शोधकर्ता: साल 2050 तक लोगों की थाली से गायब हो सकता है चावल...

इस कारण किसानों को पूरी उपज का फायदा नहीं मिल पा रहा है।

Update: 2021-03-17 04:03 GMT

बदलते मौसम, पानी की कमी और ग्लोबल वार्मिंग के कारण संभावना जताई जा रही है कि अगले 30 सालों में लोगों की थाली से चावल गायब हो सकती है। इलिनोइस विश्वविद्यालय के अमेरिकी शोधकर्ताओं की एक टीम ने भारत में दुनिया के सबसे बड़े चावल उगाने वाले क्षेत्रों में से एक में अध्ययन किया। इस टीम ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि साल 2050 तक चावल के उत्पादन की मात्रा में भारी कमी देखने को मिल सकती है।

उत्पादन कम होने का अनुमान
शोधकर्ताओं की टीम ने बताया है कि अगर मृदा संरक्षण के लिए आधुनिक तकनीकी का प्रयोग नहीं किया गया और फसल के समय अपशिष्ट को सीमित करने पर ध्यान नहीं दिया गया तो भविष्य में चावल का उत्पादन बहुत कम हो सकता है। इस टीम ने बिहार में स्थित 'नॉर्मन बोरलॉग संस्थान' के चावल उत्पादन केंद्र पर अपने शोध को अंजाम दिया है। जिसका मकसद साल 2050 तक चावल की पैदावार और पानी की मांग का अनुमान लगाना था।
बदलते तापमान और मौसम का पड़ रहा प्रभाव
इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और इलिनोइस विश्वविद्यालय में कृषि और जैविक इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर प्रशांत कलिता ने बताया कि बदलता मौसम, तापमान, वर्षा और कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता को प्रभावित करता है। ये विशेष रूप से चावल जैसी फसल की वृद्धि के लिए आवश्यक सामग्री हैं। अगर इनपर बुरा असर पड़ता है तो उत्पादन का प्रभावित होना तय है।
2050 तक बहुत कम हो जाएगी चावल की पैदावार
प्रोफेसर कलिता के अध्ययन के आधार पर अनुमान जताया गया है कि अगर चावल उत्पादक किसान वर्तमान प्रथाओं के साथ खेती जारी रखते हैं, तो उनके पौधों की उपज 2050 तक काफी कम हो सकती है। हमारे मॉडलिंग के परिणाम बताते हैं कि फसल की वृद्धि अवस्था सिकुड़ रही है। फसलों की बुआई से कटाई तक का समय तेजी से कम हो रहा है। इससे फसलें तेजी से परिपक्व हो रही हैं। इस कारण किसानों को पूरी उपज का फायदा नहीं मिल पा रहा है।



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