सम्पादकीय

कराची विध्वंस की पटकथा ऑपरेशन ट्राइडेंट

Gulabi Jagat
4 Dec 2023 5:37 PM GMT
कराची विध्वंस की पटकथा ऑपरेशन ट्राइडेंट
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‘शं नो वरुण:।’ अर्थात वरुण देवता हमारे लिए शुभ हों। संस्कृत का यह प्रसंग भारतीय नौसेना का आदर्श वाक्य है। चीन के अजीम सैन्य रणनीतिकार ‘सुन त्जू’ ने अपनी किताब ‘आर्ट ऑफ वार’ में फरमाया है कि ‘विजयी योद्धा पहले जीतते हैं, फिर युद्ध में जाते हैं, जबकि पराजित योद्धा पहले युद्ध में जाते हैं, फिर युद्ध जीतने की कोशिश करते हैं।’ सैन्य रणनीति के अनुसार शत्रु के नापाक कदमों की आहट भांपकर उसे उसके घर में घुसकर तबाह कर देना चाहिए। तीन दिसंबर 1971 को पाकिस्तान द्वारा भारत पर हमले के बाद भारतीय नौसेना ने पाक के कराची बंदरगाह पर हमला करके दास्तान-ए-शुजात का एक गौरवपूर्ण अध्याय कुछ इसी अंदाज में लिखा था। सन 1971 के दौर में पाक नौसेना का मुख्यालय कराची में था।

इससे पहले कि पाक नौसेना भारत के खिलाफ कोई मंसूबा तैयार करती, भारतीय नौसेना ने चार दिसंबर 1971 की रात को ‘आपरेशन ट्राइडेंट’ के तहत हमला करके कराची पोर्ट को जला कर राख कर दिया था। भारतीय नौसेना की ‘किलर स्क्वाड्रन’ के तीन मिसाइल युद्धपोतों आईएनएस ‘निपत’, निर्घट तथा ‘वीर’ ने कराची पोर्ट पर हमले को अंजाम देकर पाक नौसेना के चार जंगी जहाजों पीएनएस खैबर, शाहजहां, मुहाफिज तथा माइन स्वीपर वीनस चैलेंजर की कराची के समंदर में जल समाधि दे डाली थी। कराची पोर्ट पर खड़े तेल के टैंकरों में आग लगने से पाक सेना के तेल का जखीरा भी पूरी तरह खाक हो गया।

कराची पर हमला करके किलर स्क्वाड्रन सकुशल लौट आई थी। पाक नौसेना कराची बंदरगाह पर लगी आग को बुझाने की जद्दोजहद में लगी थी। मगर आपरेशन ट्राइडेंट की कामयाबी के तुरंत बाद भारतीय नौसेना ने पाक नेवी के बचे वजूद को नेस्तनाबूद करने के लिए आठ दिसंबर 1971 को एक अन्य आपरेशन ‘पायथन’ को अंजाम देकर कराची नौसैनिक अड्डे पर दूसरा हमला कर दिया था। उस हमले में नौसेना के आईएनएस विनाश, तलवार व त्रिशूल जैसे युद्धपोत शामिल थे। कराची पोर्ट पर खड़े दुश्मन के तेल टैंकर आईएनएस विनाश की मिसाइलों का निशाना बने। पाकिस्तान में मंजर-ए-शब यह था कि कराची के समंदर से साहिल तक केवल आग की लपटें थीं। आग की उन लपटों को साठ किलोमीटर दूर से देखा जा सकता था। आपरेशन पायथन के हमले में पाक नौसेना के ढाका, हरमटन व गल्फ स्टार जैसे पोत समंदर की आगोश में समा गए। पाकिस्तान ने उस हमले की कल्पना भी नहीं की थी।

गौर रहे आपरेशन ट्राइडेंट व पायथन के तहत कराची पोर्ट को जलाने वाली भारतीय नौसेना को दोनों मिशनों में कोई नुकसान नहीं हुआ था। सन 1971 के युद्ध में कराची के समंदर में पाक नौसेना की कब्रगाह बनाकर पाक नेवी की बर्बादी का अस्बाब बने आपरेशन ट्राइडेंट का नेतृत्व करने वाले कमोडोर ‘बबरू भान यादव’ को उत्कृष्ट सैन्य नेतृत्व के लिए ‘महावीर चक्र’ से नवाजा गया था। बबरू भान यादव नौसेना के प्रथम महावीर चक्र प्राप्तकर्ता थे।

