UN की रिपोर्ट में खुलासा, तालिबानी क्षेत्रों में 'आजादी' से प्रशिक्षण शिविर चलाते हैं पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह

पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद अफगानिस्तान के तालिबान-नियंत्रित हिस्सों में मौजूद हैं जहां वे प्रशिक्षण शिविर चलाते हैं और बड़ी बैठकों सहित सत्तारूढ़ शासन के साथ गहरे संबंध रखते हैं।

Update: 2022-05-30 02:57 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और जैश-ए-मोहम्मद (जेएम) अफगानिस्तान के तालिबान-नियंत्रित हिस्सों में मौजूद हैं जहां वे प्रशिक्षण शिविर चलाते हैं और बड़ी बैठकों सहित सत्तारूढ़ शासन के साथ गहरे संबंध रखते हैं। अफगानिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र निगरानी दल की नवीनतम रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारतीय उपमहाद्वीप में अल कायदा (यानी एक्यूआईएस) में 180 से 400 लड़ाके हैं, जिनमें "बांग्लादेश, भारत, म्यांमार और पाकिस्तान के नागरिक हैं और यह अफगानिस्तान के... गजनी, हेलमंद, कंधार, निमरुज, पक्तिका और जाबुल प्रांत में स्थित हैं।"

हालांकि, इसमें कहा गया है कि अल कायदा "नए अफगान शासन के तहत ज्यादा आजादी का लुफ्त उठा रहा है। इसके द्वारा अगले एक या दो साल के लिए अफगानिस्तान के बाहर हमलों या प्रत्यक्ष हमलों की संभावना नहीं है, क्योंकि इसके पास क्षमता की कमी है और तालिबान भी संयम दिखा रहा है।"
रिपोर्ट में एक सदस्य राज्य का हवाला देते हुए कहा गया है कि "JeM नंगरहार में आठ प्रशिक्षण शिविर चलाता है, जिनमें से तीन सीधे तालिबान के नियंत्रण में हैं"। लश्कर के पास कहा जा रहा है कि "कुनार और नंगरहार में तीन शिविर हैं" और "तालिबान के संचालन को वित्त और प्रशिक्षण विशेषज्ञता प्रदान करता है।"
यूएन की रिपोर्ट में "उसी सदस्य राज्य ने बताया कि जनवरी 2022 में, तालिबान के एक प्रतिनिधिमंडल ने नंगरहार के हस्का मेना जिले में लश्कर-ए-तैयबा द्वारा इस्तेमाल किए गए एक प्रशिक्षण शिविर का दौरा किया। अक्टूबर 2021 में, एक सदस्य देश के अनुसार ... लश्कर नेता, मावलवी असदुल्ला ने तालिबान के उप आंतरिक मंत्री नूर जलील से मुलाकात की थी।"
रिपोर्ट में JeM को एक देवबंदी समूह के रूप में संदर्भित किया गया है जो वैचारिक रूप से तालिबान के करीब है। इसमें कहा गया, "समूह का नेता मसूद अजहर है, और कारी रमजान अफगानिस्तान में JeM का नया नियुक्त प्रमुख है।" लश्कर-ए-तैयबा पर, रिपोर्ट में कहा गया है: "अफगानिस्तान के भीतर, इसका नेतृत्व मावलवी यूसुफ कर रहा है।"
बता दें कि निगरानी दल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति की सहायता करता है, और यह रिपोर्ट अगस्त 2021 में काबुल के पतन के बाद से इसकी पहली रिपोर्ट है। UNSC प्रतिबंध समिति के सदस्यों के बीच प्रसारित, रिपोर्ट अफगानिस्तान के प्रति संयुक्त राष्ट्र की भविष्य की रणनीति के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती है।
शांति प्रक्रिया के विफल होने पर पाकिस्तान को भी लगेगा झटका?
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की रिपोर्ट में अफगानिस्तान आधारित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) से पाकिस्तान की सुरक्षा को लगातार खतरे की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया है गया और कहा गया है कि खूंखार आतंकी संगठन के साथ चल रही शांति प्रक्रिया के सफल होने की संभावनाएं क्षीण हैं। तालिबान प्रतिबंध समिति 1988 की निगरानी टीम की वार्षिक रिपोर्ट में अफगान-तालिबान के साथ टीटीपी के संबंधों का उल्लेख किया गया है और यह बताया गया है कि पिछले साल गनी शासन के पतन से इस समूह को कैसे फायदा हुआ और इसने अफगानिस्तान से संचालित अन्य आतंकवादी समूहों के साथ अपने संबंध कैसे जोड़े।
रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रतिबंधित टीटीपी में अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी इलाकों में 4,000 लड़ाके हैं तथा वहां इसने विदेशी लड़ाकों का सबसे बड़ा समूह बना लिया है। पिछले साल अगस्त में काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद से समिति के लिए टीम की यह पहली रिपोर्ट है।
रिपोर्ट में तालिबान की आंतरिक राजनीति, उसके वित्तीय मामलों, अलकायदा, दाएश और अन्य आतंकवादी समूहों के साथ इसके संबंधों तथा सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों के कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित किया गया है। यह रिपोर्ट ऐसे समय प्रकाशित हुई जब पिछले बृहस्पतिवार को पाकिस्तान सरकार और टीटीपी के बीच तीसरे दौर की बातचीत की शुरुआत हुई।
इस साल, आतंकवादी समूह ने लगभग 46 हमले किए
पिछले साल नवंबर में हुई पहले दौर की वार्ता के परिणामस्वरूप एक महीने का संघर्षविराम हुआ था, लेकिन बाद में टीटीपी ने पाकिस्तान पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए संघर्षविराम खत्म कर दिया था। टीटीपी ने बाद में पाकिस्तानी सेना के खिलाफ हमले फिर से शुरू कर दिए। पाकिस्तान इंस्टिट्यूट ऑफ पीस स्टडीज द्वारा सारणीबद्ध किए गए आंकड़े बताते हैं कि इस साल, आतंकवादी समूह ने लगभग 46 हमले किए, जिनमें ज्यादातर कानून प्रवर्तन कर्मियों के खिलाफ थे और इनमें 79 लोग मारे गए।
टीटीपी 2008 में अपनी स्थापना के बाद से ही पाकिस्तानी सुरक्षाबलों के साथ संघर्ष कर रहा है, ताकि देश में शरिया कानूनों को लागू करने के लिए दबाव डाला जा सके। हालांकि, संघर्ष समाप्त करने के लिए पाकिस्तान सरकार के साथ बातचीत के लिए अफगान तालिबान द्वारा समूह पर दबाव डाला जा रहा है। वार्ता के नवीनतम दौर में पाकिस्तान सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता 30 मई को समाप्त हो रहे संघर्षविराम को आगे बढ़ाने की है। हालांकि पाकिस्तानी पक्ष ने बातचीत पर पूरी तरह चुप्पी साध रखी है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि "समूह (टीटीपी) पाकिस्तान सरकार के खिलाफ एक दीर्घकालिक अभियान पर ध्यान केंद्रित कर रहा है", जिसका अर्थ है कि "संघर्षविराम समझौतों की सफलता की सीमित संभावना है।"
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