- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- लेख
- /
- मौत के बजाय कारावास

कतर में भारत के 8 पूर्व नौसैनिकों की सजा-ए-मौत रद्द कर दी गई है। उन्हें अब कारावास की सजा दी गई है। वह सजा कितने साल की होगी, यह अदालत के विस्तृत फैसले से ही स्पष्ट होगा। यह अदालती फैसला भारत और उसके पूर्व नौसैनिकों के लिए सुखद और राहतपूर्ण है, क्योंकि जासूसी के अपुष्ट …
कतर में भारत के 8 पूर्व नौसैनिकों की सजा-ए-मौत रद्द कर दी गई है। उन्हें अब कारावास की सजा दी गई है। वह सजा कितने साल की होगी, यह अदालत के विस्तृत फैसले से ही स्पष्ट होगा। यह अदालती फैसला भारत और उसके पूर्व नौसैनिकों के लिए सुखद और राहतपूर्ण है, क्योंकि जासूसी के अपुष्ट आरोपों पर भारतीय विदेशों में जेल की सजाएं झेलते रहे हैं। कतर में मौत की सजा ने भारत को हैरानी के साथ-साथ सदमे में भी डाल दिया था। कतर के सरकारी अफसर अपराध का खुलासा नहीं कर रहे थे और न ही आरोपों को सार्वजनिक कर रहे थे। यह आरोप जरूर सामने आया कि पूर्व नौसैनिकों ने कतर की एक महत्त्वपूर्ण पनडुब्बी परियोजना की संवेदनशील सूचना इजरायल को दी थी। मौजूदा संदर्भों में भारत इजरायल का मित्र-देश है, जबकि कतर हमास के सियासी नेतृत्व की आर्थिक मदद करता रहा है और उन्हें पनाह भी देता रहा है, लेकिन पनडुब्बी वाली सूचना को लेकर कतर के आरोपों का आधार पुख्ता नहीं था और न ही साक्ष्य थे। बहरहाल भारत की कूटनीतिक और कानूनी लड़ाई रंग लाई और 8 भारतीय मौत की सजा से बच गए। भारत और कतर के दरमियान 2015 का एक समझौता है, जिसके तहत सजायाफ्ता लोगों को उनके गृह देश में ही स्थानांतरित करने का प्रावधान है। वे शेष सजा अपने ही देश में काट सकते हैं। मौजूदा मामले में क्या होता है, उसका खुलासा आने वाले दिनों में ही होगा। गौरतलब यह भी है कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी और कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल थानी की दुबई में मुलाकात पर्यावरण के कॉप-28 शिखर सम्मेलन के दौरान हुई थी। प्रधानमंत्री ने पूर्व नौसैनिकों की गिरफ्तारी और सजा-ए-मौत का जिक्र किया था अथवा नहीं, सरकार उसे लेकर बिल्कुल खामोश है।
अगस्त, 2022 में भारत के पूर्व नौसैनिकों की गिरफ्तारी के बाद उन्हें एकांत कारावास में रखा गया था और मामले को पूरी तरह ‘गोपनीय’ बना दिया गया था। दोनों ही सरकारों ने आरोपों पर सार्वजनिक बातचीत करने में संकोच बरता। हालांकि कतर में भारत के वाणिज्य दूत और कानूनी टीम को पूर्व नौसैनिकों से मिलने की इजाजत दी गई। कतर में 8 लाख से अधिक भारतीय बसे और काम करते हैं। पूरे पश्चिमी एशिया में भारतीयों की कार्यरत आबादी सर्वाधिक है, लिहाजा जासूसी के आरोप सहज और चुनौतीपूर्ण हैं। पूर्व नौसैनिकों में कैप्टन स्तर के अधिकारी भी हैं, जो ओमान की ‘अल दहरा ग्लोबल टेक्नॉलॉजीज एंड कंसल्टिंग सर्विसेज कंपनी’ के लिए काम कर रहे थे। कंपनी कतर की नौसेना को विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण दे रही थी। हम किसी भी तरह का दावा नहीं कर सकते कि यह रक्षा-कंपनी संदिग्ध गतिविधियों में संलग्न रही है या उसे ‘काली सूची’ में डाल देना चाहिए अथवा भारतीय अब भी इस कंपनी में कार्यरत हैं या कंपनी छोड़ चुके हैं, लेकिन विदेशी कंपनियों में शामिल होने से पहले भारतीयों को विस्तृत जानकारी ले लेनी चाहिए कि उन कंपनियों की पृष्ठभूमि क्या रही है। जिन देशों की न्यायिक व्यवस्था ‘ब्लैक बॉक्स’ जैसी है, वहां नौकरी नहीं करनी चाहिए। आखिर न्यायिक इंसाफ तो अनिवार्य है। कमोबेश यह मामला भारतीयों को कई बड़े सबक दे सकता है। आज की युवा पीढ़ी वे सबक लेना चाहे अथवा विदेश जाने की अंधी दौड़ में शामिल रहे। फिर भी पश्चिमी एशिया में हमें अपनी सक्रियता और तालमेल, संपर्क को बढ़ाना चाहिए, क्योंकि आज दुनिया ही एक परिवार की तरह है।
By: divyahimachal
