यूएन ने कहा- अफगानिस्तान में स्वतंत्रता का आनंद ले रहे आंतकी, तालिबान के सत्ता में आते ही सुरक्षित पनाहगाह बना देश

संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने सोमवार को एक रिपोर्ट में कहा कि अफगानिस्तान में हाल में सत्ता में आए तालिबान के अल कायदा के साथ पूर्व संबंधों के कारण अफगानिस्तान चरमपंथियों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह बन रहा है और ‘आतंकवादी संगठनों के हालिया इतिहास में उन्हें वहां पहले से अधिक स्वतंत्रता मिली हुई है.’

Update: 2022-02-08 06:12 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के विशेषज्ञों ने सोमवार को एक रिपोर्ट में कहा कि अफगानिस्तान (Afghanistan) में हाल में सत्ता में आए तालिबान के अल कायदा के साथ पूर्व संबंधों के कारण अफगानिस्तान चरमपंथियों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह बन रहा है और 'आतंकवादी संगठनों (Terror Organizations in Afghanistan) के हालिया इतिहास में उन्हें वहां पहले से अधिक स्वतंत्रता मिली हुई है.' संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने कहा कि अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट समूह दोनों से जुड़े चरमपंथी अफ्रीका, खासकर अशांत साहेल में सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहे हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस्लामिक स्टेट इराक और सीरिया में 'एक ग्रामीण विद्रोह' के रूप में सक्रिय है. विशेषज्ञों ने कहा कि इंडोनेशिया और फिलीपींस दोनों ने इस्लामिक स्टेट और अल-कायदा से जुड़े 'आतंकवाद' से निपटने में एक 'महत्वपूर्ण बढ़त' की जानकारी भी दी है. अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लगे प्रतिबंधों की निगरानी करने वाली विशेषज्ञों की समिति ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को सौंपी गई एक रिपोर्ट में कहा कि अमेरिका और नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) सैनिकों की 20 वर्ष बाद अफगानिस्तान से अराजकता भरी वापसी के बाद 15 अगस्त को तालिबान सत्ता में आया और तब से 2021 के अंतिम छह महीनों में कई घटनाएं हुई हैं.
तालिबान ने कोई कदम नहीं उठाए
विशेषज्ञों ने कहा, 'हाल में ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है कि तालिबान ने देश में विदेशी आतंकवादियों की गतिविधियों को सीमित करने के लिए कदम उठाए हैं,' बल्कि इसके विपरित आतंकवादी संगठन 'अपार स्वतंत्रता' का आनंद ले रहे हैं. बहरहाल, संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने 'अफगानिस्तान में विदेशी आतंकवादियों की मौजूदगी की कोई जानकारी नहीं दी है.' विशेषज्ञों ने उल्लेख किया कि अल-कायदा ने 31 अगस्त को तालिबान को उसकी जीत पर बधाई देते हुए एक बयान जारी किया था.
अल-कायदा की चुप्पी की क्या वजह है?
तब से अल-कायदा ने 'एक रणनीतिक चुप्पी बनाए रखी है. संभवतः यह अंतरराष्ट्रीय मान्यता एवं वैधता हासिल करने के लिए तालिबान के प्रयासों को नुकसान नहीं पहुंचाने का प्रयास है.' समिति ने यह भी बताया कि जनवरी 2021 में अल-कायदा के सरगना अयमान अल-जवाहिरी के जिंदा होने की जानकारी मिली थी, 'लेकिन सदस्य देशों का मानना है कि उनकी हालत बेहद खराब है.' अल कायदा इसलिए भी चुप है, ताकि तालिबान की सरकार को वैश्विक मान्यता मिलने में किसी भी तरह की परेशानी ना आए. ऐसी भी खबरें सामने आईं कि ओसामा बिन लादेन का बेटा अब्दल्ला बीते साल अक्टूबर महीने में तालिबान के साथ बैठक करने के लिए अफगानिस्तान गया था.
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