवी किस्मों को उगाने का विकल्प चुना, जिनकी ऊंचाई कम है और एक साल में फल लगते हैं. मंदीप का कहना है कि उन्होंने 12,000 पौधों के साथ दो नर्सरी भी बनाई हैं जिनका इस्तेमाल वह मुनाफे के लिए प्रचार और बेचने के लिए करते हैं.


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