आज डाले जाएंगे इराक में वोट, 3200 उम्मीदवारों का भविष्य तय करेंगे 2.5 करोड़ वोटर्स
इराक में रविवार को संसदीय चुनावों के लिए वोट डाले जाएंगे. 2003 में अमेरिका के आक्रमण के बाद लंबे समय तक तानाशाह रहे सद्दाम हुसैन को सत्ता से बेदखल किए जाने के बाद से इराकी मतदाता पांचवीं बार नई संसद का चुनाव करने के लिए मतदान करेंगे.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। इराक (Iraq) में रविवार को संसदीय चुनावों के लिए वोट डाले जाएंगे. 2003 में अमेरिका के आक्रमण के बाद लंबे समय तक तानाशाह रहे सद्दाम हुसैन (Saddam Hussein) को सत्ता से बेदखल किए जाने के बाद से इराकी मतदाता (Iraqi voters) पांचवीं बार नई संसद का चुनाव करने के लिए मतदान करेंगे. हालांकि, इन सबके बाद भी बहुत से इराकी लोगों को वोट डालने की कोई वजह नजर नहीं आती है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि वर्तमान में सत्ता में काबिज गठबंधन पार्टियों के ही फिर से प्रभुत्व जमाने की उम्मीद है.
सत्ताधारी पार्टियों में से अधिकतर को मिलिशिया का समर्थन मिला हुआ और इनके हमले में 600 से अधिक प्रदर्शनकारियों की मौत हुई है. युवा इराकी लोगों का कहना है कि उन्हें अपने इस मुल्क में कोई भी भविष्य नजर नहीं आता है. जहां कुछ प्रदर्शनकारी उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं कई अन्य ने वोटिंग का बॉयकॉट करने की मांग की है. दूसरी ओर, चुनाव का अंतिम परिणाम देश के सांप्रदायिक नेताओं, ईरान (Iran) और अमेरिका (America) सहित शक्तिशाली खिलाड़ियों द्वारा आकार दिया जाएगा.
मौजूदा पार्टियों को बढ़त मिलने की उम्मीद
सालों तक सत्ता के अप्रभावी शासन को देखने वाली जनता रविवार को वोटिंग के जरिए इस बात का टेस्ट देगी कि उसे राजनीतिक व्यवस्था में कितना यकीन है. इराक में 2.5 करोड़ से अधिक रजिस्टर्ड वोटर्स हैं. संसद की 329 सीटों के लिए 3200 से ज्यादा उम्मीदवार हैं. नए सांसद अगले प्रधानमंत्री का चयन करेंगे. चुनाव लड़ रहीं नई पार्टियों के पास ज्यादा फंड नहीं है. नई उम्मीदवारों को धमकियां मिल रही हैं. ऐसे में इनके जीतने की गुंजाइश कम ही है. ऐसे में मौजूदा बड़ी पार्टियों के हिस्से में अधिकतर वोट जाने वाले हैं.
अमेरिका को सरकार की विफलता के लिए जिम्मेदार मानते हैं लोग
ईरान समर्थित पार्टियों ने अमेरिका को देश छोड़ने को कहा और ये उनका मुख्य चुनावी मुद्दा भी है. अमेरिका का कहना है कि वह साल के आखिर तक इराक से लौट जाएगा, लेकिन इराकी सेना को सलाह देना जारी रखा जाएगा. आलोचकों का कहना है कि इराक में सरकार के विफल होने की जिम्मेदारी अमेरिका की है. अमेरिका समर्थित इराकी गवर्निंग काउंसिल ने सांप्रदायिक विभाजन की एक प्रणाली की स्थापना की. इसे इराक में सरकार चलाने में सबसे बड़ी बाधा के रूप में देखा जाता है. इसकी वजह से भ्रष्टाचार में भी इजाफा हुआ है.
नतीजों को आने में लगेगा समय
मुख्य खिलाड़ियों के बीच महीनों की बातचीत के बाद वोटिंग हो रही है. इस बात की उम्मीद की जाती है कि कोई भी पार्टी पूर्ण बहुमत हासिल नहीं करेगी और चुनाव के बाद लंबी सौदेबाजी की प्रक्रिया होगी, क्योंकि पार्टियां गठबंधन बनाती हैं और मंत्रालयों के नियंत्रण को विभाजित करती हैं. इसमें महीनों लग सकते हैं. अंतिम नतीजे को आकार देने में अमेरिका और ईरान की कुछ भूमिका होने की संभावना है. अतीत में, इन देशों ने अनिवार्य रूप से उस व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाया है, जिस पर दोनों सहमत हैं. दोनों ही मुल्कों के इराक में अपने-अपने हित हैं.