नई दिल्ली: अमेरिकी पत्रकार फरीद जकारिया (Fareed Zakaria) ने यूक्रेन पर रूसी हमले को 9/11 के आतंकी हमले से कहीं बड़ी घटना करार दिया है. शीत युद्ध के बाद के युग में रूस के आक्रमण को सबसे महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय घटना कहते हुए जकारिया ने कहा कि जिस तरह बर्लिन की दीवार के गिरने से एक नई विश्व व्यवस्था का सूत्रपात हुआ, उसी तरह यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के भी प्रभाव होंगे.
यह पूछे जाने पर कि क्या रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) सोवियत संघ को पुनर्जीवित करना चाहते हैं? इस पर फरीद जकारिया ने कहा, रूस अंतिम बहु-राष्ट्रीय साम्राज्य है जो विघटन के दौर से गुजरा है. रूस का यूक्रेन के बिना सबसे महान बनने का विचार असंभव है.
रूस-यूक्रेन संघर्ष में चीन की भूमिका के बारे में बोलते हुए फरीद जकारिया ने कहा, 'चीन ने बयानबाजी से रूसियों का समर्थन जरूर किया है लेकिन व्यावहारिक रूप से रूस को उस तरह का समर्थन नहीं दिया है जैसा कि निरंकुश ताकतें कर सकती हैं.'
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की प्रशंसा करते हुए फरीद जकारिया ने कहा, 'रूस-यूक्रेन संकट से निपटने में बाइडेन ने असरदार भूमिका निभाई है. अमेरिका किसी अन्य देश से भी ज्यादा दंडात्मक प्रतिबंध लगाने में सक्षम है.'
जकारिया ने कहा, रूसी अर्थव्यवस्था प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी में 20 फीसदी की गिरावट का सामना कर रही है. क्या इससे पुतिन का मनबदल जाएगा? नहीं, क्योंकि वह एक तानाशाह हैं ... लेकिन वह एक बड़ी कीमत चुका रहे हैं और रूस को दुनिया से अलग-थलग करना जारी रहेगा.
यह पूछे जाने पर कि क्या भारत जैसे देशों को उस तरह का चुनाव करना होगा जो उन्होंने शायद शीत युद्ध के दौर में किया था, फरीद ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि भारत उस तरह के दबाव का सामना कर रहा है, क्योंकि आज शीत युद्ध के दौर की तुलना में भारत कहीं ज्यादा शक्तिशाली देश है. भारत के पास दोनों रास्ते हैं, वो पश्चिम के साथ अच्छे संबंध बनाए रखते हुए रूस के साथ उचित संबंध रखने में सक्षम होगा. उन्होंने कहा कि भारत को जिस मूल रणनीतिक वास्तविकता से निपटना है, वह चीन का बढ़ता प्रभाव है.
अमेरिकी पत्रकार ने आगे कहा, "चीन का उदय सीधे भारतीय सुरक्षा और उसके राष्ट्रीय हित के लिए खतरा है... 30-40 साल तक एक ही विदेश नीति रखने का कोई मतलब कैसे हो सकता है? भारत के लिए मेरी बातों का असली सार यही है कि आप अपने वास्तविक राष्ट्रीय हितों में कार्य करें.
फरीद जकारिया ने आगे कहा, "ऐसे हालात में जहां रूस एक तरह से चीन का एक छोटा साझेदार है, तब भारत को अपने राष्ट्रीय हितों के बारे में कैसे सोचना चाहिए? मैं कभी-कभी दिल्ली के अभिजात वर्ग को यह कहते हुए सुनता हूं कि पश्चिम कैसे ढहता जा रहा है और पूर्व का सूरज उदय हो रहा है और भारत उस पर दांव लगाने जा रहा है. जब आप अपने बच्चों को चीन के विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिए भेजना बंद कर देंगे, तब मैं सहमत हो जाऊंगा कि आप असल में इस पर विश्वास करते हैं. इस मामले की सच्चाई यह है कि एक समाज के रूप में भारत खुले लोकतंत्र से डील करने में ज्यादा सहज है.