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एक कीड़े की कहानी, जो इंसानी स्वभाव को बयां करती है

Sanaj
6 Jun 2023 3:03 AM GMT
एक कीड़े की कहानी, जो इंसानी स्वभाव को बयां करती है
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आदमी यह मानकर चलता है कि वह है तो सबकुछ है. उसके परिवार
लेख | अक्सर आदमी यह मानकर चलता है कि वह है तो सबकुछ है. उसके परिवार और परिचितों की ज़िंदगी में उसका बड़ा ही अहम् स्थान है. दूसरे शब्दों में कहें तो हम अपने आप को एक सूरज की तरह मानते हैं, जिसके चारों ओर परिवार के सदस्य रूपी ग्रह भ्रमण करते रहते हैं. ख़ुद को दूसरों की ज़िंदगी का संचालक और पालक मानने की हमारी यही ख़ुशफ़हमी हमारी ज़िंदगी को कितना कॉम्प्लिकेटेड बना देती है, इसका एहसास हमें शायद ही कभी होता हो. जिन कुछेक लोगों को इसका एहसास हो गया, वे दुनिया के सबसे सफल, सुखी, संतुष्ट और ख़ुशहाल लोगों में गिने गए. पर अफ़सोस हममें से ज़्यादातर लोग ख़ुद को दूसरों की ज़िंदगी का आधार स्तंभ और सहारा समझते हुए एक दिन चुपचाप दुनिया से चले जाते हैं. क्या हो अगर आपको यह पता चले कि अपनों की ज़िंदगी में बेशक आपकी अहमियत है, लेकिन आप पर ही उनकी दुनिया टिकी हुई है, ऐसा मानना आपकी सबसे बड़ी भूल, सबसे बड़ी मूर्खता है. पिछली सदी के सबसे चर्चित और महान लेखकों में एक माने गए फ्रेंज़ काफ़्का की क्लासिक कृति मेटामॉर्फ़ोसिस ग्रेगर साम्सा नामक एक सेल्समैन के माध्यम से आपको इसी हक़ीक़त से रूबरू कराती है.
अपने माता-पिता और बहन के साथ रहनेवाला ग्रेगर एक सुबह सोकर उठता है और ख़ुद को एक बड़े-से कीड़े के रूप में पाता है. अपने परिवार को एक बेहतर ज़िंदगी देने के चक्कर में उसने ख़ुद को एक मशीन-सा बना रखा था. सुबह जल्दी उठना. पागलों की तरह भागते हुए स्टेशन जाना. ट्रेन पकड़ना. बॉस की झिड़कियां सुनना. यही पिछले पंद्रह सालों से उसकी दिनचर्या थी. ख़ुद की अपनी कोई ज़िंदगी कहने लायक ज़िंदगी न होने के बावजूद उसे इस बात की संतुष्टि थी कि वह एक सुंदर से अपार्टमेंट में अपने माता-पिता और बहन को सुकून भरा जीवन दे पा रहा है. उस सुबह कीड़े में परिवर्तित होने के बाद उसे इस बात की चिंता सताने लगती है कि उसकी नौकरी का क्या होगा? नौकरी चली जाने के बाद परिवार का क्या होगा? वहीं उसका परिवार ग्रेगर के कीड़े में तब्दील होने के बाद पहले पहल तो डर जाता है, फिर चिंता, भय और उदासीनता जैसी कई भावनाएं आती-जाती रहती हैं.
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