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राजस्व लोक अदालतों की शुरुआत करके सुक्खू सरकार ने जमीनी विवादों के आरंभिक कारणों को निरस्त नहीं किया, बल्कि समाज के संदर्भों में सौहार्द के बीज भी वो दिए। इंतकाल के 65 हजार मामलों का निपटारा अपने आप में केवल एक रिकार्ड नहीं, बल्कि हजारों परिवारों के लिए सुकून का रिकार्ड है। राजस्व विभाग को …
राजस्व लोक अदालतों की शुरुआत करके सुक्खू सरकार ने जमीनी विवादों के आरंभिक कारणों को निरस्त नहीं किया, बल्कि समाज के संदर्भों में सौहार्द के बीज भी वो दिए। इंतकाल के 65 हजार मामलों का निपटारा अपने आप में केवल एक रिकार्ड नहीं, बल्कि हजारों परिवारों के लिए सुकून का रिकार्ड है। राजस्व विभाग को अनिर्णायक होने से बचाने के लिए यह कदम वर्षों की सुस्ती तथा फाइलों के जमघट से छुटकारा दिला रहा है। भूमि प्रबंधन और पारिवारिक विभाजन की सीमारेखा पर खड़े विवाद समाज से शांति और प्रदेश से संभावना छीनते रहे हैं। विवादों के तर्क से वर्षों की हानि, मेहनत की बर्बादी और भविष्य की अनिश्चितता को ये अदालतें वरदान साबित हो रही हैं, तो इसका साधुवाद हिमाचल सरकार को मिल सकता है। मंडे मीटिंग में हिमाचल से मुलाकात करते मुख्यमंत्री ने व्यवस्था परिवर्तन के कई अन्य रास्तों को भी चुस्त-दुरुस्त किया और जहां संकल्प आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का अलग विभाग, होटल व विश्रामगृहों का क्यू आर कोड से ऑनलाइन भुगतान, हमीरपुर में राष्ट्रीय कैंसर संस्थान तथा स्वरोजगार स्टार्ट अप योजना के आकार को नई शक्ल दे रहे हैं। दरअसल मंडे बैठक के जरिए मुख्यमंत्री राज्य का नजरिया बदलते हैं, योजना प्रारूप को शक्ल प्रदान करते हैं, युवाओं के प्रति अपनी भूमिका तथा हिमाचल की हर संभावना को संवाद तक ले जाते हैं।
राजस्व विभाग में व्यवस्था परिवर्तन का अक्स, अब सुलझे तकसीम के मामलों तथा इंतकाल के कागजात पर नजर आने लगा है, लेकिन इसकी दूसरी भूमिका में सरकार को अपने लिए भूमि का इंतजाम करना है। योजनाओं-परियोजनाओं की खपत में आवश्यक सार्वजनिक भूमि की तलाश व इसकी वन भूमि से रिहाई किए बिना, हमारी तरक्की का आलम हमेशा दलदल में फंसा है। अगर निजी भूमि के इंतकाल व तकसीम के आंकड़े अब राहत की खिड़कियां खोल रहे हैं, तो आइंदा इस गति से सार्वजनिक भूमि को चिन्हित, वन भूमि से मुक्त तथा अतिक्रमण से छीन कर राज्य का एक व्यापक, समग्र और बहुआयामी लैंड बैंक स्थापित करना होगा। इससे पहले व्यावहारिक जरूरतों, नागरिक सुविधाओं, विकास की अनिवार्यता, तरक्की की गुंजाइश भविष्य की अधोसंरचना, शहरी विकास, औद्योगिक विकास तथा निवेश संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए सार्वजनिक भूमि की उपलब्धता का डाटा तथा अतिरिक्त भूमि का रास्ता खोलने की कसौटियां बुलंद करनी होंगी। राजस्व विभाग सार्वजनिक भूमि का राज्य स्तरीय डाटा बनाए, जबकि वन विभाग व अतिक्रमण से जमीन वापस लेने के लिए कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। भविष्य में हर शहर को चार बड़े मैदान, हर गांव को एक मैदान, शहरी विकास के तहत मनोरंजन-पर्यटक स्थल, बाजार-मॉल, पार्किंग स्थल, ट्रांसपोर्ट नेटवर्क, बस स्टैंड-बस स्टॉप, सीवरेज, विद्युत तथा जलापूर्ति व्यवस्था के लिए माकूल जमीन तथा पूरे राज्य में नए निवेश केंद्र विकसित करने के लिए अतिरिक्त जमीन का प्रबंधन करना होगा। हर ग्रामीण व शहरी निकाय के लक्ष्यों में भविष्य के अनुपात में भूमि बैंक स्थापित करने के उद्देश्य से विभागीय समन्वय कायम करते हुए, वर्ष के भीतर सारी कार्रवाई मुकम्मल होनी चाहिए। भविष्य में हर गांव को भी शहर की तरह नागरिक सुविधाओं की जरूरत होगी, तो नई आवासीय बस्तियों के लिए जमीन की उपलब्धता चाहिए। इसी के साथ सरकार को सार्वजनिक संपत्तियों का ऑडिट करते हुए इमारतों की फिजूलखर्ची घटानी होगी या दो तीन शहरों की कलस्टर प्लानिंग करते हुए, इनके बीचोंबीच अदालत परिसर, बस स्टैंड, सरकारी दफ्तर, कर्मचारी बस्तियां, हाई-वे टूरिज्म, आधुनिक बाजार, मनोरंजन केंद्र व कूड़ा-कर्कट प्रबंधन करके भूमि की अनावश्यक खपत कम करनी होगी। प्रदेश के पुराने व नए शहरी कस्बों के साथ-साथ समूचे हिमाचल को अगर टीसीपी के तहत लाया जाए, तो कम से कम नागरिक सुविधाओं के लिए अतिरिक्त भूमि की मात्रा का पता चल जाएगा।
