आज से 6.6 करोड़ साल पहले धरती पर हुई महाविनाश की घटना काफी मशहूर है। इसमें डायनासोर के साथ-साथ पृथ्वी का 75 फीसदी जीवन नष्ट हो गया था। लेकिन इससे भी करोड़ों साल पुरानी एक घटना इसकी तुलना में काफी छोटी मानी जाती है, जिसे 'द ग्रेट डाइंग' कहा जाता है। यह कयामती महाविनाश की घटना हजारों साल तक चली, जिसमें पृथ्वी पर केवल 5 फीसदी जीवन ही बचा था। हाल ही में वैज्ञानिकों ने ये पता लगा लिया है कि आखिर यह 5 फीसदी जीवन बचने में कैसे सफल रहा और इन जीवों का विकास चक्र कैसे आगे बढ़ सका?
द ग्रेट डाइंग की घटना करीब 23 करोड़ साल पहले पर्मियान युग में घटी थी, जिसमें पूरी पृथ्वी में भारी संख्या में ज्वालामुखी विस्फोट हुए थे। इस विस्फोट से एक हजार खरब टन की मात्रा में कार्बन निकल कर पृथ्वी के पूरे वायुमंडल में छा गया था। इस घटना के बाद हजारों सालों तक कयामती जलवायु परिवर्तन हुआ था और पूरी पृथ्वी पर मात्र 5 फीसदी प्रजातियां ही खुद को बचाने में सफल हो पाई थी। ऐसे में सवाल ये भी उठा कि आखिर इस महाविनाश के बाद जीवन ने कैसे वापसी की? इन सवालों का जवाब खोजने के लिए चीन के वुहान की चाइना यूनिवर्सिटी ऑफ जियोसाइंसेस के शोधकर्ता और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक युआनगेंग हुआंग ने प्रयास किया।
युआनगेंग हुआंग ने पर्मियान और ट्रियासिक कालों में उत्तरी चीन में रही खाद्य शृंखला के 14 समूहों का पता लगाकर फिर से खाद्य जाल का निर्माण किया। शोधकर्ताओं ने जीवाश्मों के दांत, पेट और मल में मिले पदार्थों का अध्ययन कर ये पता किया कि इन जीवों ने क्या खाया था? इससे इन पुराने पारिस्थितिकी तंत्रों की खाद्य शृंखला के बारे में सटीक जानकारी बनाने में मदद मिली।
खाद्य शृंखला में घोंगा, पौधे, कीट पतंगे आदि, जो तालाबों और नदियों में रहते हैं और इन्हें खाने वाली मछलियां, उभयचर और सरीसृप जीव शामिल रहते हैं। बता दें कि पर्मियान युग में सरीसृप बहुत ही विशालकाय हुआ करते थे, जिसमें आज की छिपकली से लेकर बहुत बड़े सांप जैसे जीव शामिल थे। ऐसा ही एक जीव कटार के आकार वाले दातों के गोर्गोनोप्सियन प्रजाति थी, जो सबसे शीर्ष का शिकारी जीव था। इसकी जगह करोड़ों सालों तक कोई भी नहीं ले सका था।
पर्मियान युग में हुए इस महाविनाश के बाद पहले डायनासोर और स्तनापायी जीवन 16.5 करोड़ साल पहले आने शुरू हुए। कैलिफोर्निया एकेडमी ऑफ साइंसेस के पीटर रूपनारायन ने कहा कि हुआंग ने उनकी लैब में एक साल का समय बिताया और इकोलॉजिल मॉडलिंग पद्धतियों को लागू कर खाद्य जाल की स्थायित्व का पता लगाया, जिससे शोधकर्ता प्रजातियों को खाद्य जाल से छांट सके। इस महाविनाश के बाद पारिस्थितिकी तंत्र को फिर से खड़ा होने में एक करोड़ साल का समय लगा, जबकि अन्य घटनाओं में सुधार जल्दी हो गया था।