![बिहार के बाजार मे जनवरी में बिकेगी लीची बिहार के बाजार मे जनवरी में बिकेगी लीची](https://i0.wp.com/jantaserishta.com/wp-content/uploads/2023/11/Untitled-1-copy-2107.jpg)
मुजफ्फरपुर। बिहार के बाजार मे अब जनवरी में ही लीची बिकेगी।यह लीची तमिलनाडु से यहां आएगी। इस कारण ठंड में ही लीची का स्वाद यहां के लोगों को मिलने लगेगा। इसके लिए राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र पहल कर रहा है। भावी योजना को लेकर अनुसंधान केंद्र के निदेशक डा. विकास दास अगले सप्ताह तमिलनाडु जा रहे हैं। डा.दास ने बताया कि वहां पर जनवरी में लीची फलती है।
बिहार में मई से जून तक लीची का मौसम रहता है। तमिलनाडु में कौन सी वेरायटी है जो जनवरी में फल रहा है। इसकी जानकारी और लीची के रकबा का विस्तार करने के लिए वह तमिलनाडु जा रहे हैं।
बताया कि वहां पर पहले से ही लीची होती, लेकिन उसका रकबा कम है। बताया कि दो संभावना देखेंगे एक वहां पर जो लीची का पेड़ है, वह किस वेरायटी की है। उसे यहां पर लाकर विकसित किया जा सकता या नहीं।
दूसरी यह संभावना देखी जाएगी कि यहां की जो शाही, चाइना व अन्य वेरायटी है, उसका वहां पर रकबा बढ़ाने की क्या संभावना है। वहां से आने के बाद ही इस संबंध में रणनीति बनाकर काम होगा।
अगर सबकुछ सही रहा तो आने वाले दिन में जनवरी महीने में वहां से लीची लाकर बाजार में उपलब्ध कराने की पहल होगी। यहां के लीची उत्पादक किसान व व्यापारी को इसके लिए तैयार किया जाएगा।
तमिलानाडु के साथ अन्य राज्य में भेजे जा रहे पौधे
निदेशक ने बताया कि तमिलनाडु व महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ व अरुणाचल प्रदेश, सिक्कम व झारखंड, उत्तराखंड व उतर प्रदेश में लीची के पौधे भेजे गए हैं। निदेशक ने बताया कि शाही लीची को जिओ टैग मिला है। हमारा लक्ष्य शाही लीची के निर्यात नेटवर्क को मजबूत करना है।
देश से बाहर जब लीची का निर्यात होगा तो किसानों को अच्छी कमाई होगी। इसके लिए कृषि विभाग, राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड और अन्य संस्थाओं से संपर्क किया जा रहा है। जहां से किसान की मांग आ रही है, वहां पौधे भेजे जा रहे हैं।
2013 से लीची बैंक कर रहा काम
2013 से लीची बैंक यानी पौधशाला लगाई जा रही है। विभाग की ओर से 10 लाख की राशि रिवाल्विंग फंड के तहत दी गई है। उससे पौधाशाला का संचालन चल रहा है। निदेशक ने कहा कि इसका उद्देश्य मुनाफा कमाना नहीं, लीची का प्रसार करना है। एक पौधा 100 रुपये में बिकता है।
इसको तैयार करने में 80 से 90 रुपए खर्च होते हैं। अगस्त से अक्टूबर तक पौधे तैयार किए जाते हैं। फरवरी से इनकी बिक्री होती है। जुलाई व अगस्त सबसे महत्वपूर्ण सीजन रहता है।
लीची की विकसित वेरायटी
अनुसंधान केंद्र की ओर से लीची की तीन प्रजातियां गंडकी योगिता, गंडकी लालिमा और गंडकी संपदा विकसित की गई है। इसके साथ यहां की शाही व चाइना वेरायटी भी देश के अन्य प्रदेश में भेजी जाती है। अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना इसमें सहयोग कर रहा है।
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