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राममय होती अयोध्या

1 Jan 2024 8:54 AM GMT
राममय होती अयोध्या
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By: divyahimachal  प्रभु राम के बिना भारत और लोकतंत्र की कल्पना ही नहीं की जा सकती। नया साल शुरू हुआ है, तो उससे पहले ही भारत और अयोध्या ‘राममय’ होने लगे हैं। दरअसल यह हिंदुओं का ही नहीं, राष्ट्र के उत्सव का दौर है। देश के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक गौरव का दौर है। ऋग्वेद, सामवेद, …

By: divyahimachal

प्रभु राम के बिना भारत और लोकतंत्र की कल्पना ही नहीं की जा सकती। नया साल शुरू हुआ है, तो उससे पहले ही भारत और अयोध्या ‘राममय’ होने लगे हैं। दरअसल यह हिंदुओं का ही नहीं, राष्ट्र के उत्सव का दौर है। देश के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक गौरव का दौर है। ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद के मंत्रोच्चार को सुनें और यज्ञों को देखें, तो वैदिक काल लौटता लगता है। यही हमारी सनातन परंपरा है। अयोध्या में उन कारसेवकों की आत्मा की शांति के लिए भी पूजन किए गए हैं, जिन्हें ‘राममय’ मान कर गोलियों से भून दिया गया था। बहरहाल उस अध्याय को हम विस्मृत करने के पक्ष में हैं, क्योंकि यह प्रभु राम की वापसी का सकारात्मक काल है। नववर्ष पर अयोध्या का नया, सजा-संवरा और समर्पित रूप देखकर मन गदगद होता है। अयोध्या देवनगरी थी, प्रभु राम की जन्मस्थली थी और आज भी उसका स्थान बैकुंठ से कम नहीं है। प्रभु राम के जयघोष हैं, मंत्रोच्चार, शंखनाद और फूलों की बरसात भी है, क्योंकि राम अयोध्या में अपने महलनुमा मंदिर में प्रतिष्ठित होने जा रहे हैं। अयोध्या को कभी ‘अभिशप्त नगरी’ भी मान लिया गया था। वह राजनेताओं की दुर्बुद्धि और आसुरी कर्म था। वे अयोध्या में प्रवेश करने से हिचकते थे, क्योंकि एक निश्चित वोट बैंक के खोने की आशंका थी। अदालत ने भी कुछ पाबंदियां थोप दी थीं। मीडिया के कैमरे भी बंद करा दिए गए थे। अयोध्या में एक जमात ‘बाबरी-बाबरी’ के राग अलापती थी। आज उसके लिए भी प्रभु राम कण-कण में व्याप्त हैं। आज बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी सरीखे भी अयोध्या में पुष्प-वर्षा कर रहे हैं। अब अयोध्या का परिसंस्कार किया जा रहा है।

अयोध्या को अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा मिला है। रेलवे का जंक्शन स्टेशन भी लोकार्पित किया गया है, जहां रेलगाडिय़ां अयोध्या को देश के दूसरे महत्त्वपूर्ण हिस्सों से जोड़ेंगी। विमान और ट्रेन में ‘जय श्रीराम’ के उद्घोष गूंजते हुए सुनाई दिए। अयोध्या में पहले ही कुछ होटल थे। उनके अलावा, 20 और पंचतारा होटल निर्माणाधीन हैं। एक अनुमान है कि प्रभु राम की प्राण-प्रतिष्ठा, यानी 22 जनवरी, के बाद औसतन 3 लाख श्रद्धालु और पर्यटक हररोज अयोध्या में आएंगे। हिसाब लगाएं कि यदि इतने श्रद्धालु और पर्यटक अयोध्या आएंगे, तो उस नगरी और आसपास के इलाकों की अर्थव्यवस्था कितनी होगी? अयोध्या को भी, अर्थव्यवस्था के लिहाज से, रोम, मक्का-मदीना और तिरुपति मंदिर की जमात में रखा जा सकेगा। अयोध्या का वाकई कायाकल्प हो रहा है। आलेख के आरंभ में हमने प्रभु राम और भारत-लोकतंत्र के आपसी कल्पना का जिक्र किया था। भारत के संविधान में भी प्रभु राम और माता सीता का चित्र है। देश के प्रधान न्यायाधीश की सीट पर धर्म की व्याख्या है, लिहाजा राजनीति को प्रभु राम से अलग नहीं कर सकते। राजनीति लोकतंत्र का ही प्रारूप है, लेकिन शिवसेना (उद्धव गुट) के संजय राउत का कहना है कि अब भगवान राम को चुनाव प्रत्याशी बनाना ही शेष रह गया है। भाजपा वह भी कर सकती है। यह कुत्सित, नफरती और निंदनीय बयान है। राउत ने गोधरा से भी भयानक दंगों की आशंका किस आधार पर जताई है? हालांकि डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने फिर भी ठीक कहा है कि वह सिर्फ हिंदुओं के ही राम नहीं हैं, बल्कि पूरे विश्व के राम हैं।

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