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सेना की सिफारिश पर निशान-ए-हैदर

29 Dec 2023 8:57 AM GMT
सेना की सिफारिश पर निशान-ए-हैदर
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भारतीय सेना का इतिहास हमारे सैनिकों के अदम्य साहस की वीरगाथाओं व सेना की गौरवशाली परंपराओं से लबेरज है। इस बात में कोई दो राय नहीं कि भारतीय सेना ने सन् 1971 की जंग में पाकिस्तान को तकसीम करके कभी न सूखने वाला जख्म दिया था। सन् 1971 में भारतीय सेना हिंदोस्तान के पूर्वी व …

भारतीय सेना का इतिहास हमारे सैनिकों के अदम्य साहस की वीरगाथाओं व सेना की गौरवशाली परंपराओं से लबेरज है। इस बात में कोई दो राय नहीं कि भारतीय सेना ने सन् 1971 की जंग में पाकिस्तान को तकसीम करके कभी न सूखने वाला जख्म दिया था। सन् 1971 में भारतीय सेना हिंदोस्तान के पूर्वी व पश्चिमी दोनों मोर्चों पर जंग लड़ रही थी। जंग के महाज पर दुश्मन के नापाक मंसूबों को खाक में मिलाकर शौर्य पराक्रम के कई मजमून लिखने वाली भारतीय सेना ने रणभूमि में दुश्मन की बहादुरी का हमेशा सम्मान किया है। भारतीय सेना ने चार दिसंबर 1971 को पश्चिमी मोर्चे पर पाकिस्तान के शकरगढ़ सेक्टर पर हमला करके पाक सेना की पेशकदमी को वहीं खामोश कर दिया था। शकरगढ़ में बसंतर दरिया के किनारे ‘जरपाल’ कस्बे पर कब्जा करने में अहम किरदार अदा करने वाली सेना की ‘तीन ग्रेनेडियर्स’ यूनिट के कमान अधिकारी कर्नल ‘वेद प्रकाश एरी’ को युद्ध में उत्कृष्ट सैन्य नेतृत्व के लिए ‘महावीर चक्र’ से नवाजा गया था।

बसंतर के युद्ध में पाकिस्तानी कर्नल ‘मोहम्मद अकरम रजा’ की कयादत में पाक सेना की ‘35वीं फ्रंटियर फोर्स’ ने जरपाल में तीन ग्रेनेडियर्स पर हमला कर दिया था। तीन ग्रेडियर्स के जवाबी हमले में फ्रंटियर फोर्स के कर्नल मो. अकरम रजा सहित 85 पाक सैनिक हलाक हो गए थे। भारतीय कर्नल वीपी एरी ने जंग में हलाक हो चुके पाक कर्नल अकरम रजा की वर्दी की जेब में एक पत्र लिखकर डाल दिया था, जिसमें बसंतर युद्ध में अकरम रजा की बहादुरी का जिक्र किया गया था।

युद्ध में सीजफायर का ऐलान होने के बाद 17 दिसंबर 1971 को बसंतर की जंग में मारे गए पाक सैनिकों की लाशें उठाते वक्त पाकिस्तानी ब्रिगेडियर ‘शेरबाज खान’ को अकरम रजा की जेब से वो पत्र प्राप्त हुआ था। नतीजतन कर्नल वीपी एरी की तहरीर पर पाक हुकूमत ने बसंतर जंग में मारे गए कर्नल मो. अकरम रजा को पाकिस्तान के दूसरे आलातरीन सैन्य पदक ‘हिलाल-ए-जुर्रत’ से सरफराज किया था। स्मरण रहे भारतीय सेना ने आदमियत की एक ऐसी ही मिसाल सन् 1999 की कारगिल जंग में पेश की थी। कारगिल युद्ध में ‘टाईगर हिल’ पर ‘आठ सिख रेजिमेंट’ के भयंकर हमले में पाक सेना की ‘12 नार्दर्न लाइट इन्फैंट्री’ के कैप्टन ‘करनल शेर खान’ सहित कई सैनिक हलाक हो गए थे। पाकिस्तान ने कारगिल जंग में मारे गए अपने सैनिकों की लाशें तस्लीम नहीं की थीं। मगर युद्ध में शहीद शेर खान की बहादुरी से प्रभावित होकर भारतीय सेना के ब्रिगेडियर ‘एमपीएस बाजवा’ ने शेर खान की मय्यत को रेडक्रॉस के जरिए पूरे सैन्य एजाज के साथ पाकिस्तान भिजवाया था तथा शेर खान की जेब में एक पत्र लिखकर डाला था। उस पत्र में जंग में शेर खान की बहादुरी का हवाला दिया गया था। जब पाक हुक्मरानों को करनल शेरखान की बहादुरी का इल्म हुआ तो इस्लामाबाद में शेर खान के ताबूत को ले. ज. मुजफ्फर उस्मानी व सिंध के गवर्नर मामून हुसैन ने खुद कंधा दिया था। एमपीएस बाजवा द्वारा लिखे पत्र की सिफारिश पर पाक हुकूमत ने कै. करनल शेर खान को पाकिस्तान के सर्वोच्च सैन्य पदक ‘निशान-ए-हैदर’ से नवाजा था। रणभूमि में ऐसा बहुत कम देखने या सुनने को मिलता है, जब कोई सैनिक दुश्मन की वीरता की तारीफ पूरी अकीदत से करता हो।

