सम्पादकीय

नए कश्मीर का सूर्योदय

Gulabi Jagat
8 Dec 2023 2:30 AM GMT
नए कश्मीर का सूर्योदय
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By: divyahimachal :
जम्मू-कश्मीर का जिक्र होगा, तो नेहरू और श्यामा प्रसाद मुखर्जी को भी याद किया जाएगा। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कश्मीर के संदर्भ में दो ‘भयंकर गलतियां’ (ब्लंडर) की थीं। भारत की आजादी के कुछ माह बाद ही कबाइलियों (पाकिस्तान की मुखौटा फौज) ने कश्मीर पर हमला कर दिया था। अभी युद्ध जारी था और हमारी सेनाएं जीत रही थीं। पूरे कश्मीर पर भारत का कब्जा होने ही वाला था कि प्रधानमंत्री नेहरू ने युद्धविराम की घोषणा कर दी। नतीजतन कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में ही रहा। वह उसे ‘आजाद कश्मीर’ कहता है, लेकिन भारत उस पीओके को अपना हिस्सा मानता है। संसद में इस आशय के प्रस्ताव पारित किए जा चुके हैं। दूसरी भयंकर गलती यह थी कि नेहरू कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में ले गए, लिहाजा आज भी कई देश इसे ‘अंतरराष्ट्रीय मसला’ करार देते हैं। इसके अलावा कश्मीर का आयाम यह था कि ‘जनसंघ’ के संस्थापक बनने से पहले डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी देश की पहली कैबिनेट में उद्योग-वाणिज्य मंत्री थे।

कश्मीर के मुद्दे पर उन्होंने आंदोलन खड़ा किया था कि कश्मीर में भी ‘एक विधान, एक निशान, एक प्रधान’ की व्यवस्था होनी चाहिए। उस दौर में शेख अब्दुल्ला कश्मीर के प्रधानमंत्री थे और कश्मीर का संविधान तथा ध्वज भी भारत से अलग थे। उस अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को प्रधानमंत्री मोदी ने 5 अगस्त, 2019 को संसद के जरिए समाप्त किया। आज कश्मीर भी पूरी तरह ‘भारतीय’ है। लोकसभा में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) और जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयकों को ध्वनि-मत से पारित किया गया। विपक्ष ने वॉकआउट किया। इन विधेयकों के बाद जम्मू-कश्मीर में ‘नया सूर्योदय’ होगा।

साफ है कि संघ शासित क्षेत्र का स्वरूप समाप्त कर कश्मीर का राज्यत्व बहाल करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है, क्योंकि पुनर्गठन के तहत परिसीमन को स्वीकृति दी गई है। अब जम्मू में 37 से बढ़ा कर 43 सीट और घाटी में 46 के बजाय 47 सीट की व्यवस्था संसद में पारित की गई है। उपराज्यपाल कश्मीर प्रवासी समुदाय के 2 व्यक्तियों (एक महिला समेत) और विस्थापितों के एक प्रतिनिधि को विधानसभा में नामांकित कर सकेंगे। जम्मू-कश्मीर में पहले आरक्षण की व्यवस्था बेहद क्षीण थी। अब नौकरियों, शैक्षिक और व्यावसायिक संस्थानों में अनुसूचित जाति, जनजाति आदि के आरक्षण तय कर दिए गए हैं। कश्मीर के संदर्भ में पंडितों के विस्थापन, पलायन और आतंकवाद, अलगाववाद को भूला नहीं जा सकता। गृहमंत्री अमित शाह ने आतंक और अलगाव की बुनियादी वजह अनुच्छेद 370 को माना है। अनुच्छेद 370 के कारण ही करीब 45,000 कश्मीरियों की मौतें हुईं। बहरहाल अब गृहमंत्री का दावा है कि आतंकवाद 70 फीसदी खत्म हो चुका है। उसके इकोसिस्टम पर हमले किए जा रहे हैं। आतंकी फंडिंग को नियंत्रित किया जा रहा है। आज अलगाववादियों के आह्वान पर घाटी में न तो हड़ताल होती है और न ही पथराव किया जाता है। अनुच्छेद 370 समाप्त करने पर एक कंकड़ भी नहीं चला। अब हर तीन महीने पर सुरक्षा संबंधी समीक्षा की जाती है। कश्मीर घाटी में अब 4 नए थियेटर खुल चुके हैं। कश्मीर में फिल्में बनाई जाने लगी हैं। 2022-23 के दौरान 2 करोड़ से अधिक पर्यटक कश्मीर घूमने आए। गृहमंत्री का दावा तथ्यात्मक होना चाहिए, क्योंकि उन्होंने संसद के भीतर ये जानकारियां दी हैं, लेकिन यह कैसे भूला जा सकता है कि कश्मीरी पंडितों के 46,631 परिवारों और 1,57,967 लोगों को अपने ही देश में विस्थापित होना पड़ा था। बहरहाल कश्मीर में सूर्योदय होने लगा है। कारोबार और निर्यात फल-फूल रहे हैं। डल लेक में शिकारों की व्यस्तता बढ़ गई है। यदि पीओके हमारा है, तो उसे हासिल करने की कोशिशें भी स्पष्ट होनी चाहिए।

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