यूक्रेन के इरपिन शहर में रूस के हमलों से हुई तबाही का सेटेलाइट इमेज में दिखाई दिया मंजर
रूस की सेना यूक्रेन में लगातार आगे बढ़ रही है। इरपिन शहर में उसने जबरदस्त हमला किया है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। यूक्रेन के शहर इरपिन में हुई रूस की गोलाबारी और एयर स्ट्राइक से जबरदस्त नुकसान हुआ है। इमारतें मलबों में तब्दील हो गई हैं। चारों तरफ केवल मलबे का ही ढ़ेर दिखाई दे रहा है। मेक्सर टेक्नालाजी सेटेलाइट की ताजा इमेज में यहां का भयानक मंजर देखने को मिला है। सीएनएन के हवाले से एएनआई ने बताया है कि यहां की स्थानीय सरकारी इमारत समेत दूसरी रिहायशी इमारतों में आग की लपटें निकल रही हैं।
हमले के बाद इमारतों में लगी आग
इसके अलावा भी कई इमारतें जिनमें अपार्टमेंट, स्कूल समेत दूसरी इमारतें भी शामिल हैं, में आग की लपटें उठती हुई देखी जा रही हैं। इस बीच यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने एक बार फिर से रूस के राष्ट्रपति व्लोदिमीर पुतिन से बातचीत की पेशकश की है। इस बीच जेलेंस्की ने नीदरलैंड के पीएम से बात कर उन्हें यूक्रेन के लोगों का समर्थन करने के लिए धन्यवाद कहा है।
रूस की सेना की मौजूदगी
सेटेलाइट इमेज में कुछ जगहों पर पानी भरा हुआ भी दिखाई दे रहा है। हालांकि इसकी वजह साफ नहीं हो सकी है। माना जा रहा है कि ऐसा होने की कुछ वजह हो सकती है। इनमें से एक वजह बांध का ओवरफ्लो होना, बांध के गेट खोल देना या फिर रूस के हमलों में बांध को नुकसान पहुंचना भी शामिल है। सेटेलाइट इमेज में कीव के उत्तर पश्चिम में स्थित एंतनोव एयरबेस के पश्चिम में रूस की आर्टिलरी की मौजूदगी भी दिखाई दे रही है। सीएनएन की खबर में कहा गया है कि डिनापर नदी इस वक्त काफी उफान पर है। रूस की फौज को कीव में आने के लिए इस नदी को क्रास करना होगा। ऐसा किए बिना वो यहां पर नहीं पहुंच सकती है।
नाटो को लेकर जेलेंस्की ने दिया बयान
बता दें कि रूस ने 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला किया था। रूस का कहना है कि यूक्रेन पर हमले का मकसद केवल इसको डिमिलिट्राइज करना है। रूस नहीं चाहता है कि यूक्रेन नाटो का सदस्य बने। हालांकि अब यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की भी इस बारे में साफ कर चुके हैं कि यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं बन सकता है। उन्होंने यहां तक कहा है कि नाटो रूस से डरता है। गौरतलब है कि रूस और यूक्रेन की लड़ाई अब चौथे सप्ताह में चल रही है। इस जंग में अब तक 30 लाख लोगों को अपना घर छोड़कर पड़ोसी देशों में बतौर शरणार्थी का जीवन बिताने को मजबूर होना पड़ रहा है।