लेकिन कारगिल जंग में मुल्लविश पाक सेना के किरदार को बेनकाब करने वाले हिमाचली शूरवीर कै. सौरभ कालिया के जख्मों का हिसाब पाक सेना से बाकी है। सन् 1971 की जंग को भारतीय सेना ने विजयी अंदाज में तकमील कर दिया था। बांग्लादेश के ढाका में 16 दिसंबर 1971 को पाक जरनैल आमीर अब्दुल्ला खान नियाजी ने 93 हजार पाक जंगी कैदियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया था। सरहदें लगभग शांत हो चुकी थीं, मगर युद्ध में मिली जिल्लतभरी शिकस्त से आलमी सतह पर बेआबरू हो चुके पाक सिपाहसालारों ने भारत के खिलाफ सरहद पर खूनी संघर्ष जारी रखा था। पाकसेना की ‘36वीं फ्रंटियर फोर्स व पाक रेंजर्स’ ने 25 दिसंबर 1971 को राजस्थान के गंगानगर सेक्टर में श्रीकरणपुर तहसील के ‘नग्गी’ कस्बे पर हमला करके कब्जा जमा लिया था। परंतु भारतीय सेना के पलटवार के बाद नग्गी पर हमला पाक सेना के लिए कुचा-ए-कातिल साबित हुआ था। भारतीय सेना की ‘चार पैराशूट’ व ‘नौ पैरा फील्ड’ बटालियन ने 27 दिसंबर 1971 को नग्गी में पाक सेना के उस दुस्साहस का माकूल जवाब दिया था। नग्गी के रण में पाक सेना पर जवाबी हमला करने वाली चार पैराशूट की एक कंपनी का नेतृत्व मेजर ‘विजय कुमार बेरी’ ‘महावीर चक्र’ ने किया था।

नग्गी में पाक सेना पर आक्रामक सैन्य कार्रवाई के दौरान दुश्मन के तोपखाने की भीषण गोलीबारी में चार पैराशूट के 21 कमांडो वीरगति को प्राप्त हो गए थे। युद्ध में उच्चकोटी के सैन्य नेतृत्व के लिए हवलदार ‘टेक बहादुर गुरूंग’ को ‘वीर चक्र’ (मरणोपरांत) से नवाजा गया था। मे. विजय कुमार बेरी की प्रारंभिक शिक्षा शिमला के ‘सेंट एडवर्ड स्कूल’ में हुई थी। नग्गी के उसी युद्ध में पाक सेना को धूल चटाकर हिमाचल के पैराट्रूपर कमलेश कुमार भी शहीद हो गए थे। नग्गी में पाक फौज की मसूबाबंदी को ध्वस्त करने वाले योद्धाओं की याद में भारतीय सेना प्रतिवर्ष 28 दिसंबर को ‘नग्गी दिवस’ के तौर पर मनाती है। नग्गी में तामीर किया गया ‘यादगार-ए-शहोदा’ नग्गी जंग के शूरवीरों की बहादुरी को बखूबी बयान करता है। बहरहाल पाक सेना को भारत के खिलाफ अदावत विरासत में मिली है। लेकिन मैदाने जंग में दुश्मन की बहादुरी का एहतराम करके शत्रु सैनिकों को रणभूमि में खिराज-ए-अकीदत पेश करने वाले जज्बात भारतीय सेना की महानता को जाहिर करते हैं। पाक सेना से भारतीय सरजमीं को मुक्त कराने में अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले ‘नग्गी युद्ध’ के शूरवीरों को सेना नमन करती है। मातृभूमि की रक्षा के लिए हमारे सैनिकों ने बलिदान देकर दुश्मन को हमेशा शिकस्त-ए-फाश दी है। सैनिकों का जज्बा युवा वर्ग के लिए प्रेरणादायक होना चाहिए।

प्रताप सिंह पटियाल

स्वतंत्र लेखक

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