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- त्रियूंड की पर्ची
By: divyahimachal
ट्रैकिंग टूरिज्म के बढ़ते रुझान ने कम से कम हिमाचल की पर्यावरणीय जरूरतों, पर्वतारोहण की मंजिलों तथा सैलानियों की शिनाख्त में शुल्क लगाने की परंपरा तो शुरू की। त्रियूंड की तलहटी में उभरा ट्रैकिंग संसार अब पर्यटन व्यापार से लोहा ले रहा है। पर्यटन की सफलता केवल आंकड़े नहीं, बल्कि अनुभव का विस्तार तथा सुविधाओं का एहसास है। इसी खोज में सैलानियों का कारवां बनता व आगे बढ़ता है। हिमाचल में युवा पर्यटन की खोज का विस्तारित स्वरूप त्रियूंड, शिकारी देवी, पराशर झील तथा चूड़धार जैसे स्थलों को चिन्हित करके आगे बढ़ रहा है, तो इसकी चुनौतियां व समाधान भी तराशने होंगे। इसी तरह के ईको टूरिज्म के प्रसंग और प्रवृत्ति को समझते हुए त्रियूंड का ट्रैक अब दो सौ रुपए की पर्ची काट रहा है, तो ट्रैवल इंडस्ट्री के लोग शोर मचा रहे हैं। विश्व में ही नहीं, भारत वर्ष के पर्यटन समृद्ध राज्य हर आकर्षण की पर्ची काट रहे हैं, तो इस तरह की कोशिश हिमाचल को सही मायनों में पर्यटन आर्थिकी से जोड़ेगी। यह दीगर है कि दो सौ रुपए की पर्ची के तहत सुकून व सुविधा की गारंटी मिलनी चाहिए। हिमाचल में आने वाले सैलानी अगर मकलोडगंज में महज बेसन में तला सौ रुपए का पकौड़ा खा सकते हैं या मनाली अटल टनल के रास्ते पर उबली हुई मैगी के लिए सौ से डेढ़ सौ रुपए उड़ा सकते हैं, तो पर्यावरणीय सुकून के लिए शुल्क क्यों नहीं चुकाएंगे। दरअसल टै्रकिंग पर्यटन के नाम पर एक माफिया पैदा हो रहा है जो कमाई के लिए तो व्यवस्थित है, लेकिन हिमाचल की छवि के विपरीत दोहन कर रहा है।
किसी भी तरह के शुल्क से सैलानी को परहेज नहीं, बशर्ते इसका लक्ष्य मनोरंजन, मनोरम दृश्यावली, सुकून और सुविधा से परिपूर्ण एहसास कराए। हिमाचल के पर्यटन की विडंबनाओं को समझते हुए उचित कदम उठाने होंगे। पिछले दशक में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों की युवा कैटेगिरी ने दल और दलदल पैदा किए। यानी समूह बढ़ते और आरोहण करते-करते शिकारी देवी या चूड़धार पहुंच गए, लेकिन बदले में ऐसे निशान छोड़ गए जो पहाड़ के लिए माफिक नहीं हैं। पहाड़ को ऐसे कदमों से सुरक्षित रखने के लिए निरंकुश आवागमन रोकने के अलावा इन्हें रेगुलेट करने की परम आवश्यकता है। केरल में किसी कृत्रिम झील को निहारने की कीमत तय है, तो हिमाचल के पर्वतीय नजारे, बागबानी की छटा, बर्फबारी या नदी में बहते पानी की कलाकारी क्यों न शुल्क अदायगी की शर्त से परिपूर्ण हो। पर्यटन की गुणवत्ता बढ़ा कर ही हिमाचल के संदर्भ मजबूत होंगे तथा ऐसे शुल्क आजमाने से विविध पहलू सशक्त होंगे। मसलन त्रियूंड जाने की शुल्क अदायगी अगर सहूलियतों के हिसाब से पारंगत करें, तो इस टै्रक की क्षमता मजबूत इरादों के साथ आगे बढ़ेगी। कल तक त्रियूंड पहुंच रहे पर्यटकों की गिनती तो हो रही थी, लेकिन इनकी क्षमता को तोला नहीं जा रहा था। अब यह संभव है क्योंकि औसतन हर साल करीब 80 हजार से एक लाख तक पर्यटकों का आगमन त्रियूंड में हो रहा है।
अगर अस्सी हजार पर्यटक दो सौ रुपए शुल्क दें तो खजाने में एक करोड़ साठ लाख लाएंगे। इसी तर्ज पर हिमाचल सरकार अगर सौ दृश्यावलियां टै्रकिंग के हिसाब से विकसित कर दे तो डेढ़ से दो सौ करोड़ कमाए जा सकते हैं। इतना ही नहीं त्रियूंड में तकरीबन तीस हजार पर्यटक साल में रुकते भी हैं, तो इनके रहने के लिए टैंट कालोनी में प्रति व्यक्ति हजार रुपया भी लिया जाए, तो साल में तीन करोड़ की आमदनी होगी यानी सारी आय करीब साढ़े चार से पांच करोड़ होगी और अगर यही व्यवस्था सौ केंद्रों पर हो तो पांच सौ करोड़ से अधोसंरचना, सुविधा तथा प्रबंधन की दृष्टि से निरंतर बेहतरी होती रहेगी। ऐसे में अब समय आ गया है कि हिमाचल पर्यटन की आवारगी को रोककर इसे हर कदम पर पर्ची कटवाने की आदत डलवाए। हिमाचल के पर्यटन उद्योग को होटल व्यवसाय से इतर अपनी क्षमता का दोहन करना चाहिए ताकि सैलानियों को बेहतर व्यवस्था, सुकून के पल तथा विश्व स्तरीय सुविधाएं मिल सकें। त्रियूंड टै्रकिंग की पर्ची का विरोध करने से पहले ये सोचें कि अगर हिमाचल में टैक्सी सेवाएं सस्ती कर दी जाएं या परिवहन सेवा को और बेहतर किया जाए, तो पर्यटन आगमन के आंकड़े तथा गुणवत्ता में किस स्तर का विस्तार होगा।