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पर्यटन राजधानी के अर्थ

15 Dec 2023 12:12 PM GMT
पर्यटन राजधानी के अर्थ
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By: divyahimachal : हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने दिल्ली के एक समारोह में अपने लक्ष्यों के पर्यटन का खाका पेश करते हुए, राज्य को देश की पर्यटन कैपिटल बनाने की घोषणा की है। जाहिर है यह उनके कार्यकाल की अहम सुर्खी है जो प्रदेश में कांगड़ा को पर्यटन की राजधानी और देश में …

By: divyahimachal :

हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने दिल्ली के एक समारोह में अपने लक्ष्यों के पर्यटन का खाका पेश करते हुए, राज्य को देश की पर्यटन कैपिटल बनाने की घोषणा की है। जाहिर है यह उनके कार्यकाल की अहम सुर्खी है जो प्रदेश में कांगड़ा को पर्यटन की राजधानी और देश में प्रदेश को पर्यटन राजधानी बनाने की जिद्द पेश कर रही है। यह सही रास्ता है, लेकिन इसे मुकम्मल करने के लिए सर्वप्रथम प्रदेश को पर्यटन राज्य घोषित करना होगा। पर्यटन राज्य एक तासीर है, जो सरकार के संकल्प को शासन-प्रशासन की देखरेख में प्रदेश के हर वर्ग को भागीदार बना सकती है। ऐसा संकल्प अभी हमारी विभागीय योजनाओं-परियोजनाओं में नहीं है। हमें पर्यटन राज्य की योजना दृष्टि कायम करते हुए विभागीय समन्वय की परिकल्पना में दिशा निर्देश तय करने होंगे। ये डेस्टिनेशन टूरिज्म के हिसाब से तो होंगे, लेकिन साथ ही साथ पूरे प्रदेश की संभावना में परिलक्षित करने होंगे।

मसलन ग्रीष्म कालीन पर्यटन सीजन के हिसाब से पीडब्ल्यूडी विभाग को सडक़ों, जल शक्ति विभाग को पानी तथा ऊर्जा विभाग को विद्युत आपूर्ति को सौ फीसदी सुनिश्चित करना होगा। वर्तमान अनुभव बताता है कि गर्मियां आते ही तमाम पर्यटक शहरों में निजी तौर पर टैंकरों से पर्यटन सीजन की प्यास बुझाई जाती है। विद्युत आपूर्ति रूटीन में अगर स्थानीय निवासियों के लिए आंख मिचौनी का खेल है, तो पर्यटन की महफिल में यह खलल कैसे कम होगा। आश्चर्य यह है कि सरकार पांच करोड़ पर्यटकों के आगमन को अपना लक्ष्य मान रही है, लेकिन कुल 68 लाख की आबादी के लिए ही अगर विद्युत व जलापूर्ति नाकाम हैं, तो सर्वप्रथम इस दृष्टि से विभागों को संपन्न करना होगा। प्रदेश में बाईस लाख पंजीकृत वाहन व इतने ही बाहरी राज्यों के वाहन अगर घूम रहे हैं तो सीजन के दौरान यह जमावड़ा हमारी यातायात व्यवस्था का समाधान कब ढूंढेगा। पांच करोड़ सैलानियों के लिए कम से कम एक करोड़ वाहन दौड़ेंगे तो इसके लिए हमारी योजना क्या होगी।

तमाम हिल स्टेशनों या पूरे प्रदेश की पार्किंग व्यवस्था के लिए ग्रामीण एवं शहरी निकायों तथा धार्मिक न्यासों के जरिए हमारी आगामी परियोजनाएं हैं क्या। भारत की पर्यटन राजधानी का सीधा मुकाबला केरल, गोवा, राजस्थान, कर्नाटक, तेलंगाना, मध्यप्रदेश व अन्य राज्यों से होगा, जहां कम आकर्षणों के बावजूद पर्यटन की अधोसंरचना, माहौल, मनोरंजन, कनेक्टिविटी, इवेंट्स, धार्मिक स्थलों की व्यवस्था तथा सैलानियों की सुविधाओं का हिसाब कहीं बेहतर है। क्या हम प्रदेश के आधा दर्जन के करीब बड़े मंदिरों की व्यवस्था को दक्षिण भारतीय मंदिरों के प्रबंधन की तरह कर पाए हैं। हमारे मंदिर ट्रस्ट महज सियासी कठपुतली हैं जहां आय और व्यय के बीच नेताओं की इच्छाओं और प्रशासन के दिखावों पर फिजूलखर्ची हो रही है। अगर दियोटसिद्ध, ज्वालाजी, चिंतपूर्णी या किसी अन्य धार्मिक स्थल पर एक साथ हजार वाहन पहुंच जाएं, तो सारा ताम झाम शून्य हो जाता है। सडक़ों पर डे एंड नाइट पेट्रोलिंग की जरूरत को लेकर पुलिस की संरचना बदलनी होगी तथा पर्यटन पुलिस की अवधारणा में आगे बढऩा होगा।

देश के पर्यटन आंकड़ों में उद्योग की गुणवत्ता अगर हासिल करनी है तो हाई एंड टूरिज्म, विदेशी पर्यटन तथा प्रदेश की पर्यटन विविधता के नक्शे पर कुछ सर्किट बनाने होंगे। हम न तो बौद्ध पर्यटन और न ही तिब्बती पर्यटन पर आधारित सर्किट को मुकम्मल कर पाए और न ही धार्मिक पर्यटन को बेहतरीन कर पाए। हिमाचल से कमोबेश हर प्रकार के पर्यटन की राह गुजरती है, फिर भी हम ट्राइबल टूरिज्म को इसकी विविधता में पेश नहीं कर पाए हैं। ब्रिटिश पीरियड के शिलालेख, पहाड़ी रियासतों के इतिहास, सुजानपुर, पुराना कांगड़ा, मसरूर, गरली-परागपुर व चंबा की धरोहर तथा प्रदेश के विविध कलात्मक पक्ष को प्रस्तुत कर सकते हैं।

हिमाचल को पर्यटन राज्य बनाने के लिए पार्टनर चाहिए। सर्वप्रथम निजी क्षेत्र को आहवान करना होगा, जबकि युवाओं का रोजगार तैयार करना होगा। पर्यटन मैत्री माहौल के लिए समाज से व्यापार तक को एक सूत्र में बांधने के अलावा सस्ती दरों पर रिहाइश, ट्रैवल-टैक्सी तथा खान-पान की सुविधाएं सुनिश्चित करनी होंगी। पर्यटन उद्योग के साथ जुड़ी चुस्ती तथा चौकसी का समन्वय तब कायम होगा, जब प्रदेश के लक्ष्य और बजट की घोषणाएं तालमेल करेंगी। हमें अगर चिकित्सा सेवाओं के जरिए हैल्थ टूरिज्म की डेस्टिनेशन बनना है तो पर्यटन स्थलों के अस्पतालों की अलग से कैटेगिरी विकसित करनी होगी। प्रदेश के संस्कृति-भाषा, सूचना एवं जनसंपर्क तथा पर्यटन विभाग को एक ही मंत्रालय में समाहित करके मेला प्राधिकरण तथा मंदिर एवं धार्मिक पर्यटन विकास प्राधिकरण का गठन करना होगा। पर्यटन क्षेत्र में आगे बढऩे का अनुशासन तभी परिमार्जित होगा यदि योजना-परियोजनाओं का आबंटन सियासत से ऊपर अंतरराष्ट्रीय विजन के तहत हो, वरना सारी प्राथमिकताएं नेताओं और राजनीति की महफिल में शोर मचाती ही रह जाएंगी।

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