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बैंकों, इंश्योरेंस कंपनियों में लावारिस पड़े हैं 50,000 करोड़ रुपए, चेक करें कहीं आपका पैसा भी तो नहीं है इसमें शामिल
Bhumika Sahu
28 July 2021 3:20 AM GMT
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सरकार ने संसद को बताया कि 8.1 करोड़ से अधिक खातों में 24,356 करोड़ रुपए पड़े थे. यानी हर खाते में औसतन करीब 3,000 रुपए पड़े हैं, जिसका क्लेम नहीं किया गया है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। देश के अलग-अलग बैंकों और इंश्योरेंस कंपनियों में 50,000 करोड़ रुपए लावारिस पड़े हैं. मतलब साफ है कि इनका कोई दावेदार नहीं है. 2020 के दौरान बैंक खातों में बेकार पड़े रकम में 5,977 करोड़ रुपए जुड़े हैं. सरकार ने मंगलवार को संसद को बताया कि बैंकों और बीमा कंपनियों के पास लावारिस पड़े फंड 50,000 करोड़ रुपये के करीब हैं. सरकार ने कहा, बीमा पॉलिसियों की सही संख्या जिसमें करोड़ों रुपए पड़े हैं और उनका क्लेम नहीं किया गया है, इसका डेटा उपलब्ध नहीं है.
सरकार ने संसद को बताया कि 8.1 करोड़ से अधिक खातों में 24,356 करोड़ रुपए पड़े थे. यानी हर खाते में औसतन करीब 3,000 रुपए पड़े हैं, जिसका क्लेम नहीं किया गया है. बता दें कि कभी-कभी ऐसा भी होता है कि लोग दो-चार प्रीमियम भरने के बाद अपनी पॉलिसी ऐसे ही छोड़ देते हैं. बीमा कंपनियों के खाते में भी करोड़ों रुपये ऐसे ही पड़े हैं जिसे कोई क्लेम करने वाला नहीं है.
बैंकों में लावारिस पड़े हैं 24,352 करोड़ रुपए
सरकार ने बताया कि नेशनलाइज्ड बैकों में 5.5 करोड़ खातों में 16,597 करोड़ रुपए पड़े हैं. इनमें औसतन 3,030 रुपए बेकार पड़े हैं. वहीं, देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक भारतीय स्टेट बैंक (SBI) में औसतन 2,710 रुपए लावारिस पड़े हैं. एसबीआई में 1.3 करोड़ खातों में कुल 3,578 करोड़ रुपए बेकार पड़े हैं और प्राइवेट बैंकों के 90 लाख खातों में औसतन 3,340 रुपए पड़े हैं.
इसके उलट, इसके विपरीत, विदेशी बैंकों के 6.6 लाख से अधिक खातों में औसतन 9,250 रुपए बिना दावे के पड़े थे. स्मॉल फाइनेंस बैंकों में 654 रुपए एवरेज बैलेंस सबसे कम थी, जबकि क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के लिए यह सिर्फ 1,600 रुपए से कम थी.
बैंकों में क्यों पड़े हैं लावारिस पैसे?
बैंकों के मामले में, पता बदने को बेकार पड़ी रकम का एक प्रमुख स्रोत माना जाता है क्योंकि एक खाताधारक लेन-देन करने के लिए दूसरे शहर वापस नहीं जा सकता है. साथ ही, कई खातों वाले लोग अक्सर अपने किसी एक खाते में कुछ पैसे छोड़ देते हैं और उस पर दावा नहीं करते हैं. इसके अलावा, बिना नॉमिनेशन के खातों या जमा के मामले में, उत्तराधिकारी अक्सर बोझिल कागजी कार्रवाई को पूरा नहीं करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप बैंकों के पास पैसा पड़ा रहता है.
वित्त मंत्री राज्य मंत्री भागवत कराड ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कहा, आरबीआई ने बैंकों को दावा न किए गए जमा / इनएक्टिव खातों के खाताधारकों के ठिकाने का पता लगाने में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की सलाह दी है.
अनक्लेम्ड अमाउंट का इस्तेमाल
बैंकों के मामले में RBI दिशा-निर्देशों के मुताबिक, लावारिस रकम को डिपॉजिटर एजुकेशन एंड अवेयरनेस फंड में ट्रांसफर करना होता है और इस रकम का उपयोग जमाकर्ताओं को जागरूक करने और अन्य उद्देश्यों पर किया जाता है.
मंत्री ने कहा, बीमा कंपनियों को सालाना 10 साल से अधिक समय से दावा न किए गए पॉलिसीधारकों के फंड को सीनियर सिटीजन वेलफेयर फंड में ट्रांसफर करने की आवश्यकता होती है, जिसका उपयोग वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए योजनाओं के लिए किया जाता है.
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