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- नए कल्याणकारी राज्य का...
तीन दिसंबर 2023 को हुई मतगणना में जब चार बड़े राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में से तीन में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में काबिज होती दिखाई दे रही है, और कांग्रेस को मात्र एक ही राज्य तेलंगाना में जीत हासिल हुई है, राजनीतिक विश्लेषक भारतीय जनता पार्टी द्वारा इस जीत के कारणों का विश्लेषण कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी चुनाव में अक्सर कांग्रेस पार्टी की सांप्रदायिक वोट बैंक, भ्रष्टाचार, वंशवाद आदि की राजनीति के मुद्दे उठाती रही है। राम मंदिर का निर्माण, धारा 370 की समाप्ति, सांप्रदायिक हिंसा (विशेष तौर पर सर तन से जुदा) जैसे मुद्दे काफी मात्रा में चर्चा में रहे। लेकिन इतिहास गवाह है कि चाहे ये मुद्दे भी महत्वपूर्ण रहे हैं, लेकिन यदि कोई पार्टी या सरकार लोगों की भलाई के लिए काम नहीं करती, तो जनता उसे कभी स्वीकार नहीं करती।
वोट अनुपात के रूप में भाजपा को मध्य प्रदेश में 48.81 प्रतिशत, राजस्थान में 41.85 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में 46.35 प्रतिशत वोट मिलना इस बात को दर्शाता है कि पार्टी की केंद्र सरकार की योजनाओं और उनकी उपलब्धियों से जनता संतुष्ट है और इसलिए उसकी सरकार चाहती है। जाहिर है वंशवाद, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिक हिंसा के बारे में भी जनता संवेदनशील है और देश में स्वस्थ एवं विकासवादी राजनीति की स्थापना चाहती है। वो वोट बैंक की राजनीति के चलते आर्थिक-सामाजिक वातावरण को दूषित भी नहीं होने देना चाहती।
विकसित भारत बनाने का सपना : भारत का आम जन इस दंश के साथ जी रहा था कि भारत एक गरीब देश है जो अमीर देशों की अकूत संपत्ति, विकसित इंफ्रास्ट्रक्चर, ऊंची आमदनी और उच्च जीवन स्तर का मुकाबला कर ही नहीं सकता। उनके बराबर पहुंचने में हमें कई सदियां भी लग सकती हैं। 2014 में भारत की अर्थव्यवस्था भी सबसे जर्जर पांच अर्थव्यवस्थाओं में शामिल थी। यहां घटते निवेश और लगातार घटती संवृद्धि दर की त्रासदी भी झेल रहा था। लेकिन मात्र 10 वर्षों से भी कम समय में भारत विश्व की दसवीं अर्थव्यवस्था से आगे बढ़ता हुआ पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था तक पहुंच गया है और अगले तीन सालों से भी कम समय में चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की तरफ तेजी से आगे बढ़ रहा है।
आज भारत विश्व की सबसे तेज बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था भी बन चुका है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजादी के पहले 100 वर्ष पूर्ण होने से पहले एक विकसित राष्ट्र बनने का संकल्प देकर देश के आमजन की आकांक्षाओं को नए पंख देने का काम किया है। स्वाभाविक ही है कि इन आकांक्षाओं के मद्देनजर देश की जनता ने भाजपा के नेतृत्व पर अपना भरोसा जताया है, जिसका एक नमूना मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में दिखा।
मुफ्त की योजनाओं को जनता ने नकारा : पिछले कुछ समय से कुछ राज्यों में सरकारों और राजनीतिक दलों द्वारा बड़ी मात्रा में मुफ्त की योजनाओं के दम पर सत्ता पर काबिज होने का प्रयास शुरू हुआ है। उसके कारण उन्हें कुछ हद तक सफलता भी मिलती हुई दिखाई दे रही है। दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी और उसकी सरकारों द्वारा मुफ्त की योजनाओं की झड़ी लगी हुई है। उधर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी इसी प्रकार की मुफ्त की योजनाएं बड़ी मात्रा में चल रही हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि इन योजनाओं को चलाने हेतु इन प्रांत सरकारों के पास पर्याप्त धन की भारी कमी है जिसके कारण वे एक ओर तो भारी कर्ज में डूबते जा रहे हैं, तो दूसरी ओर इन मुफ्त की योजनाओं के कारण वे आवश्यक मदों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आमजन को सशक्त बनाने वाली अन्य योजनाओं पर खर्च भी नहीं कर पा रहे हैं। इन चुनावों में भी दलों ने इन मुफ्त की योजनाओं की काफी घोषणाएं की।
