49 वर्षीय नेफ्टाली बेनेट 8 साल पहले जब पहली बार सांसद बनकर नेसेट (संसद) पहुंचे तब शायद उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि इतनी जल्दी उन्हें देश का प्रधानमंत्री बनने का मौका मिल जाएगा. सोचा तो शायद बेन्यामिन नेतन्याहू ने भी नहीं होगा कि कभी उनके वफादार रहे नेफ्टाली उन्हें सत्ता से बाहर कर खुद पीएम बनने का रास्ता तैयार कर लेंगे. इजरायल में अभी नई सरकार बनने में वक्त है. लेकिन इजरायली सेना की नौकरी और न्यूयॉर्क में सफल कारोबार के बाद सियासी सफर में चार-चार पार्टियां बदलकर, करीब हर सरकार में मंत्री पद हासिल कर नेफ्टाली बेनेट यह तो साबित कर ही चुके हैं कि वो न सिर्फ हरफनमौला हैं बल्कि अपनी हर चाल सोच-समझ कर चलते हैं. यही वजह है उनके पीएम बनने से पहले ही फिलिस्तीन और मध्य पूर्व क्षेत्र में अनिश्चितता का माहौल बन गया है.
…क्योंकि नेफ्टाली शांति नहीं पूरे फिलिस्तीन पर कब्जा के हिमायती हैं
फिलिस्तीन की नजर में नेफ्टाली बेनेट बेन्यामिन नेतन्याहू से भी ज्यादा खतरनाक हैं. क्योंकि नेफ्टाली की कट्टर दक्षिणपंथी विचारधारा किसी से छिपी नहीं है. वो इजरायल-फिलिस्तीन विवाद के समाधान में यकीन नहीं रखते. वो खुल कर वेस्ट बैंक के इजरायल में विलय की मांग करते हैं. वो इजरायल की सुरक्षा और यहूदियों को बस्तियां बसाने के साथ-साथ पानी पर इजरायल के नियंत्रण के लिए भी विलय को जरूरी मानते हैं. नेफ्टाली बेनेट ऐसे प्रस्तावों का 'सेवन-प्वाइंट प्लान' 2012 में ही जगजाहिर कर चुके हैं.
फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाले नेफ्टाली विदेशी मीडिया के सामने भी आग उगलने के लिए बदनाम हैं. 2013 में उन्होंने कहा कि फिलिस्तीनी आतंकियों को जेल से रिहाई नहीं बल्कि मौत मिलनी चाहिए. 2018 में गाजा में विरोध प्रदर्शन के दौरान नेफ्टाली ने कहा कि इन हालात में इजरायली सेना को 'शूट टु किल' की नीति अपनानी चाहिए. यानी गोली चलाने की नौबत आए तो सामने वाले को मार गिराना चाहिए. जब बच्चों पर इजरायली सेना की कार्रवाई के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था, 'ये बच्चे नहीं, आतंकवादी हैं. हमें खुद को बेवकूफ बनाना बंद कर देना चाहिए. हम रोज-रोज गाजा के इन आतंकियों को सीमा पार करने की इजाजत नहीं दे सकते.'
नेफ्टाली का सपना: जॉर्डन नदी से लेकर भूमध्यसागर तक इजरायल का कब्जा
अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को से इजरायल में आकर बसे प्रवासी परिवार में जन्मे नेफ्टाली का एक ही सपना है: जॉर्डन नदी से लेकर भूमध्यसागर तक इजरायल का कब्जा. 2017 में एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, उनकी चली तो वो किसी कीमत पर फिलिस्तीन स्टेट की स्थापना नहीं होने होंगे. क्योंकि फिलिस्तीनी स्टेट अगले 200 वर्षों के लिए मुसीबत बन सकता है. नेफ्टाली जब शिक्षा मंत्री थे तो उस कानून का उन्होंने खुल कर समर्थन किया जिसमें इजरायल और उसकी सेना की आलोचना करने वाले समूहों पर स्कूलों में घुसने और छात्रों से बात करने की पाबंदी का प्रावधान था.
गौर करने की बात यह है नेफ्टाली बेनेट ने प्रधानमंत्री बनने के लिए विपक्ष के नेता येर लेपिड से हाथ मिलाया है. समझौते के मुताबिक पहले दो साल यानी 2023 तक नेफ्टाली और अगले दो साल तक येर लेपिड पीएम होंगे. 120 सदस्यों वाली इजरायली नेसेट में जहां येर लेपिड की पार्टी के पास 17 सांसद हैं वहां नेफ्टाली की यामिना पार्टी के सिर्फ 7 सांसद हैं. खास बात ये है कि गठबंधन के एक और साथी ब्लू एंड व्हाइट पार्टी के पास इससे ज्यादा यानी 8 सांसद हैं और लेबर पार्टी समेत दो पार्टियों के 7-7 सांसद हैं, लेकिन पीएम पद की दावेदारी नेफ्टाली ने हासिल कर ली.
