कुवैत में योग को लेकर रूढ़िवादी और कट्टरपंथियों के खिलाफ खड़ी हुई महिलाएं, कहा- लंबे समय से भरा था गुबार
कुवैत में योग को लेकर जहां एक तरफ महिलाएं एक सुर में इसके समर्थन में उतर आई है वहीं दूसरी तरफ यहां के मौलवियों और कट्टरपंथियों को इससे परेशानी हो रही है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कुवैत में योग को लेकर जहां एक तरफ महिलाएं एक सुर में इसके समर्थन में उतर आई है वहीं दूसरी तरफ यहां के मौलवियों और कट्टरपंथियों को इससे परेशानी हो रही है। ताजा मामला एक योग शिविर से जुड़ा है जहां पर योग सिखाने वाले एक टीचर ने रेगिस्तान में वेलनेस योगा रिट्रीट का विज्ञापन दिया था। ये विज्ञापन इसी माह दिया गया था, जिसके बाद इसके खिलाफ यहां के रुढ़िवादी इसके खिलाफ हो गए। उन्होंने इसे इस्लाम पर हमला करार दिया है। इसके विरोध में आने वालों में केवल मौलिवी ही नहीं बल्कि यहां के नेता भी खड़े हो गए हैं। इन लोगों ने सार्वजनिक जगहों पर पद्मसान और श्वानासन की योग मुद्रा को इस्लाम के लिए खतरनाक बताया है। विवाद बढ़ने के बाद इस योग शिविर को फिलहाल बैन कर दिया गया है।
महिलाएं एकजुट: पुरुषों के वर्चस्व वाले इस देश में इस फैसले के खिलाफ अब महिलाएं भी एकजुट हो गई हैं। अब यहां की महिलाओं के लिए योग महिला अधिकारों की लड़ाई का एक प्रतीक बन गया है। हालांकि इस मसले पर यहां का समाज दो खेमों में बंटता हुआ साफ देखा जा रहा है। यहां के रुढ़िवादियों का कहना है कि महिलाओं की ऐसी कोशिशें उनके देश के पारंपरिक मूल्यों पर हमला करने जैसी हैं। इन लोगों के निशाने पर सरकार भी है। इनका कहना है कि सरकार इस मुद्दे को सही से हैंडल नहीं कर रही है। कुवैत में महिला अधिकारों की एक्टिविस्ट नजीबा हयात की रुढि़वादियों के ऐसे रवैये से कुवैत तेजी से पीछे जा रहा है। वे अन्य महिलाओं के साथ कुवैत की संसद के बाहर प्रदर्शन भी कर चुकी हैं।
महिलाओं को बेहद कम अधिकार : कुवैत उन देशों में शामिल रहा है जहां पर महिलाओं को बेहद कम अधिकार दिए गए हैं। हालांकि पूर्व में अपने कट्टरवादी विचारधारा के लिए पहचाने जाने वाले सऊदी अरब और इराक में भी अब महिलाओं को काफी अधिकार दिए जा चुके हैं। सऊदी अरब में तो महिलाओं के लिए ये एक नए युग जैसा है। वहीं कुवैत आज भी अपने पुराने रवैये को अपनाए हुए है। आपको बता दें कि जनवरी 2022 में सऊदी अरब ने पहली बार ओपन एयर योग फेस्टिवल आयोजित कराया था। उस वक्त कुवैत में सोशल मीडिया पर इसकी खूब चर्चा हुई थी।
अब खुलकर बाहर आ रहा है गुबार: एबालिश 153 नाम के संगठन की संस्थापक अलानौद अलशारेख कहती हैं कि यहां की महिलाओं के मन में पहले से ही यहां की बंदिशों को लेकर गुबार भरा हुआ है। अब ये खुलकर बाहर आ रहा है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि महिला द्वारा किसी अपराध को किए जाने पर यहां के कानून में कठोर दंड है जबकि दूसरी तरफ महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों के लिए ये दंड न के ही बराबर है। कुवैती दंड संहिता की धारा 153 के तहत सम्मान की खातिर महिला की हत्या पर बेहद मामूली सजा प्रावधान है। इस कानून को रद करने की मांग भी कई बार की जा चुकी है।वर्ष 2021 में हुए फराह हत्याकांड के बाद जो विरोध प्रदर्शन हुए थे उसके बाद संसद ने आर्टिकल 153 को रद्द करने का ड्राफ्ट पेश किया। इसमें कहा गया था कि यदि किसी महिला की हत्या इसलिए की जाती है कि उसके किसी अन्य पुरुष के साथ नाजायज संबंध है तो दोषी को अधिकतम तीन साल की कैद और 46 डालर का जुर्माना चुकाना होगा।
सेना में नहीं मिली नौकरी की इजाजत: इसको कुवैत की संसद में एक अभूतपूर्व कदम भी कहा गया था। लेकिन बाद में संसदीय समिति ने इस मामले को मौलवियों के सामने भेज दिया जिन्होंने पूर्व की स्थिति बहाल करने पर ही मुहर लगाई थी। इसके बाद पिछले माह ही इस धारा 153 को दोबारा लागू कर दिया गया था। एबालिश 153 ग्रुप की सदस्य सुनदूस हुसैन का कहना है कि संसद में वही लोग बैठे हैं जो ऐसे ही समाज से आते हैं। ऐसे लोगों की जमात वर्ष 2020 के चुनावों के बाद बढ़ी है। महिलाओं के अधिकारों का कुवैत में हाल कुछ ऐसा है कि यहां पर सेना में महिलाओं की भर्ती की मांग को भी ठुकराया जा चुका है।