अभी भी तालिबान का सुप्रीम लीडर हिबतुल्ला अखुंदजादा के ठिकाने के बारे में किसी को जानकारी नहीं: रिपोर्ट
भाई के साथ पाकिस्तान के क्वेटा में लगभग तीन साल पहले एक आत्मघाती हमले में मारा गया था
तालिबान (Taliban) की अफगानिस्तान (Afghanistan) में सत्ता वापसी के बाद से ही आंदोलन के सुप्रीम लीडर हिबतुल्ला अखुंदजादा (Hibatullah Akhundzada) के ठिकाने के बारे में किसी को जानकारी नहीं है. अखुंदजादा को लेकर माना जा रहा था कि तालिबान की वापसी के साथ ही उसका सर्वोच्च नेता दुनिया के सामने आएगा. लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ है. तालिबान का नेता मर चुका है या जिंदा है, इसके बारे में अफगान लोगों को कोई जानकारी नहीं है. यहां तक कि तालिबान को लेकर जानकारी रखने वाले विश्लेषकों को भी इस बारे में संदेह है कि वास्तव में तालिबान का नेतृत्व कौन कर रहा है.
समाचार एजेंसी एएफपी ने अखुंदजादा का पता लगाने की कोशिश की है. 30 अक्टूबर को इस बात की अफवाह उड़ी कि अखुंदजादा ने दक्षिण शहर कंधार में एक मदरसे को संबोधित किया है. तालिबान अधिकारियों ने हकीमिया मदरसे में सुप्रीम लीडर की मौजूदगी को प्रामाणिकता की मुहर दी. एक 10 मिनट से अधिक समय तक चलने वाली एक ऑडियो रिकॉर्डिंग जारी की गई. अखुंदजादा ने इस ऑडियो में कहा, 'ऊपर वाला अफगानिस्तान के उत्पीड़ित लोगों को पुरस्कृत करे जिन्होंने काफिरों और उत्पीड़कों से 20 साल तक लड़ाई लड़ी.' वहीं, अब हकीमिया मदरसे के बाहर तालिबान लड़ाके मौजूद हैं और अब लोग यहां पहुंचने लगे हैं.
अखुंदजादा को लेकर मदरसा में मौजूद लोगों ने कही ये बात
मदरसा के सुरक्षा प्रमुख मासूम शकरुल्लाह ने बताया कि जब सुप्रीम लीडर ने मदरसा का दौरा किया, तो वह सशस्त्र थे और उनके साथ तीन सुरक्षा गार्ड थे. उन्होंने बताया कि यहां तक कि मोबाइल फोन और साउंड रिकॉडर्स की भी इजाजत नहीं दी गई थी. मोहम्मद नाम के 19 वर्षीय छात्र ने बताया, 'हम सभी लोग उन्हें देख रहे थे और रो रहे थे.' यह पूछे जाने पर कि क्या वह पुष्टि कर सकते हैं कि यह निश्चित रूप से अखुंदजादा था, मोहम्मद ने कहा कि वह और उनके साथी इतने खुश थे कि वे उसका चेहरा देखना भूल गए. अखुंदजादा को लेकर एक 13 वर्षीय छात्र मोहम्मद मूसा ने बताया कि वह बिल्कुल तालिबान द्वारा जारी तस्वीर की तरह ही दिख रहे थे.
इसलिए लो प्रोफाइल रहते हैं तालिबानी नेता
दरअसल, तालिबान के नेताओं के लो प्रोफाइल होने के पीछे की खास वजह है, मारे जाने का डर. अमेरिका अक्सर ही ड्रोन हमलों के जरिए आतंकियों को निपटाता रहा है. ऐसे ही एक ड्रोन हमले में 2016 में तालिबान के तत्कालीन नेता मुल्ला अख्तर मंसूर (Mullah Akhtar Mansour) की मौत हो गई थी. इसके बाद ही अखुंदजादा तालिबान के शीर्ष पद पर कायम हुआ. उसे जल्द ही अल-कायदा प्रमुख अयमान अल-जवाहिरी का समर्थन मिला. बता दें कि तालिबान ने पांच साल पहले अखुंदजादा की एक तस्वीर जारी की, जिसके बाद उसकी एक भी नई तस्वीर जारी नहीं की गई है.
आत्मघाती हमले में मारा गया अखुंदजादा
अपदस्थ अफगान शासन के अधिकारी और कई पश्चिमी विश्लेषक मानते हैं कि अखुंदजादा की मौत सालों पहले ही हो गई थी. उनका मानना है कि ऐसा उसे जिंदा दिखाने के लिए जानबूझकर किया गया. तालिबान ऐसा पहले भी कर चुका है, जब तालिबान का संस्थापक मुल्ला उमर की मौत 2013 में ही हो गई थी. लेकिन उसे दो सालों तक जिंदा दिखाया गया. पूर्व सरकार के एक सुरक्षा अधिकारी ने एएफपी को बताया, खुद अखुंदजादा लंबे समय से मर चुका है और काबुल पर कब्जे से पहले उसकी कोई भूमिका नहीं थी. सूत्रों का मानना है कि वह अपने भाई के साथ पाकिस्तान के क्वेटा में लगभग तीन साल पहले एक आत्मघाती हमले में मारा गया था