बाइडेन और गनी के बीच 23 जुलाई को हुई थी आखिरी बातचीत, अहम खुलासे जानें यहां
अमेरिका ने अफगानिस्तान में अपनी दो दशक की जंग का अंत कर दिया है. 30 अगस्त को अमेरिकी सेना ने काबुल एयरपोर्ट छोड़ दिया और इसी के साथ तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्जा हो गया. तालिबान ने पिछले एक महीने में नाटकीय ढंग से पूरे देश पर देखते ही देखते कब्जा कर लिया, लेकिन जब ये सब हो रहा था उससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और तत्कालीन अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी के बीच फोन पर बातचीत हुई थी, जिसमें तालिबान के खिलाफ जारी लड़ाई को लेकर चर्चा हुई थी.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने दावा किया है कि 23 जुलाई को जो बाइडेन और अशरफ गनी के बीच 14 मिनट लंबी बातचीत हुई थी, जिसमें जो बाइडेन ने अफगानिस्तान को दी जाने वाली सैन्य मदद के बारे में चर्चा की थी. साथ ही उन्होंने अशरफ गनी से कहा था कि उन्हें तालिबान के खिलाफ जारी लड़ाई को लेकर छवि बदलने की जरूरत है, क्योंकि अफगानिस्तान और दुनिया में ये छवि खराब हो रही है.
इस फोन कॉल के करीब दो हफ्ते बाद अशरफ गनी ने काबुल छोड़ दिया, 15 अगस्त को तालिबान ने काबुल के राष्ट्रपति पैलेस पर कब्जा कर दिया. और उसके ठीक 15 दिन बाद अमेरिका ने पूरी तरह से अफगानिस्तान छोड़ दिया, जिसके साथ 20 साल चली जंग का अंत हुआ.
अमेरिका ने अशरफ गनी से प्लान बताने को कहा था
रॉयटर्स के मुताबिक, जो बाइडेन ने अशरफ गनी से कहा था कि वह तभी सैन्य मदद देंगे, जब वह सार्वजनिक तौर पर तालिबान को रोकने का प्लान सामने रखेंगे. जो बाइडेन ने कहा था कि हमारी ओर से हवाई सपोर्ट जारी रहेगा, लेकिन हमें पता होना चाहिए कि आगे का प्लान क्या है. इस फोन कॉल के कुछ दिन पहले ही अमेरिका ने अफगान आर्मी का समर्थन करते हुए तालिबान के खिलाफ एयरस्ट्राइक की थी.
अमेरिकी राष्ट्रपति चाहते थे कि अशरफ गनी द्वारा जनरल बिस्मिल्लाह खान को तालिबान से लड़ने की जिम्मेदारी दी जाए, जो उस वक्त रक्षा मंत्री थे. अफगानिस्तान अपना प्लान सामने रखे, बिस्मिल्लाह खान को कमान दे और उसके बाद अमेरिका मदद बढ़ाने को तैयार था. जो बाइडेन की ओर से भरोसा दिलाया गया कि अमेरिकी सेना ने जिन 3 लाख अफगान सैनिकों को तैयार किया है, वह 70-80 हजार तालिबानियों का मुकाबला कर सकते हैं.
हालांकि, इस बातचीत का मुख्य फोकस अफगान सरकार के रवैये को लेकर था. जो बाइडेन द्वारा चिंता व्यक्त की गई थी कि अशरफ गनी सरकार का रवैया तालिबान के खिलाफ लड़ाई के लिए सीरियस नहीं है, जिसका दुनिया में गलत संदेश भी जा रहा है. इसीलिए अमेरिका ने सलाह दी थी कि अफगानिस्तान की पूरी राजनीतिक लीडरशिप को साथ आकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी चाहिए, तालिबान के खिलाफ रणनीति का ऐलान करना चाहिए ताकि छवि बदली जा सके.
अशरफ गनी ने पाकिस्तान को लेकर जताया था डर
रॉयटर्स ने जिस बातचीत का दावा किया है, उसे देखें तो ऐसा लगता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से पूरी कोशिश की जा रही थी कि अफगान सेना को मदद पहुंचाई जा सके. और उन्हें इस बातचीत के दौरान बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि अगले एक महीने में किस तरह अफगानिस्तान का भविष्य पूरी तरह से बदलने वाला है.
इस बातचीत में अशरफ गनी द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को पाकिस्तान को लेकर चेतावनी दी गई थी. रॉयटर्स के मुताबिक, अशरफ गनी ने कहा था कि तालिबान पूरी ताकत के साथ एक बार फिर हमला कर रहा है, इसमें पाकिस्तान की ओर से उसे पूरा सपोर्ट दिया जा रहा है. इसके अलावा 10-15 हजार आतंकी भी पाकिस्तान की ओर से दिए गए हैं, ताकि तालिबान और पाकिस्तानी आतंकी अफगानी सेना के खिलाफ लड़ सकें.
रॉयटर्स की ओर से इस बातचीत को लेकर व्हाइट हाउस और अशरफ गनी के ऑफिस से सफाई मांगी गई, दोनों की ओर से कोई बयान नहीं दिया गया है. वहीं, वाशिंगटन में मौजूद पाकिस्तानी दूतावास ने पाकिस्तान के ऊपर लगे सभी आरोपों को बकवास करार दिया.
एक महीने में अमेरिका ने खाली कर दिया अफगानिस्तान
आपको बता दें कि जब दोनों नेताओं के बीच ये बातचीत हुई, उससे पहले ही अमेरिका की ओर से 11 सितंबर तक काबूल छोड़ने का ऐलान हो चुका था. इससे आगे बढ़कर भी अमेरिका 31 अगस्त तक की वापसी की बात कह रहा था, यही कारण है कि फोन कॉल से कुछ दिन पहले ही अमेरिका ने अफगानिस्तान में मौजूद अपने एक अहम सैन्य बेस को बंद किया था.
अगस्त के पहले हफ्ते में ही अफगानिस्तान के अलग-अलग शहरों, प्रांतों के तालिबान के कब्जे में जाने की खबर आने लगी थी. इसी बीच 15 अगस्त को तालिबान काबुल तक पहुंच गया था, अशरफ गनी काबुल छोड़कर भाग चुके थे. अशरफ गनी ने बाद में सफाई दी थी कि अगर वो ऐसा नहीं करते तो काफी खून-खराबा होता. इसी के बाद अमेरिका ने अपनी वापसी तेज़ की और 30 अगस्त को आखिरी अमेरिकी सैनिक ने अफगानिस्तान छोड़ दिया.