न्यूजीलैंड के हालिया चुनाव में जीता ये भारतवंशी...बताया अनुभव

न्यूजीलैंड की संसद में बीते शनिवार को एक भारतीय बतौर सांसद पहुंचा है.

Update: 2020-10-21 16:23 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। न्यूज़ीलैंड की संसद  में बीते शनिवार को एक भारतीय बतौर सांसद पहुंचा है. हिमाचल प्रदेश  से ताल्लुक रखने वाले डॉक्टर गौरव शर्मा को हैमिल्टन क्षेत्र से चुनाव जीतने के बाद संसद सदस्य होने का गौरव मिला है. उम्र के चौथे दशक में डॉ. शर्मा करीब 20 साल पहले न्यूज़ीलैंड शिफ्ट हुए थे. मेडिसिन और सर्जरी में बैचलर की डिग्री हासिल करने के बाद खुद की प्रैक्टिस करने वाले शर्मा ने लेबर पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीता है. हिमाचल के हमीरपुर ज़िले के शर्मा के बारे में क्या आप और जानना चाहेंगे?

कैसे संसद में पहुंचे शर्मा?

न्यूज़ीलैंड के चुनाव आयोग के मुताबिक शर्मा को कुल 16,950 वोट मिले और उन्होंने 4425 वोटों के अंतर से नेशनल पार्टी के उम्मीदवार टिम मैसिनडो को हराया. अपनी पार्टी के आधिकारिक वेब पेज पर शर्मा ने कहा कि एक स्थानीय डॉक्टर होने के नाते उन्हें लोगों की रोज़मर्रा की चिंताओं के बारे में हर खबर थी. शर्मा ने उम्मी जताई कि कोविड के बाद के समय में उनका मैनेजमेंट और हेल्थकेयर क्षेत्र में काम का अनुभव काम आएगा.

साल 2014 से शर्मा लेबर पार्टी से जुड़े रहे हैं और 2017 के चुनाव में भी उन्होंने लेबर पार्टी से चुनाव लड़ा था. हालांकि उस समय वह जीते नहीं थे, लेकिन 2014 के मुकाबले लेबर पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ाने में कामयाब रहे थे. डॉ. शर्मा की हालिया उप​लब्धि पर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सोशल मीडिया के ज़रिये बधाई देते हुए लिखा कि पूरे प्रदेश को हमीरपुर के गलोड़ मूल के डॉ. शर्मा पर गर्व है जिन्होंने हिमाचल का नाम रोशन किया है.

किस तरह का रहा शर्मा का अनुभव?

शर्मा पहले पब्लिक हेल्थ, नीति और कई देशों के लिए कंसल्टिंग जैसी सेवाएं दे चुके हैं. मेडिकल में बैचलर के अलावा उन्होंने अमेरिका की जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी से एमबीए की डिग्री भी हासिल की है. बेहतरीन अकादमिक करियर के बाद शर्मा ऑकलैंड रिफ्यूजी काउंसिल के बोर्ड मेंबर रहते हुए रिफ्यूजियों के अधिकारों की हिमायत करते रहे और 2015 में भूकंप के बाद नेपाल में कई गांवों के पुनरुद्धार के लिए भी उन्होंने काम किया.

न्यूज़ीलैंड में देखा कठिन दौर

शर्मा के पिता हिमाचल के बिजली बोर्ड में इंजीनियर थे और जब शर्मा नौवीं क्लास में थे, तब उनके पिता परिवार समेत न्यूज़ीलैंड शिफ्ट हुए थे. नये देश के माहौल से जूझने के साथ ही यह भी एक समस्या थी कि छह सालों तक उनके पिता को उनके क्षेत्र में रोज़गार मिला था इसलिए लंबा समय पूरे परिवार ने बेघर रहकर भी गुज़ारा. लेबर पार्टी के मुताबिक शर्मा का परिवार पार्क की बेंचों पर सोकर और भंडारों में भोजन पर गुज़ारा करता था.

जड़ों से जुड़ाव है बरकरार

शिमला में 2017 में एक इंटरव्यू में शर्मा ने कहा था कि अपनी जन्मभूमि के साथ उनका नाता हमेशा बना रहा है. शर्मा ने माना था कि उन्हें हिमाचली भोजन सबसे ज़्यादा पसंद है और जब भी वो हिमाचल में होते हैं तो स्थानीय पहाड़ी भाषा में बात करना पसंद करते हैं. यह भी दिलचस्प फैक्ट है कि शर्मा स्कूली शिक्षा के समय से ही बेहद प्रतिभाशाली छात्र रहे थे और न्यूज़ीलैंड के टॉप 6 स्टूडेंट में उनका नाम रहा था.

गौरतलब है कि कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ ठीक तरह से जूझने वाले देशों में न्यूज़ीलैंड का नाम शुमार रहा. शर्मा जिस लेबर पार्टी से ताल्लुक रखते हैं, उसी की सरकार का नेतृत्व करने वाली प्रधानमंत्री जैसिंडा आर्डर्न ने इस बात को लगातार दूसरी जीत के लिए मुख्य कारण बताया. हालिया चुनाव में लेबर पार्टी ने 'लेट्स कीप मूविंग' स्लोगन से चुनाव प्रचार किया था.

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