पाकिस्तानी मंत्री की विवादित टिप्पणी पर श्रीलंकाई मंत्री ने की माफी की मांग

पाकिस्तान के सियालकोट में उन्मादी भीड़ की ओर से पीट-पीटकर मारे गए श्रीलंकाई नागरिक की हत्या को लेकर वहां के रक्षा मंत्री परवेज खट्टक के विवादित बयान से नया बवाल खड़ा हो गया है।

Update: 2021-12-08 02:01 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पाकिस्तान के सियालकोट में उन्मादी भीड़ की ओर से पीट-पीटकर मारे गए श्रीलंकाई नागरिक की हत्या को लेकर वहां के रक्षा मंत्री परवेज खट्टक के विवादित बयान से नया बवाल खड़ा हो गया है। श्रीलंका ने पाकिस्तान रक्षा मंत्री से अपने बयान को लेकर माफी की मांग की है। श्रीलंका के सार्वजनिक सुरक्षा मंत्री रियर एडमिरल सरथ वीरशेखर ने पाकिस्तान के रक्षा मंत्री को उन टिप्पणियों के लिए श्रीलंका के लोगों से माफी मांगनी की मांग की है।

खट्टक से जब पूछा गया कि क्या हाल ही में तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) पर से प्रतिबंध हटाने को इस घटना से जोड़ा जा सकता है तब उन्होंने कथित तौर पर जवाब दिया 'हत्या तब हो सकती है जब लोग भावुक हो जाते हैं'। दरअसल, कट्टरपंथी इस्लामी पार्टी तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) के समर्थकों सहित 800 से अधिक लोगों की भीड़ ने पिछले शुक्रवार को लाहौर से लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित सियालकोट जिले में एक कपड़ा कारखाने पर हमला किया था और इसके मैनेजर प्रियंता कुमारा दियावदना की हत्या कर दी थी तथा उनके शव को आग लगा दी थी।
पाकिस्तान में टीएलपी की ओर से विरोध प्रदर्शन किए जाने के बाद इमरान खान सरकार ने जेल में आतंकवाद के आरोपों में जेल में बंद 1,000 से अधिक कैदियों को रिहा कर दिया था। यह सभी टीएलपी का हिस्सा थे। फ्रांस में पैगंबर मुहम्मद के कैरिकेचर जारी होने के बाद फ्रांसीसी दूत के निष्कासन की मांग की को लेकर भी टीएलपी ने विरोध प्रदर्शन किया था और पाकिस्तान के कई शहरों में तोड़फोड़ की थी। हालांकि, कैदियों की रिहाई के बाद उसने अपनी मांग वापस ले ली।
पाकिस्तानी मीडिया ने भी रक्षा मंत्री की आलोचना की। समाचार एजेंसी डॉन ने अपने संपादकीय में कहा कि यह टिप्पणी 'एक धारणा पैदा करती है और उनको आगे बढ़ाती है कि इस तरह की हत्याएं एक 'सामान्य' हिस्सा हैं जहां धर्म का इस्तेमाल अपराध को सही ठहराने के लिए किया जा सकता है। संपादकीय में आगे कहा गया है कि एक संघीय मंत्री के इस तरह के बयान से झटका लगना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से हम अपने देश में चरमपंथ और हिंसा की वास्तवाकिताओं के बारे में इनकार करने के आदी हैं।
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