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By: divyahimachal: लोकसभा में घुसपैठ करने वाले क्या आतंकवादी हैं? यह सवाल इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि अदालत में सरकारी वकील ने ऐसे आरोप लगाए हैं। दिल्ली पुलिस का भी अंदेशा है कि घुसपैठियों की किसी आतंकी साजिश में भूमिका हो सकती है! यदि किसी भी तरह उनके तार आतंकवाद से जुड़े हैं, तो जांच …
By: divyahimachal:
लोकसभा में घुसपैठ करने वाले क्या आतंकवादी हैं? यह सवाल इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि अदालत में सरकारी वकील ने ऐसे आरोप लगाए हैं। दिल्ली पुलिस का भी अंदेशा है कि घुसपैठियों की किसी आतंकी साजिश में भूमिका हो सकती है! यदि किसी भी तरह उनके तार आतंकवाद से जुड़े हैं, तो जांच के निष्कर्ष स्पष्ट कर सकते हैं। यह भी संवेदनशील स्थिति है कि कथित आतंकी संसद की दर्शक-दीर्घा तक पहुंच कर लोकसभा की कार्यवाही के बीच छलांग लगाकर सुरक्षा-व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर चुके हैं। क्या अन्य आतंकियों के लिए रास्ता साफ किया जा चुका है? आतंकवाद का कोई निश्चित चेहरा-मोहरा नहीं होता। किसी की गतिविधियों और घुसपैठी करतूतों से ही आतंकवाद की ओर संकेत जाते हैं। चूंकि पुलिस और जांच एजेंसियों ने संसद के घुसपैठियों के खिलाफ ‘आतंकवाद रोधी अधिनियम’ (यूएपीए) की धारा 16 और 18 के तहत मामला दर्ज किया है, आपराधिक साजिश, देश को तोडऩे, दंगा फैलाने और लोकसेवकों के काम में बाधा डालने की धाराएं भी लगाई गई हैं, लिहाजा प्रथमद्रष्ट्या यह आतंकवाद का मामला लगता है। आरोपितों के काम-धंधे, पढ़ाई और पृष्ठभूमि को देखकर फैसला नहीं लिया जा सकता। यूएपीए कठोरतम कानून है, जिसमें फांसी या आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। इसके तहत जमानत भी असंभव-सी होती है। फिलहाल अदालत ने 7 दिन की रिमांड दी है, जिसे बढ़ाया जाना प्रक्रिया का ही हिस्सा है।
सवाल है कि यदि आरोपित घुसपैठिए आतंकी हैं, तो वे किस संगठन से जुड़े हैं? किसकी साजिश पर उन्होंने लोकसभा में कूदने और धुआं-धुआं करने जैसा हमलावर रुख अपनाया? यदि वे बीते डेढ़ साल से संसद में घुसकर उत्पात मचाने या सनसनी फैलाने की साजिश पर विमर्श कर रहे थे और देश के अलग-अलग शहरों में मुलाकातें कर रहे थे, तो उनके खर्चे कौन उठा रहा था? कौन फंडिंग कर रहा था उन्हें? सवाल कई हैं और जांच के दौरान उन्हें जरूर खंगाला जाएगा, लेकिन वे ‘बेचारे’, ‘बेरोजगार’ और ‘भूले-भटके नौजवान’ नहीं माने जा सकते। जब कश्मीर में आतंकवाद और जेहाद चरम पर थे, तब भी युवा आतंकियों को ‘भूले-भटके’ करार दिया जाता था, लेकिन अकेले उस आतंकवाद ने ही करीब 45,000 जिंदगियां छीन ली थीं। पंजाब और पूर्वोत्तर के आतंकवाद या उग्रवाद की तो चर्चा हम कर ही नहीं रहे। यदि ऐसे विशेषण देकर विपक्ष इन घुसपैठियों का बचाव करेगा और माफ करने की पैरवी करेगा, तो निश्चित ही देश में आतंकवाद कभी समाप्त नहीं हो सकता। देश में लाखों-करोड़ों युवा बेरोजगार हैं और औसत परिवार महंगाई के दंश झेल रहा है, तो इसके मायने ये नहीं हैं कि वे संसद पर ही हमला कर दें! यकीनन ये राष्ट्रीय समस्याएं हैं, लेकिन संसद में घुसपैठ करना तो जघन्य अपराध है। बहरहाल सभी आरोपित सोशल मीडिया पर ‘भगत सिंह फैन क्लब’ और ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस’ ग्रुप से जुड़े हैं।
बल्कि उन्होंने ऐसा क्रांतिकारी बनने का मुगालता पाल लिया है। हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों को ‘अतिवादी नक्सल’ चित्रित कर उन्होंने एक और अपराध किया है। देश में अब अंग्रेजों की नहीं, हमारी अपनी लोकतांत्रिक सत्ता है। फिर किस पर ‘स्मोक कैन’ या ‘बम’ अथवा ‘ग्रेनेड’ का इस्तेमाल किया जा रहा है? यदि आप प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों के खिलाफ हैं, तो चुनाव आने वाले हैं। उनके खिलाफ जनादेश दिया जा सकता है, लेकिन संसद के खिलाफ साजिश स्वीकार्य नहीं है। इस मुद्दे पर क्षुद्र राजनीति करना और बदले में 13 लोकसभा सांसदों को निलंबित करना अच्छा संसदीय आचरण नहीं है। बेशक गृहमंत्री ही नहीं, देश के प्रधानमंत्री को संसद में वक्तव्य देना चाहिए कि देश और उसकी संसद सुरक्षित हैं। संसद की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।