कांग्रेस पार्टी ने मध्य प्रदेश में किसानों के कर्ज माफ करने के अलावा मुफ्त बिजली, गैस सिलेंडर की सब्सिडी, महिलाओं को 1500 रुपए प्रतिमाह, युवाओं को 3000 रुपए बेरोजगारी भत्ते के अलावा कई अन्य मुफ्त की स्कीमों की घोषणा की। इसी तरह से राजस्थान में पहले से ही कांग्रेस सरकार महिलाओं को स्मार्टफोन, सस्ता सिलेंडर, 25 लाख रुपए तक के इलाज के लिए फ्री मेडिकल बीमा, एक करोड़ परिवारों को फ्री फूड पैकेट आदि की योजनाएं तो चला ही रही थी, इस चुनाव में कांग्रेस ने पहले की मुफ्त की योजनाओं के साथ-साथ फ्री लैपटॉप, फ्री बिजली आदि की भी घोषणा की थी। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन मुफ्त की योजनाओं को गलत मानते हैं और इसे रेवड़ी बांटने की संज्ञा देते हैं।
इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी और उसकी सरकारों ने काफी बड़ी मात्रा में कई मुफ्त की योजनाओं को चलाया है, जिसमें उज्जवला लाभार्थियों और आमजन को सस्ता सिलेंडर देना, राजस्थान में 12वीं कक्षा पास करने के बाद लड़कियों को फ्री स्कूटी देना आदि की घोषणा भी शामिल है। लेकिन यह भी सच है कि फ्री बिजली, फ्री पानी और फ्री यात्रा आदि की योजनाओं से भाजपा ने हमेशा परहेज रखा है। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि रेवडिय़ा बांटने और नई रेवडिय़ों की घोषणा के बावजूद मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस जीत नहीं पाई और भारतीय जनता पार्टी को जनता का समर्थन प्राप्त हुआ।
कल्याणकारी राज्य की परिभाषा बदली : अभी तक रोजगार योजनाओं के माध्यम से पैसे बांटने, मुफ्त या सस्ती बिजली-पानी, पेट्रोल, डीजल और गैस पर सब्सिडी, सस्ता राशन, शिक्षा और स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च आदि को ही कल्याणकारी राज्य की इतिश्री मान लिया जाता था। लेकिन पिछले 9 सालों से अधिक के दौरान कल्याणकारी राज्य की परिभाषा बदली है और उसमें सुधार होता दिखाई दे रहा है, जिसे जनता का समर्थन भी प्राप्त हुआ है। सबसे पहले आवास योजना में आमूल-चूल परिवर्तन के माध्यम से प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए, आवास योजना पर खर्च की वास्तविकता को सुनिश्चित करने का प्रयास हुआ है।
मात्र कुछ ही सालों में लगभग 3 करोड़ घरों का निर्माण हुआ जिसमें 5 लाख करोड़ रुपए केन्द्र सरकार द्वारा दिए गए और 15 लाख करोड़ रुपए स्वयं लाभार्थियों ने खर्च कर, ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में अपने लिए बेहतर घरों का निर्माण किया, और बेहतर जीवन का आनंद लेना शुरू किया। एक करोड़ अतिरिक्त घरों का निर्माण भी विभिन्न चरणों में है। उज्ज्वला योजना के तहत 10 करोड़ गरीब महिलाओं को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन दिया गया और बाद में उन गरीब महिलाओं द्वारा अपने खर्चे पर उन सिलेंडरों को रिफिल कर अपनी सुविधा को बढ़ाया गया। आज एक वर्ष में उज्जवला लाभार्थी तीन से अधिक सिलेंडर औसतन भरवाती हैं।
इससे उनके स्वास्थ्य की रक्षा भी हुई है और समय की बचत भी। देश में लगभग सभी गांवों तक बिजली पहुंचाने से जीवन स्तर में सुधार तो हुआ ही है, संचार और इंटरनेट क्रांति को देशभर में ले जाने में भी सफलता मिल रही है। सभी घरों में नल से जल का लक्ष्य भी पूर्ण होने को तैयार है जिससे महिलाओं को दूर से जल लाने नहीं जाना पड़ता और उनके समय की बचत हो रही है। हर घर में शौचालय बनने से खुले में शौच जैसे अभिशाप से मुक्ति हुई है, जिसके चित्र दिखाकर भारत को पिछड़ा दिखाने का प्रयास विदेशी अक्सर किया करते थे। महिलाएं आज सम्मान से जी रही हैं। प्राथमिक चिकित्सा में सुधार और सबसे महत्वपूर्ण आयुष्मान योजना के तहत 5 लाख रुपए तक का मुफ्त इलाज, कम साधन संपन्न लोगों के लिए एक वरदान सिद्ध हो रहा है। देखा जाए तो ये सभी योजनाएं लक्षित लाभार्थियों के लिए हैं। अभी तक ये लाभार्थी इन सुविधाओं से वंचित थे और पूर्व में राजनीतिक दल उनकी गरीबी, अभाव और बेरोजगारी को दूर करने के छलावों के साथ, उनके वोट बटोर लिया करते थे। लेकिन अब इन लाभार्थियों ने पिछले 9-10 सालों में सरकार की मदद और स्वयं के प्रयासों से इन अभावों से कुछ हद तक मुक्ति पाई है। इस तरह कल्याणकारी राज्य की परिभाषा बदल गई है।
डा. अश्वनी महाजन
कालेज प्रोफेसर