सम्पादकीय

आदिवासी की ताजपोशी

Gulabi Jagat
12 Dec 2023 5:44 PM GMT
आदिवासी की ताजपोशी
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By: divyahimachal

आरएसएस के समर्पित कार्यकर्ता, प्रधानमंत्री मोदी की प्रथम कैबिनेट के साथी, चार बार के लोकसभा सांसद और आदिवासी समाज के प्रमुख नेता विष्णुदेव साय छत्तीसगढ़ के नए मुख्यमंत्री होंगे। वह भाजपा और राज्य के प्रथम आदिवासी मुख्यमंत्री होंगे। वैसे छत्तीसगढ़ के सर्वप्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी भी खुद को आदिवासी ही कहते रहे, लेकिन 2019 में अदालत ने उनका ‘अनुसूचित जनजाति’ वाला प्रमाण-पत्र ‘अमान्य’ कर दिया था, लिहाजा प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवहार में विष्णुदेव ही राज्य के प्रथम आदिवासी मुख्यमंत्री माने जाएंगे। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव और विजय शर्मा को उपमुख्यमंत्री बनाया जाना तय हुआ है। छत्तीसगढ़ के लगातार तीन बार मुख्यमंत्री रहे डॉ. रमन सिंह को ‘विधानसभा अध्यक्ष’ का दायित्व सौंपा जाएगा। विष्णुदेव साय भाजपा-संघ परिवार के मंजे हुए नेता हैं, क्योंकि उन्होंने सरपंच से लेकर मुख्यमंत्री तक का ‘चरमोत्कर्ष’ छुआ है। इन विधानसभा चुनावों में भाजपा ने आदिवासियों का नया वोट बैंक तैयार कर कांग्रेस के जबड़े से जीत छीनी है। चुनाव के किसी भी सर्वे में भाजपा की जीत के आसार नहीं थे। कांग्रेस के लिए सत्ता में बने रहने के स्पष्ट अनुमान लगाए गए थे, लेकिन जनादेश घोषित हुआ, तो सरगुजा क्षेत्र की सभी 14 सीट और बस्तर की 12 में से 8 सीट भाजपा के हिस्से आईं। इसे ‘नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्र’ भी माना जाता है। कांग्रेस का पुराना, परंपरागत आदिवासी जनाधार ही ध्रुवीकृत हो गया। चूंकि भाजपा ने 2022 में ही आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू को देश का राष्ट्रपति निर्वाचित कराया था, आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिन को ‘राष्ट्रीय जनजाति दिवस’ घोषित किया था, नतीजतन आदिवासियों के ध्रुवीकरण के ये दो बुनियादी कारण साबित हुए। इसके अलावा, आरएसएस ने ‘बनवासी कल्याण आश्रम’ के जरिए पुराने मध्यप्रदेश (अब छत्तीसगढ़) में आदिवासियों के लिए व्यापक कार्य किए हैं। प्रधानमंत्री मोदी की ‘गारंटियों’ के साथ-साथ छत्तीसगढ़ भाजपा के नेताओं ने भी राज्य की करीब 33 फीसदी आबादी, यानी कुल 90 में से 30 विधानसभा सीट, को विश्वास दिलाया कि भाजपा ही उनकी हितैषी पार्टी है।

नतीजा सामने है। 2018 में इन आदिवासी बहुल इलाकों ने कांग्रेस को लबालब जनादेश दिया था। अब मोदी-शाह की भाजपा ने आदिवासियों के अलावा, ओबीसी, दलितों और महिलाओं के वोट बैंक सुनिश्चित कर लिए हैं। हाल ही में तीन राज्यों में जो जनादेश सामने आए हैं, उनमें इन समुदायों के बहुमत वोट भाजपा के पक्ष में आए हैं। यकीनन इससे लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को फायदा मिलना चाहिए। यह सामाजिक संरचना भाजपा-संघ परिवार का ‘राजनीतिक मॉडल’ भी बन सकती है। क्या मप्र और राजस्थान में भी इसी तर्ज पर मुख्यमंत्रियों की ताजपोशी की जा सकती है? दरअसल इन तीनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों और संगठन के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही रहेगी कि 2024 के आम चुनाव में 65 लोकसभा सीट में से अधिकतम हिस्सा भाजपा की झोली में ही आए। लक्ष्य नरेंद्र मोदी को लगातार तीसरी बार देश का प्रधानमंत्री बनाने का है। मप्र की बारी तो आज ही है। जब आप यह संपादकीय पढ़ेंगे, तब तक मप्र का मुख्यमंत्री तय हो जाना चाहिए। मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राज्य में सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने 165 सीटों पर जनसभाएं कीं और आज भी हारी हुई सीटों पर लोकसभा के लिए प्रचार पर निकले हैं। आम धारणा यह है कि प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और भाजपा अध्यक्ष का राष्ट्रीय नेतृत्व अब नए चेहरे को उभारने के पक्ष में हैं। यही राजनीति राजस्थान में भी जारी है। दिलचस्प है कि दोनों राज्यों के प्रमुख नेताओं के खिलाफ कोई भी जन-लहर नहीं है। यदि नया चेहरा लाया जाता है, तो लोकसभा चुनाव में नुकसान भी संभव है। शेष दोनों राज्यों में ओबीसी और महिला को नेतृत्व सौंपा जाना चाहिए।

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