गठबंधन की सरकार और विचारधारा में तालमेल बनाना नेफ्टाली की चुनौती
जाहिर है नेफ्टाली बेनेट सत्ता के मोल-भाव में भी आक्रामक तेवर रखते हैं. लेकिन पीएम बनने के बाद 8 पार्टियों की सरकार चलाना उनकी सबसे बड़ी चुनौती होगी. क्योंकि येर लेपिड की पहल पर बने इस मोर्चे में लेफ्ट, राइट और सेंटर तीनों विचारधारा वाली पार्टियां मौजूद हैं. खास बात ये है कि इसमें न्यू होप और यूनाइटेड अरब लिस्ट जैसी वो पार्टियां भी शामिल हैं जो अब तक तटस्थ थीं. जहां लिकुड पार्टी से अलग होकर बनी 6 सांसदों वाली दक्षिणपंथी न्यू होप पार्टी ने नेतन्याहू सरकार से दूरी बना रखी थी. 4 सांसदों की यूनाइटेड अरब लिस्ट/रा'म पार्टी के मुखिया मंसूर अब्बास को मनाना येर लेपिड के लिए कोई आसान काम नहीं था.
इससे भी बड़ी बात ये है कि फिलिस्तीन के मुद्दों पर इन पार्टियों की राय में बड़ा मतभेद है. खुद नेफ्टाली बेनेट और येर लेपिड इस मसले पर एक दूसरे के मुखर विरोधी रहे हैं. क्योंकि नेफ्टाली से उलट येर लेपिड हमेशा से 'टू स्टेट सॉल्यूशन' के समर्थक रहे हैं. हालांकि गठबंधन की डील साइन करने के बाद दोनों एक दूसरे को दोस्त बता रहे हैं.
इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री बनने के बाद आने वाली चुनौतियों का अंदाजा नेफ्टाली बेनेट को भी है. उनकी दलील है कि देश को सियासी गतिरोध से बाहर निकालने के लिए उनके पास विपरीत विचारधारा वाली पार्टियों से हाथ मिलाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था. लेकिन नेफ्टाली यह भी जानते हैं कि इजरायल में उनका जनाधार उनकी इमेज और आइडियोलॉजी से ही बना है.
सरकार चलानेे केे लिए विचारधारा से कितना समझौता कर पाएंगे नेफ्टाली?
पीएम बनने के बाद उन पर वेस्ट बैंक में बस्तियों की मांग करने वाले यहूदियों का दबाव भी होगा. उसका नेफ्टाली क्या रास्ता निकालेंगे? हमास से 11 दिनों के संघर्ष के बीच इजरायल में अरब आबादी और यहूदियों के बीच टकराव के कई मामले सामने आए. दोनों समुदायों के बीच बढ़ते तनाव का वो क्या हल निकालेंगे? यह बात ठीक है कि मिलीजुली सरकार को बचाए रखने के लिए वो फिलिस्तीन के मसले पर आक्रामक रुख अख्तियार करने से बचने की कोशिश करेंगे. लेकिन कभी हालात बिगड़े तो अपनी विचारधारा से वो कितना समझौता कर पाएंगे?
यही वो सवाल हैं जिनके जवाब में नेफ्टाली बेनेट का राजनीतिक भविष्य टिका है. इसके अलावा इजरायल के कई मुद्दे सीधे तौर पर मध्य-पूर्व के हालात से जुड़े हैं. सरकार चलाने की चाहे कैसी भी मजबूरी हो, इजरायल का कोई भी प्रधानमंत्री बाहरी ताकतों के सामने कमजोर पड़ने का खतरा नहीं मोल सकता. ईरान और तुर्की जैसे देशों से इजरायल के खराब रिश्ते और हमास और हिजबुल्ला जैसे कट्टरपंथी संगठनों से पुरानी जंग कई ऐसे हालात जन्म दे सकता है जिससे निपटने में नेफ्टाली का सियासी संयम जवाब दे सकता है.
नेफ्टाली बेनेट के सियासी भविष्य पर 15 साल तक इजरायल के पीएम रहे बेन्यामिन नेतन्याहू का खतरा अब भी बना है. माना जा रहा है कि नेतन्याहू अब भी विपक्षी गठबंधन को तोड़ने की कोशिश में लगे हैं. छोटी-छोटी पार्टियों से बने गठबंधन में 2-3 सांसदों के इधर-उधर होने से नेफ्टाली का खेल खराब हो सकता है.
इजरायल में पिछले दो साल में चार चुनाव हो चुके हैं. लेकिन नेतन्याहू जैसे-तैसे प्रधानमंत्री पद पर बने रहे. नेफ्टाली के प्रधानमंत्री बनने के बाद सरकार गिरी तो अगला चुनाव तय है और नेतन्याहू का जनाधार अभी खत्म नहीं हुआ है. तभी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे होने के बाद भी नेतन्याहू पिछले चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब रहे. अगला चुनाव जल्द हुआ तो हमास से संघर्ष के मुद्दे पर भी बेन्यामिन नेतन्याहू को राजनीतिक फायदा मिल सकता है. साफ है राजनीतिक अनिश्चितता की वजह से पीएम बनने के बाद नेफ्टाली बेेनेट के लिए आगे राह आसान नहीं है.