कराची का विध्वंस करने वाली किलर स्क्वाड्रन में शामिल आईएनएस ‘निपत’ के कमांडर ‘बहादुर नरीमन कवीना’, ‘निर्घट’ के कमांडर इंद्रजीत शर्मा, ‘वीर’ के कमांडर ‘ओम प्रकाश मेहता’ तथा ‘विनाश’ के कमांडर ‘विजय जेरथ’ को अद्भुत शौर्य पराक्रम के लिए ‘वीर चक्र’ प्रदान किए गए थे। कराची बंदरगाह पर किलर स्क्वाड्रन के हमले से पाक नौसेना इस कदर मफलूज हो चुकी थी कि पूर्वी पाकिस्तान के महाज पर लड़ रही पाक थलसेना मदद को मोहताज रह गई। पाकिस्तानी नौसेना को उसके घर में घुसकर तबाह करके भारतीय नौसेना ने विश्व को अपनी ताकत का एहसास पूरी शिद्दत से करा दिया था। साथ ही अमेरिका को भी सोचने पर मजबूर कर दिया था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इंपीरियल जापानी नौसेना ने सात दिसंबर 1941 के दिन अमेरिका के नौसैनिक बेस ‘पर्ल हार्बर’ पर भयंकर हमला करके अमेरिका को शदीद नुकसान पहुंचाया था। पर्ल हार्बर के उस हमले ने दूसरी जंगे अजीम का रुख बदल दिया था। भारतीय नौसेना ने कराची विध्वंस करके अमेरिका को पर्ल हार्बर हमले की याद ताजा करा दी थी क्योंकि अमेरिका से खैरात में मिले हथियारों के बल पर ही पाक हुक्मरान भारत को शिकस्त देने का जहालत भरा ख्वाब देख रहे थे। सन 1971 की जंग में भारत के लिए सोवियत संघ के तत्कालीन एडमिरल ‘सर्गेई गोर्शकोव’ के योगदान को याद रखना होगा। स्मरण रहे पाकिस्तान की नौसेना ने आठ सितंबर 1965 को भारत के मुकद्दस शहर द्वारका पर हमला किया था। उस हमले की याद में पाकिस्तान आठ सितंबर को अपना नौसेना दिवस मनाता है।

दिलचस्प बात यह है कि सन 1971 में भारतीय नौसेनाध्यक्ष रहे एडमिरल ‘एसएम नंदा’ का बचपन कराची में ही बीता था तथा स्कूली शिक्षा भी कराची में ही हुई थी। सन 1965 में द्वारका पर पाक हमले के बाद एडमिरल नंदा ने एक साक्षात्कार में यह इजहार किया था कि यदि उन्हें मौका मिला तो कराची को खाक में मिलाने से गुरेज नहीं करेंगे। चार दिसंबर 1971 की रात को कराची का विध्वंस करके भारतीय नौसेनाध्यक्ष ने अपनी उस तहरीर को सच साबित कर दिया था। एडमिरल एसएम नंदा ने अपनी आत्मकथा ‘दि मैन हू बॉम्ब्ड कराची’ में इस बात का जिक्र पूरी तफसील से किया था। बहरहाल सन 1965 में गुजरात के द्वारका पर हमला करने वाले पाकिस्तान के जंगी जहाज ‘खैबर’ को भारतीय नौसेना की आईएनएस ‘निर्घट व निपत’ ने अपनी मिसाइलों के अचूक प्रहारों से टुकड़ों में तब्दील करके चार दिसंबर 1971 को कराची के समंदर में डुबो दिया था। नौसेना की ‘किलर स्क्वाड्रन’ ने द्वारका का इंतकाम कराची विध्वंस करके पूरा किया था। अत: चार दिसंबर को भारतीय नेवी अपना ‘नौसेना’ दिवस मनाती है। कराची को खाक में मिलाने वाले समंदर के योद्धाओं को देश शत्-शत् नमन करता है। कराची पर हमला करके भारतीय नौसेना ने सन 1971 के युद्ध का अंजाम अवश्य ही तय कर दिया था।

प्रताप सिंह पटियाल

स्वतंत्र लेखक

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