सम्पादकीय

प्राथमिक शिक्षा की नई छांव

Gulabi Jagat
3 Dec 2023 2:30 AM GMT
प्राथमिक शिक्षा की नई छांव
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By: divyahimachal :

स्कूली शिक्षा के चरम बिंदु पर कलस्टर के अधीन प्राथमिक स्कूलों को छांव मुहैया करवाई जा रही है, यानी कुछ ऐसी सीढिय़ां विकसित की जा रही हैं जो व्यवस्था को मुकम्मल करेंगी। राज्य के जमा दो, हाई व मिडल स्कूल अपने दायरे के आधा किलोमीटर तक आने वाले प्राइमरी स्कूलों के अभिभावक बन जाएंगे। इस तरह अब करीब पांच हजार संस्थानों के तहत शिक्षा की बुनियादी प्रश्र हल होंगे, हालांकि अतीत में भी एक ही स्कूल के तहत छात्र जीवन की सीढिय़ां मुकम्मल होती थीं। शिक्षा की मात्रात्मक वृद्धि ने अब फिर गुणात्मक अर्थ पुख्ता करने के लिए उन्हीं रास्तों को चुना है, जो पहले मंजिलों के वाहक रहे। जाहिर है कलस्टर पद्धति से शिक्षा का उच्चारण ही एक जैसा नहीं होगा, बल्कि प्रबंधन, अनुशासन व वित्तीय उपयोगिता भी बढ़ेगी। यानी बिखरे हुए स्कूलों के अंदाज में कुछ तो फर्क आएगा, फिर भी शिक्षा क्षेत्र में दायित्व की ओवरलैपिंग के कारण सारी वर्णमाला बदल गई है। मॉडल कंपोजिट एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन से कई संदेश निकलते हैं। पहला यही कि हिमाचल में अनावश्यक विस्तार ने अधोगति तक पहुंचा दिया। दूसरे यह कि वित्तीय व्यवस्था में अब ऐसे अर्थहीन व्यय नासूर बनने लगे। तीसरे यह कि शिक्षा की मांग व आपूर्ति में गुणवत्ता की अर्हताएं पूरी नहीं हुर्इं। चौथे शिक्षकों की जवाबदेही परीक्षा में तो देखी गई, लेकिन अध्यापन को किसी सांचे में नहीं ढाला गया। हर बार शिक्षा मुड़-मुड़ कर अपने ही खोए हुए अतीत से कुछ पाना चाहती है और इस बार भी यही सब हो रहा है। शिक्षा विभाग कालेज व विश्वविद्यालयों की तर्ज पर ‘अतिथि शिक्षकों’ की खेप उतारने की ओर अग्रसर हो रहा है। देखना यह होगा कि इस पहल से शिक्षा की मांग की आपूर्ति कैसे होती है।

बेशक कुछ शिक्षक आज भी बच्चों के आदर्श बनकर प्रभावित करते हैं और अगर इनकी सेवाएं सेवानिवृत्ति के बाद भी यथावत रहती हैं, तो छात्रों का विश्वास पद्धति पर ही बढ़ेगा। यूं भी शिक्षा अपने सुधार के मजमून में हर बार नया शृंगार करती रही है, लेकिन कुछ सफे हमेशा काले निकल आते हैं। हिमाचल में शिक्षा को स्कूलों में स्तरोन्नत किया गया और इसी वजह से गांव तक पाठशाला की पहुंच व उसके स्तर में निखार आ गया, लेकिन अध्यापन के चरित्र में गिरावट आ गई। आज भी अगर नया संकल्प कलस्टर के जरिए गुणात्मक शिक्षा का शपथ पत्र लेकर खड़ा है, तो इस अकेले प्रयास से शायद ही भूमिका बदलेगी। शिक्षा के अपने इम्तिहान उसी इमारत में असफल इसलिए हो रहे हैं, क्योंकि ट्रांसफर और पदोन्नतियों में ही पूरा महकमा अतरंगी हो गया। व्यवस्था की नौटंकी में शिक्षक समाज अपनी प्राथमिकताओं को ऐसे स्थानांतरण से मजबूत कर रहा है, जो एक तरह का राजनीतिक गठबंधन है। हर राजनीतिक पार्टी और नेताओं के समूह इस तलाश में रहते हैं कि उनके अपने और चहेते शिक्षक ही नजदीकी स्कूलों में शिरकत करें।

सुक्खू सरकार ने भी ट्रांसफर के दायरे बढ़ाते हुए कुछ किलोमीटर मापे, लेकिन करवटें बताती हैं कि व्यवस्था के भीतर अध्यापक चंद किलोमीटर की परिधि में घूमघूम कर चेहरे बदल रहे हैं। उनका अपना ‘ट्रांसफर कलस्टर’ है जो दिन रात मेहनत करके यह सुनिश्चित करता है कि किसी तरह स्कूल घर हो जाए या घर ही स्कूल के आसपास जुड़ जाए। बावजूद इसके स्कूलों के कलस्टर बना कर विभाग अपने मानव संसाधन का बेहतर इस्तेमाल करके वित्तीय संसाधनों की किफायत कर सकता है। स्कूलों में जिस तरह कलस्टर पद्धति सामने आ रही है, उसी तरह कालेज से विश्वविद्यालय तक भी कलस्टर पैदा होने चाहिएं। बेशक कभी कलस्टर विश्वविद्यालयों की खोज में मंडी व धर्मशाला के कालेजों के नाम सामने आए थे और मंडी में तो काम भी शुरू हो गया, लेकिन अब वहां एक नया विश्वविद्यालय शिक्षा की ईंटें खोज रहा है। करीब साढ़े तीन दर्जन स्नातकोत्तर महाविद्यालयों की सीढिय़ों से लुढक़ रही उच्च शिक्षा को बचाने-संवारने के लिए क्या किया जाएगा।

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