सम्पादकीय

सत्ता के 20 वर्ष : जनहित में लिए फैसलों ने नरेंद्र मोदी को चुनावों का भी हीरो बना दिया

Nidhi Markaam
7 Oct 2021 5:42 AM GMT
सत्ता के 20 वर्ष : जनहित में लिए फैसलों ने नरेंद्र मोदी को चुनावों का भी हीरो बना दिया
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7 अक्टूबर को नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने अपने प्रशासन के 20 वर्ष पूरे किए हैं. इन 20 वर्षों में पीएम मोदी ने अपने प्रशासनिक और राजनीतिक कुशलता से बता दिया है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) एक ऐसा करिश्माई चेहरा जिसने दशकों बाद हिंदुस्तान की राजनीति को फिर से सिंगल फेस पॉलिटिक्स की तरफ मोड़ दिया. यानि पार्टी से ऊपर एक चेहरा, इससे पहले ऐसी जादूगरी इंदिरा गांधी के समय थी. 7 अक्टूबर को नरेंद्र मोदी के प्रशासन के 20 वर्ष पूरे हो गए हैं. इन 20 वर्षों में नरेंद्र मोदी ने अपनी राजनीति और व्यक्तित्व को फर्श से अर्श तक का सफर कराया है. गुजरात का मुख्यमंत्री बनने से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक नरेंद्र मोदी ने देश की सियासत में खुद को एक कुशल प्रशासक के तौर पर स्थापित किया है. सत्ता में रहते हुए उनके लिए गए फैसलों ने पहले गुजरात फिर पूरे भारत में बीजेपी के विजय रथ को जारी रखा. नरेंद्र मोदी को ऐसे ही देश की राजनीति का जादूगर नहीं कहते हैं. शायद मोदी पहले व्यक्ति होंगे, जिन्होंने पहली बार विधायकी का चुनाव लड़ा और गुजरात के मुख्यमंत्री बनें. इसके बाद 2014 में वाराणसी से सांसदी का चुनाव लड़े और देश के प्रधानमंत्री बनें. 2014 के बाद 2019 में नरेंद्र मोदी के चेहरे पर फिर से बीजेपी सरकार में आई और नरेंद्र मोदी देश के दोबारा प्रधानमंत्री बने.

नरेंद्र मोदी की किस्मत चमकी भुज भूकम्प से, जिसमे लगभग 20,000 लोगों की मृत्यु हो गयी थी, के बाद प्रदेश में केशुभाई पटेल सरकार के काम काज से लोग नाखुश थे. अगला विधानसभा चुनाव दूर नहीं था और प्रतीत हो रहा था कि बीजेपी के लिए चुनाव कोई जादूगर ही जीत पाएगा. ऐसे हालात में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी और उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण अडवाणी ने नरेन्द्र मोदी को आदेश दिया कि वह गांधीनगर की कुर्सी संभाले. उस समय वह बीजेपी के दिल्ली मुख्यालय में महासचिव थे. यह कहना तो संभव नहीं है कि किस आधार पर बीजेपी के दो सबसे बड़े नेताओं ने मोदी को इस कठिन कार्य के लिए चुना, पर जादू हो ही गया.
संसद की सीढ़ियों पर माथा टेकने वाला प्रधानमंत्री
मोदी के नेतृत्व में बीजेपी लगातार तीन बार चुनाव जीत चुकी थी और आज वह दिन आ गया था जब वह जादूगर पहली बार संसद भवन में प्रवेश करने वाला था. बहुत सारे सांसद और नेता उनके पांव छूना चाहते थे, पर उस व्यक्ति ने पहले झुक कर संसद भवन की सीढ़ियों पर ऐसे माथा टेका जैसे कि वह संसद ना हो कर सोमनाथ का मंदिर हो. उसके बाद उसने अपने गुरु आडवाणी का पैर छू कर उनसे आशीर्वाद लिया. जिन लोगों ने भी संसद भवन में प्रवेश का वह नज़ारा देखा, वह इसे कभी नहीं भूल सकते, क्योंकि इससे पहले संसद को प्रजातंत्र का मंदिर सिर्फ कहा ही जाता था, उसे कोई पूजता नहीं था. यह प्रजातंत्र का चमत्कार ही था कि जो व्यक्ति बचपन में चाय बेचता था, जो गरीब घर में पैदा हुआ था, जिसके खानदान में पहले कोई राजनीति में नहीं रहा था, जिसे 13 वर्ष पहले बहुत कम भारतीय जानते थे, वह 6 दिनों बाद देश के प्रधानमंत्री पद का शपथ लेने वाला था.
