पश्चिमी देशों के राजनयिकों व तालिबान की वार्ता में महिला अधिकारों पर रहा जोर, विदेश मंत्री ने सराहना करते हुए बताया सार्थक कदम

नार्वे की राजधानी ओस्लो में अफगानिस्तान को मानवीय सहायता और मानवाधिकार के मुद्दे पर तालिबान, पश्चिमी देशों के राजनयिकों व अन्य प्रतिनिधियों के बीच मंगलवार को समाप्त हुई तीन दिवसीय वार्ता में महिलाओं के अधिकारों पर जोर रहा।

Update: 2022-01-26 18:56 GMT

नार्वे की राजधानी ओस्लो में अफगानिस्तान को मानवीय सहायता और मानवाधिकार के मुद्दे पर तालिबान, पश्चिमी देशों के राजनयिकों व अन्य प्रतिनिधियों के बीच मंगलवार को समाप्त हुई तीन दिवसीय वार्ता में महिलाओं के अधिकारों पर जोर रहा। अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने वार्ता की सराहना करते हुए उसे सार्थक बताया। यह बैठक ऐसे समय में हुई है, जब ठंड के साथ अफगानिस्तान का आर्थिक संकट भी बढ़ रहा है। मुत्ताकी ने खास बातचीत में कहा, 'ऐसी यात्राएं हमें दुनिया के करीब लाएंगी। तालिबान सरकार अफगानिस्तान को समस्याओं से बचाने, अधिक सहायता लेने व आर्थिक समस्याओं के समाधान का हरसंभव प्रयास करेगी।' तालिबान अमेरिका व अन्य पश्चिमी देशों द्वारा रोकी गई 10 अरब डालर की राशि को जारी करने की मांग कर रहा है। लेकिन, प्रतिबंधों में ढील देने के लिए पश्चिमी ताकतें अफगान महिलाओं व लड़कियों को और अधिकार देने तथा सरकार में अल्पसंख्यक जातीय व धार्मिक समूहों की भागीदारी की शर्तें रख रही हैं। एएनआइ के अनुसार, तालिबानी विदेश मंत्रालय ने बुधवार को एक बयान में कहा कि अमेरिका के वरिष्ठ ट्रेजरी अधिकारी के साथ रोकी गई राशि व प्रतिबंधों के मुद्दे पर गंभीर व प्रभावी बातचीत हुई।

महिला कार्यकर्ताओं को छोड़ने की उठी मांग
एएनआइ के अनुसार, महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली अफगानी कार्यकर्ताओं ने मंगलवार को तालिबानी प्रतिनिधिमंडल को ज्ञापन सौंपकर पिछले हफ्ते लापता हुईं दो महिला कार्यकर्ताओं को छोड़ने की मांग की। नार्वे में हुई बैठक में शामिल रही होदा खामोश ने कहा कि अफगानिस्तान के मौजूदा हालात के लिए पूरी दुनिया जिम्मेदार है। इस बीच अफगानिस्तान स्थित संयुक्त राष्ट्र के सहायता मिशन प्रमुख ने गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी से मुलाकात की और दोनों महिला कार्यकर्ताओं को रिहा करने का आग्रह किया।
विश्व में इस्लामी आतंकियों का घर बनता जा रहा अफगानिस्तान
पाकिस्तानी मीडिया इस्लाम खबर ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद वह दुनियाभर के इस्लामी आतंकियों का घर बनता जा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के साथ ही अल कायदा लौट आया है और इस्लामिक स्टेट-खुरासान भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रहा है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) की मजबूती के साथ पाकिस्तान में आतंकी खतरा बढ़ गया है। पाकिस्तान द्वारा पाले गए लश्कर-ए-तैयबा व जैश-ए-मुहम्मद जैसे पुराने समूहों के मजबूत होने के साथ ही आतंक का चक्र पूरा हो जाता है। ये आतंकी संगठन भले ही आधिकारिक रूप से प्रतिबंधित हैं, लेकिन हकीकत में लगातार विस्तार ले रहे हैं। आतंकी संगठन पाकिस्तान व अफगानिस्तान में हिंसक वारदातों में वृद्धि करेंगे, जिसका सीधा असर ईरान, चीन व मध्य एशिया पर पड़ेगा।
पुराने रास्ते पर लौट चुका है तालिबान
कनाडा आधारित थिंक टैंक इंरटनेशनल फोरम फार राइट्स एंड सिक्योरिटी (आइएफएफआरएएस) ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि तालिबान अपने पुराने रास्ते पर लौट चुका है। काबुल यूनिवर्सिटी के एक मशहूर प्रोफेसर को गिरफ्तार किया जाना, महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली एक कार्यकर्ता को गोली मार देना और नए साल का जश्न मनाने पर लोगों के बाल कटवा देना इसके चंद उदाहरण हैं। प्रोफेसर फैजलुल्ला जलाल टीवी शो में भाग लेते थे और तालिबान को मौजूदा वित्तीय संकट तथा बलपूर्वक शासन के लिए जिम्मेदार ठहराते थे। कुंदुज प्रांत के 30 हजार बच्चों को शिक्षा से इसलिए वंचित कर दिया गया, क्योंकि उनके स्कूल क्षेत्र में पूर्ववर्ती अफगानिस्तान सुरक्षा बल व तालिबान में युद्ध चल रहा है।
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