1. मीथेन उत्सर्जन में कमी
दुनिया के सौ देशों ने कसम उठाई कि मीथेन गैस का उत्सर्जन 2030 तक एक तिहाई कर देंगे। इससे पृथ्वी का तापमान कम रखने में मदद मिलेगी। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि बड़े उत्सर्जक तो कसम उठाने वालों में शामिल ही नहीं हैं मसलन, भारत, चीन, रूस और ऑस्ट्रेलिया इस समझौते में शामिल नहीं हुए। यूके के एक्सेटर विश्वविद्यालय में ग्लोबल सिस्टम्स इंस्टीट्यूट के प्रमुख टिम लेंटन ने कहा कि 2030 तक मीथेन उत्सर्जन में 50% की कमी और भी बेहतर होती लेकिन यह एक अच्छी शुरुआत है।
2. भारत का 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य
भारत ने कहा है कि वो वर्ष 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो करने के लक्ष्य को हासिल कर लेगा। हालांकि, ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन पर शिखर सम्मेलन में देशों से अपेक्षा की जा रही थी कि वो इस लक्ष्य को 2050 तक पूरा कर लें। लेकिन इसके बावजूद सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री के इस संकल्प को बड़ी बात माना जा रहा है। क्योंकि भारत ने पहली बार नेट जीरो के लक्ष्य को लेकर कोई निश्चित बात की है। नेट जीरो का मतलब होता है कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को पूरी तरह से खत्म कर देना जिससे कि धरती के वायुमंडल को गर्म करनेवाली ग्रीनहाउस गैसों में इस वजह से और वृद्धि नहीं हो पाएगी। वाशिंगटन डीसी स्थित पर्यावरण थिंक टैंक में भारतीय जलवायु कार्यक्रम की प्रमुख उलका केलकर ने कहा कि हम इस फैसले से आश्चर्यचकित हैं। यह हमारी अपेक्षा से कहीं अधिक है।
3. 45 देशों के 450 संगठन खर्च करेंगे 130 ट्रिलियन डॉलर
वर्ष 2050 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने के लिए पैसे की कमी को दूर करने को बड़ा फैसला लिया गया है। इसके तहत 45 देशों के 450 वित्तीय संस्थाओं व संगठनों द्वारा वर्ष 2050 तक नेट जीरो का लक्ष्य पाने के लिए 130 ट्रिलियन डॉलर की धनराशि जुटाने पर सहमति बनी है। इन लक्ष्यों में तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना भी शामिल है और ये धनराशि दुनिया की कुल वित्तीय सम्पदाओं का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा है। पारिस्थितिक विज्ञानी और न्यूयॉर्क शहर में वन्यजीव संरक्षण सोसायटी के अध्यक्ष क्रिस्टियन सैम्पर ने इसे महत्वपूर्ण फैसला बताया है। उन्होंने कहा कि बैठक में वित्तीय क्षेत्र और वित्त और ऊर्जा मंत्रियों की भागीदारी एक गेम-चेंजर है।
4. वनों की कटाई रोकने का संकल्प
कॉप-26 सम्मेलन में 130 से अधिक वैश्विक नेताओं ने वनों की कटाई और भूमि क्षरण को रोकने का संकल्प लिया। कॉप-26 जलवायु वार्ता में संयुक्त बयान का समर्थन ब्राजील, इंडोनेशिया और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य सहित देशों के नेताओं द्वारा किया गया था, जो सामूहिक रूप से दुनिया के 90% जंगलों का हिस्सा हैं। हालांकि पहली बार यह प्रतिबद्धता नहीं जताई गई है। इससे पहले 2014 में न्यूयॉर्क में भी ऐसा ही करार हुआ था। इसमें भी 200 के करीब देशों ने 2020 तक वनों की कटाई आधी और 2030 तक पूर्ण पाबंदी का लक्ष्य रखा था। लेकिन यह करार भी नाकाम साबित हुआ। विशेषज्ञों का कहना है कि एक प्रवर्तन तंत्र के बिना नवीनतम लक्ष्य प्राप्त होने की संभावना नहीं है।
5. स्वच्छ प्रौद्योगिकी में निवेश
कॉप सम्मेलन में इस बार कई देशों ने स्वच्छ प्रौद्योगिकी में नए निवेश की घोषणा की है। साथ ही यूके, पोलैंड, दक्षिण कोरिया और वियतनाम समेत 40 से ज्यादा देशों ने 2030 तक प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं और 2040 तक वैश्विक स्तर पर कोयला बिजली को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने का ऐलान किया है। साथ ही कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को भी सार्वजनिक धन को रोकने के लिए प्रतिबद्धता जताई है।