चाइल्ड ऑफ डेस्टिनी वाले नरेंद्र मोदी
अंग्रेजी भाषा में ऐसे चमत्कारी व्यक्ति को लोग Child Of Destiny यानि भाग्यशाली बच्चा कहते हैं. नरेन्द्र मोदी को गुजरात का कांटों भरा ताज मिला था और उसके बाद उन्होंने खुद अपनी तक़दीर लिखी थी. अगर भुज में भयावह भूकंप ना आया होता और केशुभाई पटेल सरकार राहत कार्य में विफल नहीं हुई होती तो यह कहना कठिन है कि नरेन्द्र मोदी अभी कहां होते. कुर्सी तो बहुतों को मिलती है. मोदी से पहले भी गुजरात में 13 मुख्यमंत्री रह चुके थे, पर किसी अन्य को इस तरह की लोकप्रियता नहीं मिली थी. योजना, कार्यशैली और संयोग कुछ ऐसा रहा कि एक बार मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद मोदी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. पर यह संयोग ज़रूर था कि गुजरात का 14वां मुख्यमंत्री भारत का 14वां प्रधानमंत्री बनने जा रहा था. 14 का आंकड़ा मोदी के जीवन से ऐसा जुड़ा कि प्रधानमंत्री बनने के बाद वह पीछे मुड़ कर देखने का नाम नहीं ले रहे हैं. परिस्थितियां विपरीत भी रहीं, चुनौतियां भी सामने आईं, पर मोदी लगातार सशक्त बनते जा रहे हैं.
टफ टास्क मास्टर नरेंद्र मोदी
2001 में जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे तब परिस्थितियां विपरीत थीं, चुनौतियां मुंह बाए सामने खड़ी थीं, सर पर कांटो भरा ताज था. मंत्री हों या सरकारी अधिकारी, सभी ने यही सोचा था कि एक ऐसा व्यक्ति जिसे प्रशासनिक अनुभव नहीं था, अभी तक कभी चुनाव भी नहीं लड़ा था, उसे नचाना काफी आसान होगा. पर हुआ ठीक उसके उल्टा. मोदी ने प्रशासन के क्षेत्र में ऐसी डुबकी लगायी जैसे कोई मछली जल में. बहुत शीघ्र ही बात फ़ैल गयी कि 'मोदी मीन्स बिज़नेस'. मोदी को काम समझते देर नहीं लगी, वह टफ टास्क मास्टर के रूप में विख्यात हो गए. 16 घंटे रोज काम करना, मंत्रियों और अधिकारियों से जवाबदारी शुरू हो गयी और जो उस कसौटी पर खरा नहीं उतरा उसकी छुट्टी होने लगी.
गुजरात दंगे के बाद भी जीता चुनाव
यह किसी चुनौती से कम नहीं था. जब गोधरा स्टेशन पर एक रेल गाड़ी में आगजनी की वारदात सर मुंडाते ही ओले पड़ने वाली साबित हुई. मोदी को मुख्यमंत्री पद संभाले कुछ ही समय बीता था जब यह घटना घटी, और उसके बाद वह भी हुआ जिसे गुजरात और भारत के इतिहास में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण घटना माना गया. गुजरात में साम्प्रदायिक दंगा शुरू हो गया, हिंसा का ऐसा तांडव दिखा जिसकी तुलना करना मुश्किल है. दोनों प्रमुख समुदाय से बड़ी संख्या में लोग मारे गए. गुजरात में साम्प्रदायिक दंगा पहले भी होता रहा था, जिसके कारण पुलिस बल पर भी साम्प्रदायिक होने का आरोप लगता रहा था. एक बार फिर से गुजरात पुलिस दंगों से निपटने में असफल रही. जब तक हालात पर काबू पाया जाता, जान माल की काफी क्षति हो चुकी थी.
