तालिबान अस्थायी रूप से 1964 के शाही संविधान को अपनाएगा
घरेलू हिंसा से तंग होकर यहां 20 महिलाओं ने शरण ली थी।
तालिबान ने मंगलवार को कहा कि वह अस्थायी रूप से पूर्व राजा मुहम्मद जहीर शाह के युग के संविधान को अपनाएगा, जिसे 57 साल पहले 1964 में अनुमोदित किया गया था। खामा प्रेस के मुताबिक काबुल में चीन के राजदूत के साथ मुलाकात के दौरान तालिबान के कार्यवाहक कानून मंत्री अब्दुल हकीम सरई ने कहा कि उनकी अंतरिम सरकार के दौरान इस संविधान को अस्थायी तौर पर अपनाया जाएगा।
खामा प्रेस के मुताबिक हामिद करजई की सरकार के दौरान पहले साल में भी जहीर शाह के संविधान को अपनाया गया था। सरई ने यह भी कहा कि संविधान को इस तरह से लागू किया जाएगा, जिससे शरिया कानून और इस्लामिक अमीरात अफगानिस्तान के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं होता हो। बता दें कि अफगान संविधान में कहा गया है कि मनुष्य की स्वतंत्रता और गरिमा अहिंसक और अहस्तांतरणीय है। इसमें कहा गया, 'राज्य का कर्तव्य है कि वह व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा का सम्मान करे और उसकी रक्षा करे। अभियुक्त की उपस्थिति में खुली सुनवाई के बाद दिए गए सक्षम न्यायालय के आदेश के अलावा किसी को भी दंडित नहीं किया जा सकता है।' इस संविधान के तहत किसी इंसान को प्रताड़ित करना भी जायज नहीं है। इसमें कहा गया है कि तथ्यों की खोज के लिए भी किसी व्यक्ति को प्रताड़ित करने के आदेश जारी करने पर कोई अत्याचार नहीं कर सकता, भले ही इसमें शामिल व्यक्ति का पीछा, गिरफ्तारी या नजरबंदी हो या सजा की निंदा की गई हो। मानवीय गरिमा के साथ असंगत दंड लगाने की अनुमति नहीं है।
काबुल यूनिवर्सिटी में दो हफ्ते पहले तालिबान ने पीएचडी धारक मुहम्मद को हटा दिया और मात्र बीए पास मुहम्मद अशरफ को चांसलर बना दिया। इसके विरोध में यहां के 70 शिक्षकों ने इस्तीफा दे दिया है। इसके अलावा महिला आश्रय केंद्र को भी तालिबानी हुकूमत ने अपने काबू में ले लिया है। तालिबान ने उत्तरी अफगानिस्तान के पुल-ए-खुमरी शहर के इकलौते महिला आश्रय केंद्र को अपने नियंत्रण में ले लिया है। घरेलू हिंसा से तंग होकर यहां 20 महिलाओं ने शरण ली थी।