मुख्यमंत्री मोदी पर भी पक्षपात का आरोप लगा जो कभी साबित नहीं हो पाया. अमेरिका ने मोदी को अपने देश में प्रवेश करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया. प्रधानमंत्री वाजपेयी ने एक सभा में मोदी को राजधर्म पालन करने की नसीहत भी दे दी. माना जाता है कि दंगों के बाद वाजपेयी मोदी को मुख्यमंत्री पद से हटाना चाहते थे पर आडवाणी इसके लिए तैयार नहीं हुए. मोदी पद पर बने रहे और राज्य सरकार ने समय से पहले विधानसभा चुनाव कराने का फैसला लिया और परिणाम बीजेपी की पक्ष में रहा. पार्टी ने जो उन्हें टास्क दिया था उसमें वह सफल रहे.
गुजरात को बनाया नंबर वन राज्य
अब वह दौर आने वाला था जब दंगों के बाद गुजरात का पुनर्निर्माण करना था. गुजरात में विकास का ऐसा दौर शुरू हो गया कि इससे समाज का कोई भी वर्ग अछूता नहीं रहा. देश और विदेश में मोदी मॉडल की चर्चा शुरू हो गयी. 2005 में सोनिया गांधी के नेतृत्व में राजीव गांधी फाउंडेशन ने गुजरात को देश का नंबर वन राज्य माना, और वह भी तब जबकि केंद्र में कांग्रेस पार्टी का शासन था. हां, यह आरोप सत्य से परे नहीं था कि मोदी ने बड़े सिस्टेमैटिक तरीके से अपने आप को विकास पुरुष के रूप में प्रोजेक्ट करना शुरू किया जो काफी सफल रहा. केंद्र में लगभग 10 वर्षों तक कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी. वाजपेयी राजनीति से रिटायर हो चुके थे और आडवाणी की उम्र काफी हो चली थी. वैसे भी बीजेपी को पता था कि आडवाणी ने भले ही बीजेपी को एक बड़ी शक्ति बनाई थी, पर उनके कट्टर इमेज के कारण उन्हें समाज के सभी वर्गों का समर्थन प्राप्त नहीं था.
2014 लोकसभा चुनाव में 'मोदी-मोदी'
बीजेपी आडवाणी के नाम पर जुआ नहीं खेलना चाहती थी, और तलाश ऐसे नेता की थी जो आम चुनाव में कोई जादू कर दे. मोदी की इमेज विकास पुरुष होने के साथ-साथ हिन्दू पोस्टर बॉय का भी था, बीजेपी ने 2013 में अडवाणी के विरोध के बावजूद भी मोदी को अपने प्रधानमंत्री पद का चेहरा नियुक्त किया और शीघ्र ही देश मोदी लहर में डूब गया. 30 वर्षों के बाद और 7 आम चुनावों के बाद 2014 में पहली बार किसी पार्टी को अपने बलबूते पर बहुमत मिला था. मोदी को बीजेपी और एनडीए संसदीय दल का नेता चुना गया और राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी ने मोदी को सरकार बनाने का आमंत्रण भी दे दिया था.
मोदी जब संसद भवन में कार से उतरे तो उनमे कोई घमंड या गुमान नही था. वह भावविभोर थे और उन्हें पता था कि इस बार सामने चुनौती और भी बड़ी थी क्योंकि अब उन्हें सिर्फ गुजरात के बारे में ही नहीं बल्कि पूरे भारत के बारे में सोचना था. उन्हें जनता की उम्मीदों पर खरा भी उतरना था. संयोगवश यह पहला अवसर था जब मोदी संसद भवन में प्रवेश करने वाले थे. उनके नाम यह रिकॉर्ड है कि मुख्यमंत्री बनने के पहले वह कभी गुजरात विधानसभा नहीं गए थे और संसद भवन में उनकी एंट्री भी पहली बार तब हो रही थी जब उनका प्रधानमंत्री बनना तय हो चुका था. विनम्रता अपने चरम स्तर पर थी जब मोदी ने संसद भवन की सीढ़ियों पर अपना शीश झुकाया और अपने गुरू लाल कृष्ण आडवाणी के चरण छू कर आशीर्वाद लिया. भारत में एक नए दौर की शुरुआत जो होने वाली थी.


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